राजकोषीय नियंत्रण में बजट | |
अरूप रायचौधरी / नई दिल्ली 12 31, 2018 | | | | |
15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट से निर्धारित होगा भविष्य में राजकोषीय लक्ष्य
►मोदी सरकार के आर्थिक दृष्टिकोण पत्र का लेखा-जोखा होगा बजट
►वित्त मंत्रालय भविष्य के राजकोषीय लक्ष्य को लेकर नहीं दे सकता कोई ठोस आश्वासन
►वित्तीय अनुशासन अपनाने पर बना रहेगा जोर
►2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा 3.1 प्रतिशत रखने का लक्ष्य
►लोकप्रिय योजनाएं लाने का सरकार पर है दबाव
दूसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रही मोदी सरकार के लिए 2019-20 का अंतरिम बजट अपनी भविष्य की आर्थिक नीति का खाका पेश करने का मौका होगा। अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले यह इस सरकार का अंतिम बजट होगा। मोदी सरकार अंतरिम बजट में भी राजकोषीय समेकन की अपनी सोच को जारी रखेगी जो उसके सभी बजटों में देखा गया है।समझा जाता है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली मध्यावधि राजकोषीय अनुमान को लेकर शायद कोई वादा नहीं करना चाहेंगे क्योंकि इसका भविष्य 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर निर्भर करता है। आयोग के अक्टूबर, 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है।
वित्त आयोग की सिफारिशें वित्त वर्ष 2020-21 से लागू होंगी। इसमें सबसे अहम सिफारिश यह होगी कि केंद्र को अपने कर राजस्व में से कितना हिस्सा राज्यों को देना होगा और राज्यों के राजस्व की कितनी अनुदान राशि का भुगतान समेकित कोष से किया जाएगा।
बजट एक फरवरी को पेश किए जाने की संभावना है। मौजूदा मध्यावधि राजकोषीय रोडमैप के मुताबिक सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.1 फीसदी और 2020-21 में 3 फीसदी रखने का होगा। सरकार के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि जेटली अपने बजट भाषण में वित्त आयोग की सिफारिशों का जिक्र कर सकते हैं।
चुनाव के बाद जब अगली सरकार जुलाई में पूर्ण बजट पेश करेगी तो वह राजकोषीय समेकन योजना को लेकर बेहतर स्थिति में होगी। तब तक सरकार को वित्त आयोग की सोच के बारे में पता चल जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फरवरी में आने वाले अंतरिम बजट में भविष्य की राजकोषीय योजना के बारे में शायद ही कोई बात होगी।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री राजकोषीय अनुशासन के समर्थक हैं। वित्त वर्ष 2017-18 को छोड़ दिया जाए तो इस सरकार ने हर बार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल किया है और इस वित्त वर्ष में भी ऐसा ही होगा। वित्त वर्ष 2017-18 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन के कारण राजस्व लक्ष्यों को लेकर अनिश्चितता थी।
दूसरे अधिकारी ने कहा, 'क्या हमें चुनावों से पहले लोकलुभावन घोषणाएं करने के पिछली सरकारों के दिनों में वापस जाना है या हमें वित्तीय विश्वसनीयता बनाए रखनी है। नोटबंदी जैसे आर्थिक नीतिगत फैसलों के लिए इस सरकार की आलोचना हुई है लेकिन विश्वसनीय बजट पेश करने के लिए इसकी सराहना भी की गई है।'
अलबत्ता अधिकारी मानते हैं कि राजकोषीय अनुशासन का चुनावी वास्तविकता के साथ संतुलन बैठाने की भी जरूरत है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में हार से सत्तारूढ़ दल पर ग्रामीण संकट और बेरोजगारी के समाधान के लिए उपायों की घोषणा करने का दबाव है। जैसे कि पहले खबर दी जा चुकी है कि केंद्र कृषि संकट से निपटने के लिए कई उपायों की घोषणा करने पर विचार कर रहा है। इनमें राष्ट्रव्यापी कीमत या आय समर्थन योजना शामिल है। इस बारे में सरकार में उच्च स्तर पर व्यापक चर्चा हो रही है और बजट में या उससे भी पहले इस संबंध में घोषणा हो सकती है। इससे सरकारी खजाने पर हर साल 600 से 700 अरब रुपये को बोझ पड़ सकता है और वित्त मंत्रालय इसे राज्यों के साथ साझा करने के विकल्पों पर विचार कर रहा है।
अलबत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह कृषि ऋण माफ करने वाली कांग्रेस की राज्य सरकारों की आलोचना कर रहे हैं, वह इस बात का संकेत है कि शायद केंद्र सरकार बजट में राष्टï्रीय कृषि ऋण माफी से परहेज करेगी। अंतरिम बजटों की परिपार्टी के मुताबिक जेटली निश्चित रूप से मोदी सरकार के इस कार्यकाल की घोषणाओं और उनके क्रियान्वयन के बारे में लेखाजोखा पेश करेंगे।
लेकिन अधिकारियों का कहना है कि यह सरकार की आगे की योजनाओं का भी दस्तावेज होगा। सरकार न केवल ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए अपनी योजना पेश करेगी बल्कि रोजगार सृजन, नोटबंदी और जीएसटी से प्रभावित छोटे और मझोले उपक्रमों, बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य विषयों पर आगे का खाका भी खींचा जाएगा।
जनवरी का महीना बजट बनाने की प्रक्रिया के लिए अहम होता है। बजट में अब केवल एक महीना का ही समय बचा है। ऐसे में वित्त मंत्रालय को प्रधानमंत्री कार्यालय से भी अहम सुझाव मिलेंगे। अधिकारियों ने कहा कि बजट के बारे में व्यापक विषयों, सरकार की सोच और राजकोषीय आंकड़ों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
इसी महीने बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में जेटली ने संकेत दिया कि वह पंरपरा को नहीं तोड़ेंगे और शायद व्यापक कर प्रस्तावों वाला बजट पेश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था, 'मैं परंपरा के मुताबिक चलूंगा जिसके मुताबिक चुनावी वर्ष में आप कुछ चीजें पेश करते हैं और कुछ नहीं।'
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