सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) को गुजरात के मुंद्रा बिजली संयंत्र के लिए टाटा पावर, एस्सार पावर और अदाणी पावर के साथ राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौते (पीपीए) की समीक्षा करने का निर्देश दिया है। टाटा पावर के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी प्रवीर सिन्हा ने अमृता पिल्लई से हुई बातचीत में उम्मीद जताई कि नए समाधान से मुंद्रा के लगभग आधे घाटे की भरपाई करने में मदद मिलेगी। पेश हैं मुख्य अंश: इस परियोजना के विभिन्न हितधारक ताजा समाधान तक कैसे पहुंचे? एक समिति गठित की गई और उसे विभिन्न मुद्दों की जांच करने के लिए कहा गया। उसने कई दौर की बैठक की और सभी हितधारकों की बात सुनी। ईमानदारी से उन्होंने कहा कि केवल कोयले पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि उत्पादकों के नुकसान पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें वित्तीय लागत और मुनाफे का झटका लगा। उदाहरण के लिए, कोयला खदान में हमारी महज 30 फीसदी हिस्सेदारी है लेकिन हम 100 फीसदी मुनाफा लाभ (कोयला खदानों से) को ध्यान में रखते हैं। इसी प्रकार जब पीपीए को 25 वर्षों से बढ़ाकर 35 वर्षों तक विस्तार दिया जाएगा तो वह संयंत्र का पूरी तरह कमजोर होगा लेकिन कुछ परिचालन लागत के अलावा कोई अन्य निर्धारित लागत नहीं होगी। इसलिए यह राज्यों के लिए लाभकारी रहेगा क्योंकि बिजली परिवर्तनीय लागत पर उपलब्ध होगी। इससे टाटा पावर को अपने मुंद्रा संयंत्र की प्रति यूनिट नुकसान को कितना घटाने में मदद मिलेगी? हमारा मौजूदा नुकसान 90 पैसे प्रति यूनिट है और इससे इसमें 50 फीसदी कमी लाने में मदद मिल सकती है। इसलिए मोटे तौर पर प्रति यूनिट 45 पैसे नुकसान की भरपाई हो जाएगी। क्षमता उपयोगिता बढ़ाने से भी अतिरिक्त फायदा होगा। संयंत्र के लोड फैक्टर को 10 फीसदी तक अतिरिक्त बढ़ाया जा सकता है। क्या मुंद्रा परियोजना के लेनदार नुकसान झेलने के लिए तैयार हैं? बैंकों ने इस मुद्दे पर अब तक कुछ नहीं बोला है। हमें उनसे बातचीत करने की जरूरत है। मुंद्रा परियोजना के लिए अब तक का संचयी घाटा कितना है? कुल संचयी घाटा 90 अरब रुपये है और हमने जरूरतों को पहले ही पूरा किया है। हमें नहीं पता कि अंतिम पूरक पीपीए क्या है, इसलिए फिलहाल यह बताना कठिन है कि क्या बदलाव होने जा रहा है। अंतिम समय-सीमा क्या होगी? अदालत ने 8 सप्ताह का समय दिया है और इसके भीतर राज्यों को अपने मंत्रिमंडल से मंजूरियां हासिल करने की जरूरत है। क्या सभी राज्य प्रस्ताव पर सहमत हैं? विचार-विमर्श की प्रक्रिया के दौरान उन्होंने अपनी राय जाहिर की थी। अब अंतिम रिपोर्ट आ चुकी है, इसलिए राज्यों को अपने-अपने मंत्रिमंडल में इस मुद्दे पर विचार कर निर्णय लेना होगा।
