हीरा बाजार में नहीं लौटी रौनक | सुशील मिश्र / मुंबई November 19, 2018 | | | | |
हीरा कारोबार के सबसे महत्त्वपूर्ण पर्व क्रिसमस को महज एक महीना बचा है। इसके बावजूद हीरा बाजार से रौनक नदारद है। विदेशी मांग कमजोर होने से हीरा कारखानों की चमक मंद पड़ी हुई है। अमूमन दीवाली के बाद लाभ पंचमी से चकाचौंध होने वाला हीरा बाजार इस बार अब तक गुलजार नहीं हो सका है। हीरा कारोबार के केंद्र - मुंबई और सूरत में हीरा तराशने वाली 60 फीसदी इकाइयां अब तक नहीं खुली हैं। दूसरी ओर 50 फीसदी हीरा कारोबारियों के कार्यालयों में अब तक भी कर्मचारी काम पर वापस नहीं आए हैं।
बॉम्बे डायमंड एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र गांधी कहते हैं कि क्रिसमस सीजन में सबसे ज्यादा हीरों की बिक्री होती है। इस समय अमेरिका से सबसे ज्यादा मांग आती रही है लेकिन इस बार मांग बहुत कम है। जो हीरे क्रिसमस के लिए निर्यात किए जाते हैं उनके ऑर्डर दीवाली के पहले या फिर दीवाली के 10 दिन बाद मिल जाते हैं। यही वजह है कि दीवाली की छुट्टियों के बाद कारखानों में हीरा तराशने का काम तेजी से शुरू होता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। बहुत कम ऑर्डर मिले हैं इसीलिए अब तक कारखाने पूरी तरह चालू नहीं हो सके हैं।
हीरा बाजार विशेषज्ञ हार्दिक हुंडिया कहते हैं कि बाजार में जो धोखाधड़ी और जालसाजी का कारोबार चल रहा था वह अब सबके सामने आ चुका है। ग्राहक और निवेशक पूरे बाजार को अविश्वास की नजरों से देख रहे हैं। बैंक तो पहले से ही हीरा कारोबारियों से दूरी बना चुके हैं जिससे हीरा कारोबार का दीवाला निकल रहा है। काम न होने के कारण छोटी इकाइयां बंद हो चुकी हैं और मध्य इकाइयों को देनदारियां चुकाने के लिए समय चाहिए। यही वजह है कि हीरा कारोबारियों की छुट्टियां लंबी हो रही हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान कारीगरों को हो रहा है। मुंबई और सूरत में लाखों कारोबारी बेरोजगार हो चुके हैं।
देश के सबसे बड़े संगठित हीरा कारोबार के गढ़ - भारत डायमंड बोर्स में 50 फीसदी कारोबारी वापस नहीं आए हैं। नाइन डायमंड के चेयरमैन संजय शाह कहते हैं कि दीवाली तो गई अब सबको क्रिसमस से उम्मीद है। कारोबारियों के पास पहले से ही तैयार स्टॉक है। ऐसे में वे कारखाने खोलकर खर्च बढ़ाना नहीं चाह रहे हैं। उम्मीद है कि अगले सप्ताह से सभी कार्यालयों में कामकाज शुरू हो जाएगा क्योंकि दिसंबर के पहले सप्ताह में क्रिसमस के ऑर्डर की डिलिवरी करनी होगी। हर साल दीवाली के समय घरेलू बाजार में थोड़ी मांग होती थी जो इस बार लगभग नहीं थी। ऐसी परिस्थिति में हर कोई खर्च में कटौती करने की रणनीति अपना रहा है। इस रणनीति के तहत कर्मचारियों की छंटनी और कारीगरों की छुट्टी की जा रही है।
हीरा कारोबारियों के अनुसार फिलहाल घरेलू हीरा बाजार को पूछने वाला कोई नहीं है। इसकी खास वजह है कृत्रिम हीरे। ये हीरे दिखने में प्राकृतिक हीरे जैसे ही होते हैं लेकिन इनके दाम बहुत कम होते हैं। ग्राहकों के लिए यह पहचाना मुश्किल होता है कि कौन-सा हीरा कृत्रिम है और कौन-सा असली। इससे बाजार में भ्रम की स्थिति बन गई है। कई कारोबारियों ने असली हीरे के दामों पर नकली हीरे बाजार में बेचे थे। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर छाई मंदी और महंगाई की वजह से लक्जरी उत्पादों की मांग कम हुई है। हीरा कारोबारियों के मुताबिक क्रिसमस सीजन में मांग नहीं आई तो हालात बदतर हो जाएंगे। सरकारी नियम भी आड़े आ रहे हंै। गौरतलब है कि सरकार ने चालू खाता घाटा (सीएडी) कम करने के लिए आयात शुल्क बढ़ा दिया है। 26 सितंबर को तैयार हीरे पर आयात शुल्क पांच फीसदी से बढ़ाकर 7.5 फीसदी कर दिया गया है। बाजार नकदी की समस्या से जूझ रहा है।
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