चीन और अमेरिका के बीच तकनीकी श्रेष्ठता की जंग | आकाश प्रकाश / December 14, 2018 | | | | |
अमेरिका और चीन के बीच चल रहा संघर्ष शुल्क दरों या व्यापार घाटे का है ही नहीं। यह पूरी लड़ाई तकनीकी श्रेष्ठता से जुड़ी हुई है। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं
गत शनिवार को अमेरिकी अधिकारियों के अनुरोध के बाद हुआवेई की मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) को वैंकूवर हवाई अड्डे पर गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप यह था कि उनकी कंपनी अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करते हुए ईरान को उपकरणों की आपूर्ति कर रही है। हुआवेई चीन की प्रमुख दूरसंचार उपकरण और स्मार्ट फोन निर्माता कंपनी है। 50,000 करोड़ डॉलर के कारोबार वाली यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी दूरसंचार उपकरण कंपनी है, जिसकी दुनिया भर में पहुंच है। यह नए 5जी मोबाइल मानकों में चीनी दबदबे का नेतृत्व कर रही है। यह उन चुनिंदा चीनी कंपनियों में से एक है जो व्यापकता और संसाधनों के मामले में वैश्विक तकनीकी हार्डवेयर क्षेत्र से मुकाबला कर सकती है। वह दूरसंचार उपकरण और तकनीक क्षेत्र में दुनिया की अव्वल कंपनियों में शुमार है। कंपनी के संस्थापक के सैन्य अतीत के कारण चीनी सशस्त्र बलों से कंपनी के रिश्तों का संदेह हमेशा से जताया जाता रहा है। सीएफओ मेंग वानझाऊ उन्हीं की बेटी हैं।
इस गिरफ्तारी के कंपनी के निवेशकों के लिए दीर्घावधि में कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बाजार में शुरुआती अस्थिरता का सामना तो पहले ही किया जा चुका है। यह किसी वरिष्ठ कारोबारी अधिकारी की सामान्य गिरफ्तारी का मामला नहीं है। पहली बात तो यह कि इसके बाद टैरिफ को लेकर कोई भी डील करना बहुत अधिक मुश्किल हो गया है और इसे पूरा करना जटिल हो गया है। चीनी प्रशासन टैरिफ को लेकर किसी भी तरह की सौदेबाजी के पहले मेंग की रिहाई की मांग करेगा। चीन के नजरिये से यह गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित है। मेंग की गिरफ्तारी की पर वार्ता करना आसान नहीं होगा क्योंकि उनके खिलाफ आरोप आपराधिक हैं और अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा संचालित हैं। यह मामला दूरसंचार कंपनी जेडटीई जैसा नहीं है जिसके खिलाफ वाणिज्य विभाग ने कार्रवाई की है। जाहिर है मेंग के खिलाफ लगे आरोपों को व्यापार वार्ता के मोर्चे पर नहीं बदलवाया जा सकता। इस गिरफ्तारी ने चीनी प्रतिष्ठान को बड़ा झटका दिया है।
अमेरिका ने इस बार अलग तरह की सख्ती दिखाई है। चीन कनाडा से कह चुका है कि अगर वह मेंग को रिहा नहीं करता और उन्हें अमेरिका प्रत्यर्पित करने की प्रक्रिया को रोकता नहीं है तो उसे लंबी अवधि में इसके आर्थिक परिणाम झेलने होंगे। व्यापारिक समझौते और भविष्य का तनाव रोकने में जहां दोनों देशों का हित है, वहीं मेंग की गिरफ्तारी इस प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाएगी। इससे व्यापारिक मोर्चे पर शांति की पूरी प्रक्रिया बेपटरी हो सकती है। चीन अमेरिका को उस वक्त किसी भी तरह की रियायत कैसे दे सकता है जबकि मेंग पहले ही हिरासत में हैं। यह उसकी छवि को बहुत बड़ा धक्का पहुंचाने वाली बात होगी। इसके अलावा व्यापार वार्ताओं को न्याय विभाग का आपराधिक जांच की प्रक्रिया पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। देखना होगा कि यह समस्या कैसे हल होती है।
