दास के समक्ष अल्पावधि चुनौतियांभारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 25वें गवर्नर शक्तिकांत दास को ऐसे कई मुद्दों से निपटना होगा जिनका सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच सेतु तैयार करने के प्रयास में तुरंत समाधान निकालना जरूरी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि नोटबंदी के कट्टर समर्थक दास नकदी को लेकर आरबीआई से सरकार की बढ़ती मांग को किस तरह से पूरा करेंगे और कुछ कमजोर बैंकों को त्वरित सुधारात्मक कदम (पीसीए) के दायरे से बाहर कैसे निकालेंगे। इसके अलावा सरकार गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के लिए विशेष तरलता के पक्ष में है जिसे लेकर आरबीआई का रुख अब तक सख्त बना हुआ है। केंद्र चाहता है कि आरबीआई खासकर विद्युत क्षेत्र के ऋणों के मामले में एक-दिवसीय सख्त दिवालिया नियम को नरम बनाए। साथ ही सरकार की यह मांग भी है कि आरबीआई अपने सख्त रुख में बदलाव लाए और दरों को नीचे लाए। आरबीआई का इतिहास रहा है कि सरकारी प्रशासकों का इस केंद्रीय बैंक पर नियंत्रण रहा है और इससे उसकी स्वायत्तता प्रभावित हुई है। हाल के समय में, बिमल जालान, वाई वी रेड्डी, और डी सुब्बाराव आरबीआई गवर्नर बनने से पहले सरकार में शामिल थे और उन्होंने सभी हमलों के खिलाफ आरबीआई का आधार मजबूत बनाया। दास से भी इस परंपरा को आगे बढ़ाए जाने की उम्मीद की जा रही है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि किसी अर्थशास्त्री को आरबीआई गवर्नर बनाए जाने की जरूरत नहीं है, खासकर इसलिए क्योंकि एक डिप्टी गवर्नर हमेशा अर्थशास्त्री रहा है। दास के मामले में, मौद्रिक नीति विभाग की जिम्मेदारी अर्थशास्त्री विरल आचार्य संभालेंगे। गवर्नर 6 सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति का हिस्सा है जिसमें पॉलिसी दर पर निर्णय लेने के लिए तीन बाहरी सदस्य प्रख्यात अर्थशास्त्री हो सकते हैं। इस संदर्भ में, दास के समक्ष अल्पावधि चुनौतियां निम्नलिखित हैं - पीसीए ढांचा पीसीए ढांचा नया नहीं है, लेकिन ऊर्जित पटेल के नेतृत्व में इसे बेहद सख्त बना दिया गया। अब 12 बैंक (11 सरकारी स्वामित्व वाले और एक निजी) पीसीए में शामिल हैं। पीसीए के तहत बैंक को पहले की तरह उधार देने या जमाएं स्वीकार करने की अनुमति नहीं होती है। सरकार चाहती है कि आरबीआई कुछ शर्तों में ढील दे जिससे कि कुछ बैंक पीसीए के दायरे से बाहर आ सकें और पहले की तरह उधारी को बहाल कर सकें। 19 नवंबर की बोर्ड बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि आरबीआई का बोर्ड फॉर फाइनैंशियल सुपरविजन इस मामले में फैसला लेगा। आर्थिक पूंजी ढांचा आर्थिक पूंजी ढांचा यह तय करता है कि आरबीआई के रिजर्व का किस तरह से प्रबंधन किया जाए और आरबीआई लाभांश भुगतान के अलावा कितनी रकम हर साल सरकार को स्थानांतरित कर सकता है। 19 नवंबर की बोर्ड बैठक में यह स्पष्ट हुआ था कि केंद्रीय बैंक के पिछले रिजर्व को नहीं छुआ जाएगा। सरकार के अनुसार, कई केंद्रीय बैंक अपनी परिसंपतित का 12-13 प्रतिशत हिस्सा रिजर्व के तौर पर रखते हैं, लेकिन आरबीआई के मामले में यह 27 प्रतिशत है। इसलिए रिजर्व हिस्से का 3-4 लाख करोड़ रुपया स्थानांतरित करने की मांग की गई। इसे लेकर लंबी चर्चा चली, लेकिन आरबीआई के अधिकारी सफल रहे। 14 दिसंबर की बोर्ड बैठक में यदि इस विषय को फिर से उठाया जाता है तो दास को आरबीआई के एजेंडे को आगे ले जाना होगा। एनबीएफसी के लिए विशेष नकदी व्यवस्था आरबीआई के अधिकारियों (डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य समेत) ने यह स्पष्ट किया है कि केंद्रीय बैंक अंतिम उपाय के तौर पर ऋणदाता है, महज एक कंपनी पर निर्भर रहने के बजाय व्यवस्था-आधारित तरलता मुहैया कराने पर जोर दिया जाना चाहिए। एनबीएफसी देश में अनुमानित तौर पर एक-चौथाई ऋण मुहैया कराते हैं और इस सेगमेंट में नकदी पर सख्ती से ऋण व्यवस्था पर दबाव बढ़ता है। सरकार इस समस्या को टालना चाहती है और वह यह सुनिश्चित करने के लिए नए गवर्नर पर नियंत्रण बनाए रखेगी कि एनबीएफसी क्षेत्र को पर्याप्त नकदी मिले। एक दिन का डिफॉल्ट मानक आरबीआई के 12 फरवरी के सर्कुलर ने कॉरपोरेट सेक्टर को चिंतित कर दिया है और इससे सरकार के समक्ष नियमों को आसान बनाने की चुनौती पैदा हुई है। सरकार चाहती थी कि आरबीआई कम से कम विद्युत क्षेत्र पर कम सख्ती दिखाए, लेकिन केंद्रीय बैंक ने इससे इनकार कर दिया। केंद्रीय बैंक ने विद्युत क्षेत्र के ऋणों पर कैबिनेट समिति में अपना प्रतिनिधि भी भेजना मुनासिब नहीं समझा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दास के नेतृत्व में आरबीआई एक-दिवसीय डिफॉल्ट मानक को नरम बनाती है या नहीं। मानक के तहत यदि कोई कर्जदार कंपनी 90 दिन के बाद ऋण चुकाने में विलंब करती है तो बैंक वसूली प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
