एनसीएलटी का बोझ होगा कम | |
वीणा मणि / नई दिल्ली 11 21, 2018 | | | | |
कंपनी मामलों के मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक करेंगे विलय-अधिग्रहण पर निर्णय
► सूचीबद्ध कंपनियों के लिए सेबी की मंजूरी जरूरी
► कंपनी अधिनियम के तहत एनसीएलटी की मंजूरी
► बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक से लेनी होती है मंजूरी
► विदेशी निवेश के लिए फेमा के तहत मंजूरी जरूरी
► एकाधिकार रोकने के लिए प्रतिस्पर्धा आयोग की मंजूरी
► दूरसंचार कंपनियों को ट्राई से लेनी होती है मंजूरी
कंपनी मामलों का मंत्रालय राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) पर काम का बोझ कम करने के लिए उससे विलय एवं अधिग्रहण को मंजूरी देने की शक्ति वापस लेने की योजना बना रहा है। एनसीएलटी से यह जिम्मेदारी लेकर मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशकों को सौंपे जाने की तैयारी है। मंत्रालय चाहता है कि एनसीएलटी केवल कंपनी कानून से जुड़े अहम मामलों और दिवालिया प्रक्रिया से जुड़े मामलों की ही सुनवाई करे। इसीलिए पंचाट से विलय एवं अधिग्रहण की शक्ति लेकर क्षेत्रीय निदेशकों को देने के बारे में चर्चा चल रही है।
मौजूदा व्यवस्था में विलय या अधिग्रहण के किसी भी प्रस्ताव को पहले एनसीएलटी की मंजूरी लेनी होती है। कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत विलय या अधिग्रहण के प्रस्ताव को एनसीएलटी के अलावा भारतीय प्रतिस्पद्र्धा आयोग, गृह मंत्रालय (विदेशी कंपनियों के मामले में) और संबंधित क्षेत्रों के नियामकों की भी मंजूरी लेनी होती है।
कंपनी मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस व्यवस्था में बदलाव का संकेत देते हुए कहा कि इसके लिए कंपनी अधिनियम में जरूरी संशोधन भी किया जाएगा। अधिकारी ने कहा, 'कंपनियों को विलय या अधिग्रहण की किसी भी योजना के लिए अनुमति लेनी होती है। अभी यह काम एनसीएलटी करता है लेकिन उसके पास पहले ही काम का काफी बोझ है। ऐसे में मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशकों को यह काम सौंपा जा सकता है जो कंपनी अधिनियम से जुड़े तमाम प्रावधानों को पहले से देखते आ रहे हैं।'
खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर अतुल पांडेय कहते हैं, 'विलय एवं अधिग्रहण से जुड़ी कुछ शक्तियां एनसीएलटी से लेकर दूसरे को देने का प्रस्ताव एक स्वागत-योग्य कदम है। इससे पंचाट पर बोझ कम करने में भी मदद मिलेगी। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 233 के तहत क्षेत्रीय निदेशक पहले भी कुछ दायित्व निभाते रहे हैं। इसके अलावा अधिनियम की धारा 230 के तहत ये अधिकारी विलय योजनाओं की छानबीन भी करते हैं। ऐसे में क्षेत्रीय निदेशकों के पास पहले से ही जरूरी संस्थागत ढांचा मौजूद है।'
हालांकि पांडेय थोड़ी सावधानी बरतने की भी सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय निदेशकों को विलय-अधिग्रहण की मंजूरी देने का दायित्व तय समय के भीतर पूरा करने के लिए प्रावधान करना चाहिए। तय समयसीमा नहीं होने से छोटी कंपनियों के लिए विलय की मंजूरी प्रक्रिया तेजी से पूरी नहीं हो पाती है। बहरहाल मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सरकार संशोधन विधेयक में समयबद्ध मंजूरी प्रक्रिया के प्रावधान करने की सोच रही है। कंपनी अधिनियम में बदलाव के लिए लाए जाने वाले इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में रखा जाएगा।
सरकार ने एनसीएलटी की जिम्मेदारियों को हल्का करने के लिए पहले भी कंपनी अधिनियम में कई बदलाव किए हैं। सार्वजनिक कंपनी की निजी कंपनी में तब्दीली, वित्त वर्ष में बदलाव और देरी से फाइलिंग पर कंपनियों को दंडित करने की शक्ति पहले ही क्षेत्रीय निदेशकों को दी जा चुकी हैं।
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