कब तक रुलाएगा प्याज! | संपादकीय / October 24, 2018 | | | | |
प्याज की कीमतों में अस्थिरता की समस्या एक बार फिर हमारे सामने आ खड़ी हुई है। इस बार उपलब्ध प्याज आपूर्ति के कुप्रबंधन के अलावा कोई बड़ा कारण नजर नहीं आ रहा है। महाराष्ट्र के लासलगांव स्थित प्याज की सबसे बड़ी मंडी में बीते एक सप्ताह में प्याज की थोक कीमतें दोगुनी हो गई हैं।
देश के कई इलाकों में इसकी खुदरा कीमतों में इससे भी ज्यादा इजाफा देखने को मिला है। यह स्थिति कुछ वर्ष पहले से एकदम उलट है जब प्याज किसानों को अपनी उपज सड़कों पर फेंकनी पड़ी थी क्योंकि इसकी कीमतों में भारी गिरावट आ गई थी। बाजार सूत्रों का कहना है कि फिलहाल कीमतों में इजाफा इसलिए हुआ है क्योंकि महाराष्ट्र में कमजोर बारिश से प्याज की फसल खराब हुई है।
हालांकि देश के अन्य हिस्सों में प्याज की खेती अच्छी है। कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2017-18 में प्याज की फसल औसत से बेहतर रहने का अनुमान जताया था। ऐसा इसलिए क्योंकि बुआई के रकबे में इजाफा हुआ था। एक सप्ताह में प्याज की नई फसल आ जाएगी। चूंकि कई महत्त्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए केंद्र सरकार ने नेफेड और मदर डेयरी जैसे संस्थानों को रियायती दर पर प्याज बेचने का आदेश देने में जरा सा भी वक्त नहीं गंवाया। हालांकि उसके इस कदम से किसानों के हितों को नुकसान पहुंच सकता है। हो सकता है वे भविष्य में उत्पादन बढ़ाने से दूरी बनाएं।
प्याज उन फसलों में शामिल है जिन्होंने हाल के वर्षों में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। वर्ष 2000 में जहां प्याज का सालाना उत्पादन करीब 50 लाख टन था, वह अब 2.2 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। इसके बावजूद प्याज की कीमतों में अस्थिरता की समस्या बनी हुई है क्योंकि सरकारी नीतियां इसका समर्थन नहीं करतीं और मौजूद आपूर्तियों का न तो ठीक से प्रबंधन होता है और न ही वितरण।
इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है सरकार की बिना सोची समझी प्रतिक्रिया। वह कभी भंडारण की सीमा तय कर देती है तो कभी कारोबारियों पर छापे मारे जाते हैं, कभी अचानक आयात-निर्यात के नियम बदल दिए जाते हैं। ऐसे ही कई मनमाने कदम उठाए जाते हैं। इससे बाजार में बेवजह अफरातफरी पैदा होती है।
एक बात की अक्सर अनदेखी कर दी जाती है कि आपूर्ति क्षेत्र के झटके अक्सर अल्पावधि के होते हैं क्योंकि प्याज की खेती रबी और खरीफ दोनों मौसमों में होती है। चूंकि इसकी मांग पूरे वर्ष बनी रहती है इसलिए हर मौसम के उत्पादन के एक हिस्से का संरक्षण जरूरी है ताकि जरूरत पडऩे पर मांग पूरी की जा सके।
खेद की बात है कि इस जरूरी भंडारण को जमाखोरी का नाम देकर हतोत्साहित किया जाता है। जरूरत यह है कि उपज को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने और मुनाफे के लिए जमाखोरी में भेद किया जाए। अल्पावधि के लिए प्याज का भंडारण करना न तो कठिन है, न ही महंगा। प्याज को सुखाना और उसका पेस्ट बनाना ऑफ सीजन में उपलब्धता सुनिश्चित करने के अन्य सस्ते जरिये हैं।
प्याज की खेती को भी चंद राज्यों से बाहर ले जाने की जरूरत है। अभी अधिकांश आपूर्ति महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और राजस्थान से आती है जबकि प्याज की खेती देश के अधिकांश राज्यों में हो सकती है। इससे चुनिंदा राज्यों पर निर्भरता कम होगी और देश भर में इसकी सहज उपलब्धता हो सकेगी।
इसके अलावा उत्पादन संभावनाओं और कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए भी समझदारी भरी व्यवस्था करनी होगी। इन समस्याओं को हल करने के लिए बहुकोणीय नीति तैयार करनी होगी। तभी प्याज उत्पादन में स्थिरता आएगी और उसकी कीमत ऐसी होगी जो उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए हितकारी हो।
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