उधार नहीं तो बैंक कैसे उबरेंगे संकट से | |
बीएस बातचीत | सोमेश झा / 11 25, 2018 | | | | |
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कुछ अहम मुद्दों पर मतभेद दूर करने के लिए सहमत हो गए हैं। वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने मतभेद के कुछ बिंदु़ओं पर सरकार का विचार रखा। सोमेश झा से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश:
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए नकदी की समस्या का समाधान होता दिख रहा है। आने वाले समय में नकदी और बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
एक अवधि तक उधारी देने में उदारता दिखाने के बाद बैंकों की रफ्तार सुस्त हो गई, जिसके बाद एनबीएफसी ने कमान संभाल ली। सवाल केवल यह नहीं है कि वृद्धि किस दर से हो रही है, बल्कि परिसंपत्ति गुणवत्ता का भी ध्यान रखना पड़ता है। नकदी तत्काल कोई समस्या नहीं है और फिलहाल एक मजबूत तंत्र विकसित करने की दरकार है। रेटिंग एजेंसियों पर भी निगाह डालने का भी समय आ गया है। बाजार नियामक को पारदर्शिता लाने और जवाबदेही तय करने पर ध्यान देना चाहिए।
एनबीएफसी के लिए किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत है?
एनबीएफसी का आगे बढऩा जारी रहना चाहिए। इन कंपनियों ने खुदरा सहित आवास और ग्रामीण क्षेत्रों में भी काम किया है। हमें नकदी, अच्छी परिसपंत्ति गुणवत्ता सुनिश्चित करने के साथ ही एक एक तर्कसंगत ब्याज दर व्यवस्था की जरूरत है।
पीसीए के तहत लाए गए कुछ बैंकों की उधार देने की क्षमता और उनके प्रदर्शन में सुधार हुआ है। ऐसे में सरकार पीसीए नियमों में बदलाव क्यों चाहती है?
सरकार फिलहाल इसमें किसी तरह की ढील देने के लिए नहीं कह रही है। हम चाहते हैं कि विश्व की बेहतरीन व्यवस्था के साथ तालमेल बैठाया जाए, लेकिन मानदंड ऊं चे नहीं रखे जाएं। पीसीए नियम मुख्य तौर पर पूंजी से संबंधित है, लेकिन हम परिसंपत्ति गुणवत्ता और परिसंपत्तियों पर प्रतिफल एक अतिरिक्त मानदंड के तौर पर रख रहे हैं। हमें इन मानदंडों का तालमेल श्रेष्ठï व्यवस्था के साथ बैठाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर बैंक पीसीए से बाहर नहीं आ पाएंगे। अगर बैंक उधार नहीं देंगे तो पीसीए से कैसे बाहर आ सकेंगे।
क्या नियामक की अति सक्रियता से बैंकों की सेहत सुधरने में देर हुई है?
गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) पहले ही बढ़ चुकी है। पिछली दो तिमाहियों में इनमें कमी आनी शुरू हुई है। मार्च 2018 के अंत में एनपीए 11.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन पिछली दो तिमाहियों में इनमें 360 अरब रुपये की कमी आई है। पूरी बैंकिंग प्रणाली में सुधार शुरू हो गया है आने वाले समय में बैंकों का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है।
आरबीआई की अगली बोर्ड बैठक में सरकार संचालन सुधार पर क्यों जोर दे रही है?
सरकार की तरफ से किसी तरह की मांग नहीं की जा रही है और ना ही की जानी चाहिए। एक संस्थान के तौर पर आरबीआई की स्वायत्तता कायम रहनी चाहिए और इससे उचित सम्मान मिलना चाहिए। हम केवल निर्धारित अधिनियम के तहत व्यवस्था चाहेंगे।
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