कंपनी रजिस्ट्रार को सशक्त करने की पहल पड़ेगी भारी! | वीणा मणि, विनय उमरजी, अद्वैत राव पालेपू, अभिषेक रक्षित और टी ई नरसिम्हन / December 02, 2018 | | | | |
न्यायिक सक्षमता बढ़ाने और कंपनियों के नियम अनुपालन की दिशा में उठाए गए कदमों के बीच संतुलन साधने के लिए सरकार ने कंपनी रजिस्ट्रार को अधिक अहमियत देने का फैसला किया है। कंपनी रजिस्ट्रार की प्राथमिक भूमिका कंपनियों और सीमित दायित्व वाली फर्मों का पंजीकरण करने की है। इसके अलावा इन कारोबारों का संचालन कंपनी कानून के वैधानिक प्रावधानों के मुताबिक कराना भी कंपनी रजिस्ट्रार का ही दायित्व होता है। कंपनी मामलों के मंत्रालय की एक विशेषज्ञ समिति के सुझाव पर सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (एनसीएलटी) में निहित कुछ शक्तियों को कंपनी रजिस्ट्रार या क्षेत्रीय निदेशकों को देने की व्यवस्था की है। अब ये अधिकारी कंपनी के वित्त वर्ष में बदलाव, एक सार्वजनिक कंपनी को निजी कंपनी में तब्दील करने और शुल्कों के पंजीयन में सुधार के लिए जिम्मेदार होंगे। कंपनी रजिस्ट्रार कंपनियों के विलय एवं अधिग्रहण से संबंधित मंजूरी भी दे सकता है। इससे एनसीएलटी पर बढ़ रहा बोझ कम करने में मदद मिलेगी।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि एक बार नियम तय हो जाने के बाद क्षेत्रीय निदेशक और कंपनी रजिस्ट्रार को पेनल्टी लगाने के लिए लिखित दिशानिर्देशों के हिसाब से ही चलना होगा। इस नियम से ही तय होगा कि किसी प्रावधान के अनुपालन में देरी पर कंपनी पर कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए। चूक करने पर कंपनी को ऑनलाइन नोटिस ही भेजे जाएंगे। हालांकि कंपनी रजिस्ट्रार या क्षेत्रीय निदेशक के आदेश के खिलाफ अपीलीय निकाय एनसीएलटी ही होगा। सरकार के आकलन के मुताबिक एनसीएलटी में करीब 40 फीसदी मामले कंपनियों की अपनी सालाना रिपोर्ट और अन्य जरूरी दस्तावेज जमा न करने से संबंधित होते हैं। अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल कंपनी कानून के उल्लंघन से जुड़े करीब 6,000 मामले एनसीएलटी में लंबित हैं जबकि ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया समाधान से संबंधित करीब 4,000 मामले अधिकरण के विभिन्न पीठों में विचाराधीन हैं। नए नियम बनने से एनसीएलटी दिवालिया और कंपनी कर्ज जैसे मामलों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर पाएगा।
सवाल है कि क्षेत्रीय निदेशकों एवं कंपनी रजिस्ट्रार को सशक्त करने और अधिक दायित्व देने के बाद क्या इन निकायों में प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए अधिक श्रमशक्ति की जरूरत पड़ेगी? कंपनी मामलों के मंत्रालय का मानना है कि ऐसा नहीं होगा। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि कंपनी रजिस्ट्रार को सौंपे गए अतिरिक्त दायित्व प्रशासनिक प्रकृति के हैं लिहाजा उनके निष्पादन के लिए अतिरिक्त लोगों की जरूरत नहीं होगी। हालांकि एनसीएलटी पहले से विचाराधीन मामलों की सुनवाई करता रहेगा।
अहमदाबाद
