नोटबंदी की घोषणा के तीन महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश के छोटे किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था। उसके बाद दो साल के भीतर सात राज्य किसानों पर बैंकों का 1.8 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक बकाया माफ करने की घोषणा कर चुके हैं। यह राशि इन राज्यों के वार्षिक राजस्व व्यय के करीब 15 फीसदी के बराबर है। लेकिन जमीन पर किसान कर्ज माफी की सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां करती है।
किसान कर्ज माफी की प्रक्रिया शुरू करने वाले चार राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और कर्नाटक में अब तक किसानों का केवल 40 फीसदी कर्ज ही माफ किया गया है। शुरुआत में इससे जितने किसानों को फायदा पहुंचने की बात कही गई थी, उनमें से केवल आधे किसानों को ही इसका लाभ मिला है।
उदाहरण के लिए अप्रैल, 2017 में उत्तर प्रदेश में छोटे और सीमांत किसानों का अधिकतम एक लाख रुपये माफ करने की घोषणा की गई थी। इससे 86 लाख किसानों का 364 अरब रुपये का कर्ज माफ किया जाना था। 21 महीने बीत जाने के बाद केवल 44 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया है। इस पर 247 अरब रुपये खर्च किए गए हैं जो योजना का 68 फीसदी है। लेकिन कृषि ऋण पर इसका प्रभाव पड़ा है।
चारों राज्यों में कृषि ऋण की घोषणा के बाद वाले वर्ष में किसानों के लिए कृषि ऋण वितरण में कमी आई है। उत्तर प्रदेश में अप्रैल से सितंबर के दौरान वार्षिक ऋण लक्ष्य का 44 फीसदी हिस्सा वितरित किया जाता था लेकिन 2017-18 और 2018-19 में यह 34 फीसदी रहा।
रिपोर्टों के मुताबिक मध्य प्रदेश में भी राज्य सरकार कई चरणों में किसानों का कर्ज माफ करने की योजना बना रही है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह प्रक्रिया में नौ महीने का समय लग सकता है। यानी यह सितंबर 2019 में पूरी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि किसान कर्ज माफी योजना की धीमी प्रगति के कई कारण हैं। इसका पहला कारण यह है कि राज्य सरकारी खजाने पर बोझ को कम करने के लिए इसे दो-तीन साल में पूरा करते हैं।
साथ ही किसान को अपनी पात्रता साबित करने के लिए बहुत कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में कर्ज में डूबा कोई किसान अगर सरकारी कर्मचारी है या वह गैर कृषि आमदनी पर कर चुकाता है या तीन लाख रुपये से अधिक की सालाना कमाई वाला उपक्रम चलाता है या किसी भी सहकारी संस्था में अधिकारी है तो उसे कर्ज माफी का फायदा नहीं मिलेगा।
कर्नाटक में शर्तें इतनी सख्त नहीं हैं लेकिन सहकारी बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों को प्राथमिकता दी जा रही है जबकि वाणिज्यिक बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का कर्ज माफ करने की प्रक्रिया बहुत धीमे चल रही है। इसकी तुलना में उत्तर प्रदेश में किसान कर्ज माफी का फायदा पांच एकड़ से कम जोत वाले किसानों को दिया गया है और इसके साथ कोई बड़ी शर्त नहीं लगाई गई है। उत्तर प्रदेश के अधिकारियों का कहना है कि इसी वजह से राज्य में किसान कर्ज माफी योजना की प्रगति तेज है। दूसरे राज्यों ने इसे छोटे और सीमांत किसानों तक सीमित नहीं किया है।