केंद्र सरकार को अब तक इस्तेमाल न हुई राशि के रूप में करीब 200 अरब रुपये मिल सकते हैं। यह राशि जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर से प्राप्त अतिरिक्त राशि है, जिससे केंद्र सरकार को 2018-19 में राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, जो अक्टूबर में ही लक्ष्य पार कर चुका है। अतिरिक्त राशि का मतलब उस धनराशि से है, जो राज्यों को क्षतिपूर्ति उपकर वितरित करने के बाद बच गई है। यह राशि राज्यों को जीएसटी लागू होने के बाद उनके राजस्व में कमी की भरपाई के लिए मुहैया कराई गई है। प्रत्येेक राज्य का राजस्व हर साल 14 फीसदी बढऩे का अनुमान है, जिसके लिए आधार वर्ष 2015-16 तय किया गया है। लेकिन राजस्व वृद्घि अगर इससे कम होती है तो केंद्र राज्यों को उपकर निधि से उसकी भरपाई करता है।
पहले की खबरों के मुताबिक राज्यों की क्षतिपूर्ति के कुछ हिस्से को लेने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने जीएसटी क्षतिपूर्ति के कानून में संशोधन किया था, जिसे संसद के मॉनसून सत्र में पारित किया गया था। अधिकारियों के मुताबिक अभी इस संशोधन को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि यह अधिसूचना फरवरी तक जारी हो सकती है। अधिनियम की धारा 10 के खंड 3 में कहा गया है कि क्षतिपूर्ति राशि के बचे हिस्से का 50 फीसदी पांच साल बाद केंद्र की हिस्सेदारी के तौर पर देश की संचित निधि में चला जाएगा और शेष रकम राज्यों को उनके कुल जीएसटी राजस्व के अनुपात में बांट दिया जाएगा। लेकिन संशोधन के बाद अब नियम यह हो गया है कि बची रकम का 50 फीसदी पांच साल के दौरान किसी भी समय संचयी निधि में हस्तांतरित किया जा सकता है।
क्षतिपूर्ति उपकर मई से हर दो महीनों में राज्यों को वितरित किया जाता है। 2017-18 में क्षतिपूर्ति कोष में उपलब्ध अतिरिक्त राशि 141.8 अरब रुपये थी। इस साल अक्टूबर तक उपलब्ध अतिरिक्त राशि 252.5 अरब रुपये थी। क्षतिपूर्ति उपकर से प्राप्त औसत मासिक राशि करीब 80 अरब रुपये है। इस तरह चालू वित्त वर्ष के अगले पांच महीनों में 400 अरब रुपये की राशि प्राप्त होगी। अगर इनमें से 252.5 अरब रुपये जोड़ दें तो कुल धनराशि 625.5 अरब रुपये पर पहुंच जाएगी।
क्षतिपूर्ति उपकर कोष की करीब 60 फीसदी राशि राज्यों के राजस्व में कमी की भरपाई में खर्च होती है जबकि शेष राशि बची रह जाएगी। इसका मतलब है कि 391.5 अरब रुपये क्षतिपूर्ति उपकर के रूप में इस्तेमाल किए जाएंगे और इससे 261 अरब रुपये बच जाएंगे। अगर इसमें 2017-18 में बची अतिरिक्त राशि 141.8 अरब रुपये को भी जोड़ दें तो कुल धनराशि 402.8 अरब रुपये हो जाती है। इनमें से आधी राशि 201.4 अरब रुपये केंद्र को मिलेगी और आधी राज्यों को मिलेगी।
ईवाई में पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा, 'संशोधन प्रभावी होने के बाद सरकार जीएसटी परिषद की सिफारिश पर अतिरिक्त जीएसटी उपकर संग्रह को केंद्र और राज्यों के बीच बांट सकती है।' उन्होंने कहा कि अतिरिक्त संग्रह के वितरण से यह केंद्र और राज्यों के लिए अतिरिक्त राजस्व होगा। हालांकि दिसंबर में 17 वस्तुओं पर जीएसटी की दर घटाए जाने से जीएसटी संग्रह पर दबाव आ सकता है। लेकिन अनुपालन में सुधार से इस कमी की भरपाई हो सकती है।
डेलॉयट में पार्टनर एम एस मणि ने कहा कि हाल में जीएसटी की दर में कटौती से अल्पावधि में संग्रह पर दबाव बढ़ेगा। लेकिन पिछले अनुभव यह संकेत देते हैं कि कर की दर उचित स्तर पर होने से करदाताओं में बढ़ोतरी होती है, जिससे राजस्व में भी इजाफा होता है।
अप्रैल-अक्टूबर में राजकोषीय घाटा 6.49 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया जो पूरे साल के 6.24 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य से अधिक है। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है। राजस्व संग्रह में कमी की सबसे बड़ी समस्या जीएसटी संग्रह कम होना है। अनुमान है कि जीएसटी से वित्त वर्ष 2019 के लिए 12 लाख करोड़ रुपये राजस्व संग्रह के लक्ष्य में 700 अरब रुपये से 1 लाख करोड़ रुपये की कमी आ सकती है। हालांकि इसका सारा बोझ केंद्र सरकार पर ही नहीं पड़ेगा। अलबत्ता, जीएसटी संग्रह में इस कमी की भरपाई प्रत्यक्ष कर संग्रह, विनिवेश और अधिशेष उपकर राशि से की जा सकती है।
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