दूसरी बात यह है कि भले ही शुल्क दरों को लेकर कोई समझौता हो जाए लेकिन अमेरिका के पास ऐसे कई हथियार हैं जिनका इस्तेमाल वह आर्थिक और तकनीकी शीतयुद्ध में कर सकता है। शुल्क दरों को लेकर किसी भी तरह का समझौता यह नहीं बताता कि अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक शीतयुद्ध थम जाएगा। अमेरिका हर कीमत पर अपनी तकनीकी श्रेष्ठता कायम रखना चाहता है। कुछ हालिया घटनाओं पर नजर डालते हैं। मेंग की गिरफ्तारी से परे अमेरिका ने अपने सभी सहयोगियों को यह यकीन दिलाने का प्रयास किया है कि वे अपने दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को हुआवेई के 5जी उपकरण खरीदने से रोकें। इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील दी गई है। अमेरिका ने सिलिकन वैली में चीन के वेंचर कैपिटल निवेश पर काफी कड़ाई कर दी है। यानी वैली की उच्च तकनीक तक चीन की पहुंच नहीं रह गई है। जेडटीई पर निर्यात नियंत्रण लागू कर दिया गया है, यानी कोई अमेरिकी कंपनी अब उसे कलपुर्जे नहीं दे सकती। अगर शी चिनफिंग हस्तक्षेप नहीं करते तो कंपनी की हालत खराब होनी तय थी।
चीन की चिप निर्माता कंपनी फुजियन शिन्हुआ पर भी निर्यात नियंत्रण लगाए गए, यानी कोई अमेरिकी कंपनी उन्हें कोई जिंस, तकनीक या सॉफ्टवेयर उपलब्ध नहीं कर सकती। जाहिर है अमेरिकी सेमी कंडक्टर के अभाव में फुजियन शिन्हुआ मेमोरी चिप का निर्माण नहीं कर पाएगी। निर्यात पर नियंत्रण अमेरिका का एक बड़ा हथियार है। कठिन हकीकत यह है कि चीन तेल की तुलना में कहीं अधिक मूल्य के सेमीकंडक्टर का आयात कतरा है। अगर अमेरिका सेमीकंडक्टर मिलने या सेमीकंडक्टर बनाने वाले उपकरण मिलने बंद हो गए तो चीन की तकनीकी क्षेत्र की कंपनियां ठप हो जाएंगी। कई विशिष्ट सेमी कंडक्टरों के मामले में तो अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं का कोई विकल्प ही नहीं है।
चीन के तकनीकी क्षेत्र का गौरव मानी जाने वाली हुआवेई पर भी अगर अमेरिकी कंपनियों से खरीद पर प्रतिबंध लगा तो कंपनी घुटनों पर आ जाएगी। कंपनी के 90 शीर्ष आपूर्तिकर्ताओं में से 33 अमेरिकी कंपनियां हैं। इनमें इंटेल से लेकर क्वालकॉम और माइक्रोसॉफ्ट तक सभी शामिल हैं। अगर अमेरिका इन कंपनियों को हुआवेई को आपूर्ति करने से रोक देता है तो इस तकनीकी दिग्गज कंपनी पर बहुत बुरा असर होगा। अमेरिका और चीन के बीच का आर्थिक शीतयुद्घ टैरिफ या व्यापार घाटे के बारे में है ही नहीं। यह पूरा मामला तकनीक से जुड़ा हुआ है। अमेरिका अहम प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी बढ़त कायम रखना चाहता है। इसमें सेमी कंडक्टर और कृत्रिम मेधा जैसी तकनीक अहम हैं। चीन किसी भी कीमत पर उसकी बराबरी करना चाहता है।
व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो या नहीं, यह लड़ाई थमेगी नहीं। बाजार भले ही शुल्क दरों में कमी का जश्न मनाएं लेकिन यह तेजी स्थायी नहीं है। अमेरिका के पास टैरिफ के अलावा कई हथियार हैं जिनसे वह चीन को नुकसान पहुंचा सकता है। अमेरिकी कंपनियों पर निर्यात नियंत्रण ऐसा ही उपाय है। वह इन वैकल्पिक हथियारों के इस्तेमाल की इच्छा दिखा रहा है। इन मसलों को लेकर बाजार में अस्थिरता का दौर बरकरार रहेगा। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में शामिल तकनीकी कंपनियों पर दबाव बना रहेगा। चीन अपना सेमीकंडक्टर उद्योग तैयार कर सकता है लेकिन इसमें कम से कम एक दशक का वक्त लग जाएगा। उसके पास माइक्रोप्रोसेसर या जीपीयू विनिर्माण की क्षमता नहीं है। वह सेमीकंडक्टर कैपिटल उपकरण भी नहीं बना सकता। जब तक वह अपनी निर्भरता कम नहीं करता, वह अमेरिकी दबाव में रहेगा। आने वाले दिनों में यह जोखिम बना रहेगा।
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