गुजरात के प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र अहमदाबाद में स्थित कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय में युवा लेखा पेशेवरों की आमद जारी है। आम तौर पर शांत रहने वाली इस दो मंजिली इमारत में चहल-पहल बढ़ गई है। हाल में जारी अध्यादेश के बाद मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी युवा पेशेवरों का साक्षात्कार ले रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक रजिस्ट्रार कार्यालय में काम का बोझ बढऩे की संभावना को देखते हुए इन पेशेवरों को अनुबंध पर रखने के लिए ये साक्षात्कार हो रहे हैं। अहमदाबाद के रजिस्ट्रार कार्यालय में कई स्थान रिक्त होने से मौजूदा स्टाफ पर काम का बोझ पहले से ही है। ऐसे में नियामकीय दायित्व सौंपे जाने से काम का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
हालांकि पिछले वर्षों में कई नियमों का अनुपालन डिजिटल स्वरूप में होने लगा है फिर भी कंपनी मामलों के मंत्रालय के विभिन्न कार्यालयों में फाइलों का ढेर लगा हुआ है। गुजरात के कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय में करीब 80,000 कंपनियां पंजीकृत हैं। हालांकि स्थानीय उद्योग से जुड़े लोगों और पेशेवरों की इस बारे में राय बंटी हुई है। जहां कुछ लोग इस उम्मीद में इसका स्वागत कर रहे हैं कि कंपनी रजिस्ट्रार को अधिक ताकत मिलेगी और कंपनियों को एनसीएलटी के पास जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी। वरिष्ठ सलाहकार सुनील पारेख कहते हैं, 'एक बार मामला एनसीएलटी में जाने के बाद कंपनी की छवि पर असर पड़ता है। वहीं अगर मामला कंपनी रजिस्ट्रार के ही पास है तो फिर लोग उसे एक रोजमर्रा की पड़ताल के तौर पर देखेंगे।'
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इस कदम से कंपनी प्रशासन में लालफीताशाही बढ़ सकती है। चार्टर्ड अकाउंटेंट की राष्ट्रीय संस्था आईसीएआई के अहमदाबाद प्रभारी रह चुके यमल व्यास का कहना है कि कंपनी रजिस्ट्रार को अधिक शक्तियां देने से कदाचार बढ़ सकता है। हालांकि इस प्रक्रिया का इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रबंधन किए जाने पर ऐसी चिंताएं बेअसर हो सकती हैं।
मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले शहर में नौकरशाही और उद्योग जगत दोनों ही नए बदलाव को लेकर काफी उत्साही नजर आ रहे हैं। मुंबई स्थित कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय में तैनात अधिकारियों का मानना है कि एनसीएलटी में मंत्रालय की तरफ से दायर किए जाने वाले करीब 90 फीसदी मामले अब क्षेत्रीय निदेशकों के पास चले जाएंगे। इससे कंपनियों पर वैधानिक अनुपालन का स्तर भी बढ़ जाएगा। पश्चिम क्षेत्र में अनुपालना दर 70-80 फीसदी के बीच है। ऐसे में नए नियम अनुपालन नहीं कर रही कंपनियों को भी दायरे में लाने में मददगार होंगे।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बदलाव से नियामकीय लालफीताशाही में कमी आने की उम्मीद जताते हुए कहा कि चूक करने वाली कंपनी सीधे कंपनी रजिस्ट्रार के दायरे में आएगी और दंडित करने के लिए अदालतों के चक्कर नहीं काटने होंगे। हालांकि ई-निर्णयन प्रणाली के डिजाइन एवं क्रियान्वयन की दिशा में चर्चाओं का दौर जारी है। कंपनी मंत्रालय में विधिक अभियोजन के निदेशक संजय शौरी कहते हैं कि अध्यादेश आने से मामले दर्ज होने और अभियोजन में कमी आएगी। शौरी कहते हैं, 'आज कंपनियों के खिलाफ अभियोजन में बड़ी हिस्सेदारी सालाना रिपोर्ट फाइल न करने की होती है। नए नियम से मंत्रालय की अभियोजन टीम पर भी काम का बोझ कम होगा।' भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के पूर्व अध्यक्ष एस एन अनंत सुब्रमण्यन कहते हैं, 'यह बेहतरी के लिए किया गया बदलाव है और इससे कारोबारी सुगमता पर जोर देने एवं फर्जी कंपनियों पर लगाम लगाने का रास्ता साफ होगा।'
