भारत, ब्राजील को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बनने के लिए तैयार दिख रहा है। लेकिन यह घरेलू चीनी उत्पादन कंपनियों के लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह इस जिंस की न्यूनतम बिक्री कीमत (एमएसपी) और उत्पादन लागत के बीच का अंतर और देश में कम होते उपभोग के बीच बढ़ता मौजूदा भंडार है। अमेरिका के कृषि विभाग के विदेश कृषि सेवा के मुताबिक भारत के उत्पादन में 5.2 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है जो बढ़े हुए रकबे और उत्पादन में सुधार की वजह से 3.59 करोड़ टन हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ ब्राजील के चीनी उत्पादन में 21 फीसदी की गिरावट आ सकती है और खराब मौसम की वजह से उत्पादन 3.06 करोड़ टन हो सकता है और इसके बजाय गन्ना आधारित एथनॉल के उत्पादन पर ज्यादा जोर दिया जा सकता है।देश में चीनी वर्ष 2019 (1 अक्टूबर से 30 सितंबर) तक शुरू होगा और शुरुआती भंडार करीब 1.07 करोड़ टन होगा। देश में आमतौर पर चीनी का उत्पादन सालाना करीब 2.6 करोड़ टन तक होता है। इस साल शुरुआती अनुमान 36 फीसदी अधिक करीब 3.5 करोड़ टन से 3.55 करोड़ टन सालाना था। हालांकि इन अनुमानों में संशोधन कर इसे सालाना 3.15 करोड़ टन कर दिया गया। खपत में कमी को देखते हुए संभावना यह जताई जा रही है कि 2019 का चीनी वर्ष अधिशेष के साथ खत्म होगा जो विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी वर्ष के अंत में भंडार के मुकाबले 60-70 लाख टन अधिक होता है। मिसाल के तौर पर इक्रा को उम्मीद है कि चीनी अधिशेष की स्थिति बनी रहेगी और चीनी वर्ष 2019 के लिए समापन भंडार करीब 1.1-1.2 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। इसके अलावा इसने चीनी की कीमतों में तेजी की संभावनाओं को खारिज कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ पेराई का मौसम शुरू होने के साथ ही चीनी की कीमतें 30-31 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 29-30 रुपये प्रति किलोग्राम (एक्स-मिल) हो गईं।इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (आईएसएमए) महानिदेशक अविनाश वर्मा कहते हैं, 'कीमतों में आगे गिरावट नहीं हो सकती है क्योंकि सरकार ने न्यूनतम बिक्री कीमत (एमएसपी) 29 रुपये पर तय किया है। हालांकि इससे कुछ राहत मिली है क्योंकि एमएसपी अब भी 35 रुपये प्रति किलोग्राम (मूल्य हृास और ब्याज लागत) की उत्पादन कीमत के मुकाबले काफी कम है। विनिर्माताओं को अब भी आने वाले साल में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।' हालांकि सरकार ने विभिन्न उपायों के जरिये उद्योग को समर्थन देना बरकरार रखा है जिनमें चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत का नियमन करना, निर्यात सब्सिडी, गन्ना कीमत समर्थन, एथनॉल की ज्यादा कीमत, शामिल हैं। जे एम फाइनैंशियल के विश्लेषक कहते हैं कि एथेनॉल इस क्षेत्र की अस्थिरता को तोडऩे में सक्षम नहीं है क्योंकि चीनी उत्पादन पर इसका सीमित असर होता है। हालांकि सितंबर में खरीद कीमत में बढ़ोतरी बेहद आकर्षित करती हुई नजर आती है और यह कंपनियों को नए निवेश करने के लिए आकर्षित कर सकती है लेकिन इस कदम से मौजूदा वर्ष के दौरान कंपनियों को फायदा मिलने की संभावना नहीं दिखती है। निवेश की रणनीति शेयर बाजार में चीनी के शेयरों के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं? इस पृष्ठभूमि को देखते हुए विश्लेषकों ने इस क्षेत्र के लिए बेहद सतर्कता बरती है जिससे यह संकेत मिलते हैं कि निवेशकउन कंपनियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं जिनकी बैलेंसशीट ज्यादा मजबूत है और उनकी उत्पादन लागत कम है। बलरामपुर चीनी मिल्स पूरे साल के आधार पर परिचालन मुनाफा के स्तर पर कभी घाटे में नहीं गई है और आईसीआईसीआई सिक्योरिटीजी के विश्लेषक इसे पसंद करते हैं। वेल्थ डिस्कवरी के निदेशक राहुल अग्रवाल का कहना है, 'बलरामपुर चीनी, धामपुर चीनी मिल और डालमिया भारत शुगर को लघु से मध्यम अवधि में कुछ बढ़त मिलती दिख सकती है।' जेएम फाइनैंशियल के विश्लेषकों का कहना है कि अन्य उत्पादकों में भौगोलिक विशेषताओं (तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मौजूद होने की वजह से) की वजह से ईआईडी पैरी चीनी क्षेत्र में एक सुरक्षित दांव बना हुआ है जिससे गन्ने की कम कीमत में मदद मिल सकती है और इसमें निर्यात/आयात के मौके को भुनाने की क्षमता भी है।
