हिमाचल ने फंसाई एसजेवीएन की हिस्सेदारी बिक्री | श्रेया जय और अरूप रायचौधरी / नई दिल्ली December 07, 2018 | | | | |
बिजली वित्त निगम (पीएफसी) और ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी) के बीच बड़े सौदे के बाद केंद्र की एचजेवीएन लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी एनटीपीसी लिमिटेड को बेचने की योजना हिमाचल प्रदेश सरकार की मंजूरी के स्तर पर अटकी है। राज्य सरकार की एसजेवीएन लिमिटेड में 26.85 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो 2 गीगावॉट क्षमता की पनबिजली परियोजना चलाती है। एनटीपीसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि कंपनी का एसजेवीएन में भारत सरकार की 63.79 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव पिछले डेढ़ साल से मंजूरी के लिए लंबित है। इससे केंद्र सरकार को करीब 70 अरब रुपये मिलेंगे।
एक अधिकारी ने कहा, 'एसजेवीएन में हिस्सेदारी लेने में लाभ है क्योंकि उनके पास पनबिजली परियोजना है और इससे कंपनी की गैर जीवाश्म ईंधन के स्रोत में हिस्सेदारी बढ़ेगी। इस सौदे में प्रबंधन पर एनटीपीसी का नियंत्रण शामिल है। अगर अधिग्रहण होता है तो एसजेवीएन कंपनी के अन्य संयुक्त उद्यमोंं की तरह काम करेगी।' गुरुवार को मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलोंं की समिति (सीसीईए) ने आरईसी में सरकार की 52.63 प्रतिशत हिस्सेदारी की रणनीतिक बिक्री पीएफसी को करने और प्रबंधन पर नियंत्रण के हस्तांतरण की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। सरकार के इस कदम से केंद्र सरकार को वित्त वर्ष 2019 में 800 अरब रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी।
पीएफसी-आरईसी सौदे के अलावा भारत 22 एक्सचेंज ट्रेडेड फंड और एयर इंडिया की ग्राउंड हैंडलिंग इकाई की बिक्री सहित कुछ अन्य सौदों पर काम चल रहा है। सूत्रों ने यह भी कहा कि सरकार अभी भी एसजेवीएन में केंद्र की हिस्सेदारी एनटीपीसी को बेचने पर विचार कर रही है। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'हिमाचल प्रदेश, जिसकी हिस्सेदारी 26.78 प्रतिशत है, की कुछ आपत्तियां हैं। हम उनके मसले को समझने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में अभी कुछ भी तय नहीं है।' वित्त वर्ष 2018 मेंं दीपम ने रिकॉर्ड 1 लाख करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाए थे, जबकि 725 अरब रुपये का लक्ष्य था। इसका बड़ा हिस्सा ओएनजीसी द्वारा हिंदुस्तान पेट्रोलियम के अधिग्रहण से आया था और इससे 396 अरब रुपये मिले थे। पीएफसी-आरईसी सौदे में भी केंद्र सरकार ऐसी ही उम्मीद कर रही है।
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