कोलकाता
पूर्वी भारत के मुख्य व्यावसायिक केंद्र कोलकाता स्थित कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय खुद को नई जिम्मेदारी के लिए तैयार करने में लगा हुआ है। फिलहाल यह हर महीने पांच मामले ही देखता है लेकिन नए नियम आने के बाद उसे करीब 200 मामले हर महीने निपटाने पड़ सकते हैं। इस तीन मंजिली इमारत में 60 लोग तैनात हैं लेकिन कानूनी टीम तो बहुत ही छोटी है। केवल एक अभियोजक होने से इस कार्यालय में बढऩे वाली मामलों की भीड़ से निपट पाना मुश्किल होगा। अधिकारियों का कहना है कि मजबूत डिजिटल ढांचा होने के बावजूद रजिस्ट्रार कार्यालय में कागजात की देखरेख और अन्य कार्यों के लिए अनुबंध पर कुछ लोगों को रखना जरूरी हो जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि फर्जी कंपनियों के लिए इस ढांचे में खुद को बचाकर रख पाना मुश्किल हो जाएगा। संशोधन में रजिस्ट्रार को यह अधिकार मिला है कि वह संदेह के घेरे में आई कंपनी के पते पर जाकर उसका भौतिक सत्यापन कर सकता है।
कोलकाता के रजिस्ट्रार कार्यालय में आने वाले करीब 80 फीसदी मामले सालाना विवरण न जमा करने जैसी चूक के ही होते हैं। देश भर में पंजीकृत 12 लाख कंपनियों में से 2.1 लाख कंपनियां कोलकाता रजिस्ट्रार कार्यालय से संबद्ध हैं। लेकिन इनमें से 1.3 लाख कंपनियां ही सक्रिय स्थिति में हैं। कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय के सूत्रों का मानना है कि अध्यादेश में नियम अनुपालना में चूक पर अधिक दंड का प्रावधान होने से यहां संग्रह में चार से दस गुनी तक बढ़ोतरी हो सकती है।
चेन्नई
दक्षिणी भारत के मुख्य कारोबारी केंद्र चेन्नई स्थित कंपनी रजिस्ट्रार में 35 लोग ही तैनात हैं जिनमें अनियमित कर्मचारी भी शामिल हैं। इनमें रजिस्ट्रार को लेकर महज पांच अधिकारी ही हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तमिलनाडु में 1.36 लाख कंपनियां पंजीकृत हैं। इनमें से 64,902 कंपनियां सक्रिय स्थिति में हैं। ऐसे में अध्यादेश के बाद काम का बोझ बढऩे की आशंका जताई जा रही है। हालांकि अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा स्टाफ उल्लंघनों की जांच करने के योग्य हैं लेकिन नई भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है।
हालांकि कुछ उद्योग जानकार इस बात को लेकर आशंकित हैं कि यह प्रशासकीय मशीनरी अद्र्ध-न्यायिक कार्यों का निष्पादन किस तरह कर पाएगी? कर सलाहकार एवं वकील के वैदीश्वरन कहते हैं, 'जब किसी मामले में पेनल्टी का प्रावधान हो तो उसका निर्णय किसी अद्र्ध-न्यायिक संस्था पर ही छोडऩा हमेशा बेहतर होता है। नोटिस भेजने वाली संस्था ही अगर पेनल्टी का भी फैसला करेगी तो इससे मकसद नहीं हासिल हो पाएगा।' कुछ बड़ी एवं छोटी कंपनियों के अधिकारियों का मानना है कि अपने क्षेत्र में पंजीकृत कंपनी के बारे में समूची जानकारी होने से कंपनी रजिस्ट्रार पेनल्टी लगाने के लिए बेहतर स्थिति में रहेगा।
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