विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजे को लेकर अनिश्चितता के बावजूद वैश्विक ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस और मॉर्गन स्टैनली भारतीय इक्विटी को लेकर धीरे-धीरे सकारात्मक हो रही हैं। मॉर्गन स्टैनली के विश्लेषकों ने 2019 के लिए ब्राजील, थाइलैंड और इंडोनेशिया के अलावा भारत को लेकर अपना ओवरवेट रुख दोहराया है और भारत को लेकर इनकी प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं यूटिलिटीज, आईटी सेवा /सॉफ्टवेयर व पूंजीगत सामान क्षेत्र। मॉर्गन स्टैनली के एशियाई प्रमुख और उभरते बाजारों के इक्विटी रणनीतिकार जोनाथन गार्नर की रिपोर्ट में कहा गया है, हमारे अर्थशास्त्री खास तौर से भारत और इंडोनेशिया को लेकर आशावादी हैं, जिसे बाहर की आसान स्थितियों और आर्थिक नीतियों का फायदा मिलेगा। भारत में पूंजीगत खर्च में सुधार नजर आ रहा है। सितंबर के शुरू में निवेशकों को इक्विटी में मुनाफावसूली की सलाह देने वाली क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट ने भी अपना रुख बदल लिया है। इसने कहा है कि निफ्टी-50 सूचकांक 12 महीने आगे के 15.7 गुने पीई पर कारोबार कर रहा है, जो लंबी अवधि के 15 गुने के औसत से थोड़ा ज्यादा है और जनवरी 2018 के मुकाबले 10 फीसदी टूटा है। ये चीजें उच्च गुणवत्ता वाली कंपनियों के शेयर निचले स्तर पर खरीदने का मौका देता है। फर्म ने ये बातें नवंबर की रिपोर्ट में कही है।क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट के जितेंद्र गोहिल (प्रमुख-इंडिया इक्विटी रिसर्च) ने कहा, आय में गिरावट और विधानसभा व आम चुनावों के नतीजों के लेकर हम निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं और इनसे कर्ज में फंसी कंपनियों से दूर रहने को कह रहे हैं। निवेशकों को उन कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए जिनके नतीजे अच्छे रहे हैं और प्रबंधन ने परिदृश्य में सुधार की बात कही है। हमें कंज्यूमर स्टेपल, एनर्जी व यूटिलिटीज के अलावा निजी क्षेत्र के बैंक पसंद हैं। भारी बिकवाली के चलते एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी सितंबर व अक्टूबर में करीब 12 फीसदी टूटे और नवंबर में बाजार में हालांकि सुधार हुआ (1.6 फीसदी)। मिडकैप व स्मॉलकैप में गिरावट और भी ज्यादा रही और दोनों सूचकांक बीएसई पर सितंबर व अक्टूबर में क्रमश: 13 फीसदी व 17 फीसदी टूटे। तेल की कीमतों से सहारातीव्र गिरावट के चलते मूल्यांकन में आई कमी के अलावा इनके रुख में बदलाव की वजह कच्चे तेल की कीमतों में आई नरमी है, जो 85 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले घटकर करीब 60 डॉलर प्रति बैरल रह गया। विश्लेषकों ने कहा, चूंकि भारत तेल का शुद्ध आयातक है, लिहाजा कच्चे तेल की कीमतों की चाल का यहां महंगाई, चालू खाते के घाटे और राजकोषीय घाटे पर असर पड़ता है। यूबीएस के अर्थशास्त्री टीजी जैन ने कहा, अगर देश में ईंधन की कीमतें अपरिवर्तित रही तो वैश्विक तेल की कीमतों में 10 डॉलर की गिरावट से भारत के चालू खाते का घाटा 15 अरब डॉलर तक कम हो जाएगा और राजकोषीय घाटे में भी कमी आएगी। अगर कीमतों में कमी का फायदा ग्राहकों को दिया गया तो कीमतों में 10 फीसदी की कमी से खुदरा महंगाई में 20 आधार अंकों की कमी आएगी और जीडीपी में 10 आधार अंकों की बढ़ोतरी होगी। अगर तेल की ये कीमतें वित्त वर्ष 2019-20 तक टिकी रहती है तो यूबीएस का अनुमान है कि भारत के चालू खाते का घाटा घटकर जीडीपी का 1.5 फीसदी रह जाएगा, जो अभी 2.4 फीसदी है।
