अमृता पिल्लई और अशोक दिवासे / मुंबई December 31, 2018
►इस क्षेत्र की कंपनियों को ऑर्डर देने में हाशिये पर रहा निजी क्षेत्र
►पिछले साल की तुलना में 2018 में नए ऑर्डर 30 प्रतिशत बढ़े
►कुल ऑर्डर में 93 प्रतिशत पीएसयू, केंद्र, राज्य सरकारों और एनएचएआई के
►जानकारों के मुताबिक आगामी आम चुनाव और राज्यों के ऑर्डर का पड़ा है असर
बुनियादी ढांचा क्षेत्र और पूंजीगत वस्तुओं से जुड़ी कंपनियों के लिए 2018 बेहतर साल रहा। इस वर्ष नए ऑर्डर में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी रही। इस वृद्धि में करीब पूरा पूरा योगदान सरकार व सार्वजनिक क्षेत्र के ऑर्डर का रहा, जबकि निजी क्षेत्र से ऑर्डर करीब गायब रहे।बिजनेस स्टैंडर्ड के संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि सूचीबद्ध पूंजीगत वस्तुओं, निर्माण और बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियों कैलेंडर वर्ष 2018 में (24 दिसंबर तक) 2.67 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के ऑर्डर मिले हैं। यह 2017 में एक्सचेंज को दी गई 2.05 लाख करोड़ रुपये ऑर्डर की सूचना की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा है। साथ ही यह 2015 के बाद का सबसे बड़ा ऑर्डर है।
कुल ऑर्डर का मूल्य कंपनियों की रिपोर्ट की तुलना में ज्यादा हो सकता है क्योंकि मिले हुए सभी ऑर्डर की रिपोर्ट एक्सचेंजों को नहीं की जाती है। ग्राहक की गोपनीयता सहित इसकी कई वजहें होती हैं। 2018 में मिले कुल ऑर्डर में से 93 प्रतिशत से ज्यादा केंद्र व राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) से मिले हैं। एनएचएआई से मिले ऑर्डर, कुल नए ऑर्डर के करीब एक चौथाई हैं, जो चार साल का उच्चतम स्तर है। इसकी वजह दो साल पहले बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) से इंजीनियरिंग, खरीद निर्माण (ईपीसी) मॉडल अपनाना है।
2017 और 2018 के बीच राज्यों से मिलने वाला ऑर्डर भी दोगुना हो गया है और उनकी हिस्सेदारी कुल नए ऑर्डर में बढ़कर 21 प्रतिशत हो गई है। केईसी इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी विमल केजरीवाल राज्यों के ऑर्डर को कुछ अहम बताते हैं। उन्होंने कहा, 'राज्य सरकारों ने भी बड़े ऑर्डर दिए हैं। इसमें ज्यादातर सौभाग्य योजना की वजह से है।' उन्होंने कहा कि एक बार जब गांवों का विद्युतीकरण हो जाएगा, राज्य को घरों व गांवों को पारेषण लाइन से जोडऩे का काम होगा।
चालू वित्त वर्ष की शुरुआत में लार्सन ऐंड टुब्रो के निदेशक और मुख्य वित्त अधिकारी आर शंकर रमण ने कहा था कि चालू साल ऑर्डर आने के हिसाब से बेहतर रहेगा क्योंकि राज्यों से आने वाले ऑर्डर व आम चुनाव का असर होगा। विश्लेषकों का कहना है कि ऑर्डर का बहुत छोटा हिस्सा ही नई क्षमता के लिए आया है। एक विश्लेषक ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, '2018 में हम जो ऑर्डर देख रहे हैं, वह सभी क्षेत्रों में बिखरा हो सकता है और यह व्यापकर रूप से सरकार द्वारा संचालित है। अभी हर क्षेत्र में पूर्ण रिकवरी होनी बाकी है। उदाहरण के लिए बिजली क्षेत्र में जो ऑर्डर मिले हैं, वे बड़ी मात्रा में संयंत्र के आधुनिकीकरण के लिए हैं, न कि क्षमता के विस्तार के लिए।'
वहीं केजरीवाल जैसे उद्योग जगत के जानकार उम्मीद कर रहे हैं कि अब ऑर्डर पूरे करने पर ध्यान होगा और नए ऑर्डर कम मिलेंगे। उन्होंने कहा, 'चुनाल की वजह से हम उम्मीद कर रहे हैं कि ऑर्डर पर काम पूरा करने पर ध्यान होगा, नए ऑर्डर देने पर कम। इसकी वजह से कि जमीनी पर काम ज्यादा प्रभावी होता है।'
उद्योग जगत के विश्लेषकों व अधिकारियों को विश्वास है कि मध्यावधि के हिसाब से ऑर्डर में सुधार होगा, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि आगामी चुनाव की वजह से कुछ व्यवधान भी आएगा। 13 दिसंबर के नोट में केयर रेटिंग ने कहा है, 'भारत की अर्थव्यवस्था में कुल मिलाकर निवेश का माहौल सुधरा है।' बहरहाल इसमें कहा गया है कि पूंजी का सृजन सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय बहाल रखने, क्षमता के उपभोग की दर में सुधार, अक्टूबर नवंबर में नकदी की चुनौतियों का निवेश पर संभावित असर और आईआईपी में आधार का असर कम होने पर निर्भर होगा, जिसका असर पूंजीगत वस्तुओं की वृद्धि पर पड़ा है।
इसके पहले उल्लिखित एक विश्लेषक ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि अगले 6 महीने में आम चुनावों के चलते ऑर्डर में वृद्धि सकारात्मक रहेगी, इससे केंद्र सरकार का ऑर्डर सुस्त हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में उपभोग की दरों में सुधार हो रहा है, वे क्षमता विस्तार कर सकते हैं और मध्यावधि के हिसाब से ऑर्डर में वृद्धि सकारात्मक रहने की उम्मीद है।'
बहरहाल नए ऑर्डर के लिए राज्यों पर ज्यादा निर्भरता से भी जोखिम है, क्योंकि कृषि कर्जमाफी जैसे लोकलुभावन कदम उठाए जा रहे हैं। गुरुवार को इंडिया रेटिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'हाल फिलहाल में कई राज्यों ने कृषि कर्जमाफी की घोषणा की है, जिसका राज्यों के पूंजीगत व्यय क्षमता पर विपरीत असर पड़ेगा। राजकोषीय समायोजन की अवधि में, जो कृषि कर्जमाफी की वजह से करना होगा, घाटे को नियंत्रण में करने के लिए पूंजीगत व्यय आसान निशाना हो जाता है। यह महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक के मामले में पहले ही देखा जा चुका है, जिन्होंने वित्त वर्ष 18 के बजट के बाहर कृषि कर्जमाफी की घोषणा की थी।'
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