►किसानों को कर्ज के जाल से बचाने के लिए तेलंगाना सरकार ने 10 मई, 2018 को 'रैयत बंधु' नाम से कृषि निवेश समर्थन योजना शुरू की है। इस योजना को 2018-19 के खरीफ सत्र में लागू किया जा रहा है।
यह कैसे काम करता है?
योजना के तहत खरीफ व रबी दोनों सत्रों में किसानों को प्रति एकड़ 4,000-4000 रुपये का अनुुदान बीज, उर्वरक, मजदूरी आदि लागत के लिए देने का प्रावधान किया गया है।
इसके दायरे में कितने किसान हैं और कुल लागत कितनी है?
►करीब 59 लाख किसानों को इसमें शामिल किया जाएगा और खजाने पर करीब 120 अरब रुपये का बोझ पड़ेगा।
समस्या क्या है?
►पट्टे पर खेती करने वाले करीब 15 लाख किसान इसके दायरे में नहीं आएंगे, वहीं कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि देखना होगा कि इससे कीमतों में कमी की भरपाई के लिए किसानों की प्रत्यक्ष आय में मदद मिलेगी और यह सीधी खरीद का विकल्प नहीं है।
अगले साल होने वाले आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार किसानों की आय में कुछ मदद करने की संभावना तलाश रही है। इसके लिए विभिन्न मौजूदा योजनाओं में थोड़ा बदलाव कर उसकी स्वीकार्यता में सुधार लाकर किसानों को लाभ पहुंचाया जाएगा। मामले के जानकार अधिकारियों ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और इन विभागों के वरिष्ठ अफसरों तथा मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणयन के साथ इस पर गहन चर्चा की जा रही है।
तेलंगाना की 'रैयत बंधु' योजना की तर्ज पर देश भर में योजना को लागू करने की कुछ हद तक सहमति बनती दिखी है लेकिन शुरुआत में इसमें सीमांत किसानों को लक्षित किया जाएगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की भी इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की खबर है, जिसमें उन्होंने इस योजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी है।
बीते समय में ओडिशा और झारखंड ने रैयत बंधु की तर्ज पर प्रति परिवार प्रति एकड़ कुछ आय मुहैया कराने की घोषणा की है। केंद्र सरकार के अधिकारियों का अनुमान है कि देश भर में करीब 9 से 11 करोड़ लघु एवं सीमांत किसान हैं, जिन्हें पहले चरण में शामिल किया जा सकता है। हालांकि चुनिंदा जिलों में इस पहले प्रायोगिक तौर पर शुरू किया जाएगा। सीमांत किसानों को मूल योजना में शामिल नहीं किया गया है लेकिन केंद्र सरकार की योजना का उन्हें लाभ मिलेगा। हालांकि केंद्र सरकार ने राष्ट्रव्यापी कर्ज माफी की संभावना से इनकार किया है।
एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि किसानों के लिए फसल बीमा को पूरी तरह मुफ्त किया जा सकता है। इसके अलावा अल्पावधि कृषि ऋण के पुनर्भुगतान की अवधि को बढ़ाने के प्रस्ताव पर भी विचार किया गया। किसानों को आय मुहैया कराने की योजना पर सरकारी खजाने पर शुरुआती दौर में करीब 600 से 700 अरब रुपये का बोझ आने का अनुमान है।
अधिकारी ने कहा, 'वित्त विभाग इस पर काम कर रहा है कि कुल खर्च में केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी कितनी होगी, 70:30, 50:50 या कुछ और।' उन्होंने कहा कि जो भी तय हो वह स्वीकार्य स्तर पर होना चाहिए नहीं तो पूरी पहल थरी रह जाएगी। हालांकि आलोचकों का कहना है कि प्रत्यक्ष आय समर्थन से कृषि क्षेत्र की सभी समस्याएं दूर नहीं होंगी और इसकी जगह राज्य केंद्रित और फसल केंद्रित समाधान लाने पर ध्यान देना चाहिए।