भारती एयरटेल के लिए कमजोर परिदृश्य | राम प्रसाद साहू / October 28, 2018 | | | | |
सितंबर तिमाही में दूरसंचार कंपनियों के प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (एआरपीयू) में गिरावट के बाद भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के लिए परिदृश्य चुनौतीपूर्ण बना हुआ है और निकट भविष्य में इन कंपनियों की चिंताएं बढ़ सकती हैं। हालांकि सितंबर तिमाही में रिलायंस जियो (जियो) और भारती एयरटेल दोनों के एआरपीयू में भी 2-4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, लेकिन अब चिंताएं एयरटेल के संदर्भ में बरकरार हैं। विश्लेषकों का मानना है कि एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के लिए चुनौतियां तीन मुख्य कारणों से पैदा हुई हैं जिनसे भारत के वायरलेस राजस्व में गिरावट को बढ़ावा मिला है। पहला, राजस्व पर दबाव, जो ग्राहकों और एआरपीयू पर आधारित है। उपभोक्ता के संदर्भ में दूरसंचार कंपनियां लगातार जियो को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं।
नियामक से प्राप्त अगस्त के ताजा आंकड़ों से संकेत मिलता है कि जहां जियो का ग्राहक आधार 1.06 करोड़ तक बढ़ा, वहीं एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के ग्राहक आधार में 24 लाख और 12 लाख की कमी आई। सितंबर तिमाही में जहां जियो ने 3.7 करोड़ ग्राहक जोड़े, जो तिमाही आधार पर 29 प्रतिशत तक की वृद्घि है, वहीं एयरटेल ने 1.5 करोड़ ग्राहक गंवाए। बीएनपी पारिबा के कुणाल वोहरा का मानना है कि जियो जहां नए ग्राहक जोड़ रही है, वहीं वह अन्य दूरसंचार कंपनियों के ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में भी कामयाब हो रही है और यह रुझान अल्पावधि में बरकरार रहने की संभावना है क्योंकि अन्य दो कंपनियां जियो की फीचर फोन पेशकश और 4जी कवरेज में खामियों का मुकाबला करने के लिए अभी पूरी तरह तैयार नहीं दिख रही हैं। बाजार के लिए अन्य चिंता एयरटेल द्वारा एंट्री-लेवल सेगमेंट पर ग्राहकों को खोने का जोखिम है। कंपनी न्यूनतम रिचार्ज प्लान (35 रुपये पर) पेश करने और कम मोबाइल इस्तेमाल वाले ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना तलाश रही है। विश्लेषकों का मानना है कि जहां इससे उसके एआरपीयू में सुधार आ सकता है, वहीं इन ग्राहकों के जियो की फीचर फोन पेशकश की तरफ आकर्षित होने का भी जोखिम बढ़ेगा।
समेकन के बाद बाजार भागीदारी बनाए रखने के लिए बड़ी कंपनियों के लिए आंकड़ों में अंतर को देखते हुए क्रिसिल रिसर्च का मानना है कि उद्योग का एआरपीयू वित्त वर्ष 2019 में 18-20 फीसदी और नीचे आएगा। यह वित्त वर्ष 2017 में 8 प्रतिशत की गिरावट के बाद तीन वर्षों में प्रति उपयोगकर्ता राजस्व में सबसे बड़ी गिरावट होगी। इसके बाद वित्त वर्ष 2018 में एआरपीयू में 16 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई। क्रिसिल रिसर्च के निदेशक हेतल गांधी का मानना है कि मूल्य निर्धारण दबाव की तीव्रता में कमी नहीं आई है। वह कहते हैं, 'जियो द्वारा सबसे पोस्टपेड प्लान की पेशकश से अन्य दूरसंचार कंपनियों पर अपनी मौजूदा दरों में संशोधन करने का दबाव बढ़ सकता है जिससे एआरपीयू में और अधिक कमजोरी आ सकती है।' वह कहते हैं कि पोस्टपेड सेगमेंट में अभी उतनी अधिक प्रतिस्पर्धा नहीं है जितनी कि प्रीपेड में देखी जा रही है।
हालांकि एयरटेल के प्रबंधन ने संकेत दिया है कि एआरपीयू की स्थिति में नए ऊंची वैल्यू वाले पैक और बिक्री में तेजी से सुधार आएगा, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि एआरपीयू में सुधार की रफ्तार अल्पावधि के नजरिये से चुनौतीपूर्ण दिख रही है। राजस्व दबाव बढऩे के अलावा, मुनाफे में सुधार न दिखने की मुख्य वजह लगातार निवेश और परिचालन खर्च भी है। उदाहरण के लिए, एयरटेल के भारतीय वायरलेस व्यवसाय का मार्जिन जून तिमाही के मुकाबले 600 आधार अंक घटकर 21 फीसदी रह गया है जो एक साल पहले के 34 प्रतिशत के मार्जिन की तुलना में बड़ी गिरावट है। नेटवर्क खर्च एक्सेस चार्ज में वृद्घि से लागत बढ़ी है और मुनाफे पर दबाव पड़ा है। भारती एयरटेल ने कम से कम 25 तिमाहियों में सबसे ज्यादा संख्या में नए टावर जोड़े जिससे उसके द्वारा रिलायंस जियो के 4जी नेटवर्क के साथ कड़ा मुकाबला करने की कोशिश करने का संकेत मिलता है।
भारी कर्ज अन्य चिंता है जिससे भारती एयरटेल पर दबाव पड़ रहा है। कंपनी का कर्ज सितंबर तिमाही में तिमाही आधार पर 10 प्रतिशत तक बढ़ा। ऊंची पूंजीगत लागत, ऋणदाताओं में कमी और रुपये में गिरावट की वजह से विदेशी मुद्रा विनिमय लागत आदि की वजह से कर्ज में वृद्घि हुई। जेएम फाइनैंशियल के संजय चावला और विष्णु केजी का कहना है कि एयरटेल की समेकित बैलेंस शीट पिछली चार तिमाहियों से तेजी से प्रभावित हुई है और इसमें तुरंत बड़े बदलाव की जरूरत है। शुद्घ कर्ज-सालाना एबिटा स्तर सालाना आधार पर 3 से बढ़कर 4.7 गुना पर पहुंचा है जिसमें नकदी संपन्न भारती इन्फ्राटेल शामिल नहीं है। यह चार तिमाही पहले 5.5 गुना बनाम 3.5 गुना पर था।
कंपनी के अफ्रीकी परिचालन और आईपीओ के जरिये ताजा कोष उगाही से कर्ज संबंधित समस्याओं में कुछ हद तक कमी आनी चाहिए। हालांकि प्रतिस्पर्धी दबाव सिर्फ वायरलेस खंड में नहीं बल्कि अन्य सभी सेगमेंट डायरेक्ट टु होम, एंटरप्राइज और फिक्स्ड-लाइन ब्रॉडबैंड में भी बना रहेगा।
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