केंद्रीय बैंकों की निगाह सोने पर | |
राजेश भयानी / मुंबई 01 09, 2019 | | | | |
► वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडारण में बढ़ा रहे सोने की हिस्सेदारी
► केंद्रीय बैंकों को बदलती वित्त व्यवस्था में सोने से नई भूमिका की आस
► भारत समेत वैश्विक केंद्रीय बैंक जोर-शोर से अपने मुद्रा भंडार में बढ़ा रहे सोना
► रिजर्व बैंक के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़कर हुआ 5.9 प्रतिशत
► 2008 तक केंद्रीय बैंक कर रहे थे स्वर्ण भंडार में कमी लेकिन 2008 के वित्तीय संकट ने किया उनके दृष्टिकोण में बदलाव
अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था में परिवर्तन के लिए सोने को नई भूमिका मिल रही है। वैश्विक केंद्रीय बैंकों को लगता है कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली डॉलर पर निर्भर एकल ध्रुवीय व्यवस्था से उठकर बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ेगी तथा सुरक्षा के लिए डॉलर के मुकाबले विदेशी मुद्रा भंडार में सोने को शमिल किया जाना बेहतर विकल्प है। एक दशक पहले यूरो ने और बाद में चीन की मुद्रा ने भी यह भूमिका निभाने की कोशिश की थी। भारत सहित वैश्विक केंद्रीय बैंक जोर-शोर से अपने मुद्रा भंडार में सोना बढ़ा रहे हैं।
नवंबर में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा 5.9 प्रतिशत बढ़कर 592 टन हो गया। अलबत्ता वैश्विक स्तर पर सभी केंद्रीय बैंकों ने अपने भंडार में 2018 के पहले 11 महीनों में 480 टन (पिछले तीन वर्षों में सबसे ज्यादा) सोना शामिल किया। यह रुख आगे भी जारी रहता दिख रहा है। सोने की ओर यह रुझान 2008 के वित्तीय संकट के बाद शुरू हुआ और 2013 में केंद्रीय बैंकों का स्वर्ण भंडार बढ़कर 625 टन हो गया। हालांकि मौद्रिक नीति की मात्रात्मक राहत के बावजूद सोने की कीमतों में गिरावट के कारण सोना खरीदने की प्रवृत्ति में भी नरमी आई थी। यह फिर से जोर पकड़ती दिखी है। यह रुख पिछले साल निम्न स्तर पर चला गया था। तब कुल खरीद गिरकर 371.4 टन रह गई। 2009 से पहले वैश्विक केंद्रीय बैंक सोने की बिक्री कर रहे थे।
विश्व स्वर्ण परिषद की प्रबंध निदेशक (केंद्रीय बैंक और सार्वजनिक नीति) नताली डेम्पस्टर ने कहा कि केंद्रीय बैंकों की खरीद हाल ही में मजबूत हुई है और इसमें आगे तेजी आती दिख रही है। अलग-अलग देशों में सोना खरीदने का कारण भिन्न है। केंद्रीय बैंक जब आरक्षित परिसंपत्तियों के बारे में विचार करते हैं तो उनके तीन प्रमुख उद्देश्य रहते हैं - अपनी परिसंपत्तियों को सुरक्षित रखना, अपनी परिसंपत्तियों को तरह रखना और प्रतिफल उत्पन्न करना। सोना इन तीनों नीतिगत उद्देश्यों की पूर्ति में मदद कर सकता है।
एक दशक पहले यूरो केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार के लिए अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरा था और कई बैंकों ने यूरो को अपने भंडार में शामिल करना शुरू कर दिया था लेकिन यह लंबे समय तक नहीं चला। पिछले कुछ वर्षों में चीन की मुद्रा युआन भी इस रूप में उभरी है। नताली डेम्पस्टर ने यह भी कहा कि फिलहाल इनमें से बहुत-सी खरीद केंद्रीय बैंकों के बीच बढ़ती मान्यता से प्रेरित हो सकती है, दुनिया बदल रही है और आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली अमेरिकी डॉलर पर आधारित एकल ध्रुवीय व्यवस्था से बहुध्रुवीय आरक्षित मुद्रा व्यवस्था की ओर स्थानांतरित होने की संभावना है।
ऐसा लगता है कि चीन की आरएमबी जैसी मुद्राएं आरक्षित भंडार में बहुत बड़ी भूमिका निभाएंगी। हालांकि नई प्रणाली अपनाने की दिशा में दुनिया की सही राह क्या, यह बहुत अस्पष्ट है। अनिश्चितता और जोखिम के खिलाफ परंपरागत सुरक्षा के रूप में सोने की भूमिका इस बदलाव की अवधि में केंद्रीय बैंकों के लिए बहुत मूल्यवान साबित हो सकती है। कई वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा स्थापित किए गए इस चलन के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपने भंडार में सोना बढ़ाना शुरू कर दिया है और एक साल से भी कम समय में बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से के रूप में अपने भंडार में लगभग 40 टन सोना जोड़ा है।
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