विकसित देशों पर लगा पेरिस समझौते से बचने का आरोप | नितिन सेठी / नई दिल्ली December 03, 2018 | | | | |
भारत, चीन सहित कई आम सहमति वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) के समूह ने जलवायु परिवर्तन पर यूएन कॉन्फ्रेंस के पहले दिन अपनी प्राथमिकताएं सामने रख दी। इस कान्फ्रेंस की शुरुआत 2 दिसंबर को कटोविस, पोलैंड में हुई। इन देशों ने संकेत किया कि विकसित देश पेरिस समझौते के कुछ खास प्रावधानों से खुद को अलग कर रहे हैं जो कि विकासशील देशों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी और अनुकूलता महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी ओर से यह हस्तक्षेप तब किया गया जब सप्तहांत में बंद कमरे में यह चर्चा हो रही थी कि पेरिस समझौते की नियम पुस्तिका की आकृति और सामग्री को लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच में बड़े मतभेद हैं। कटोविस चर्चा इस नियम पुस्तिका को लिखने का काम दो हफ्तों में पूरी करने पर केंद्रित है।
एलएमडीसी समूह की तरफ से बोलते हुए ईरानी वार्ताकार मजिद शफीपुर ने कहा, 'जब विकसित देश पेरिस समझौते की धारा 9.5 के तहत वित्त पर प्रत्याशित सूचना के लिए रूपरेखा पर चर्चा नहीं करना चाहते या जब वे सही अर्थों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण चर्चा में शामिल नहीं होते तब इसका स्पष्ट संदेश है कि विकसित देश विकासशील देशों की सहायता करने और काफी समय से लंबित अपनी प्रतिबद्घताओं को पूरा करने में रुचि नहीं ले रहे हैं। यह स्थिति विश्वास बहाली में सहायक नहीं है और इससे विश्वसनियता का क्षरण होता है।'
वह राष्ट्रों के अफ्रीकी समूह (इसमें सभी अफ्रीकी देशों के वार्ताकार शामिल हैं), अरब समूह और एलएमडीसी के साझे मांग का संदर्भ दे रहे थे। इन तीन राष्ट्र समूहों ने मांग की है कि धनी देश पहले व्यवस्थित तरीके से यह बताएं कि वे किस तरह से 2021 से विकासशील देशों को जलवायु वित्त मुहैया कराएंगे। उन्होंने यह भी मांग की कि पेरिस समझौते की नियम पुस्तिका में स्पष्ट तौर पर इसका उल्लेख किया जाए कि किस तरह से इस सूचना की समीक्षा की जाएगी और सभी की ओर से इस पर काम किया जाएगा।
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