आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व एमडी और सीईओ चंदा कोछड़ ने पिछले साल एक साक्षात्कार में कहा था, 'मेरी उपलब्धियों का मूल्यांकन अन्य लोगों को करने दीजिए।' तब वह खुद भी यह नहीं जानती होंगी कि वे जो शब्द कह रही हैं, वे आगे चलकर इतने सटीक साबित होंगे। ये शब्द कहने में उनका मकसद यह हो सकता है कि उन्होंने अपने बैंक के लिए वृद्धि का एक स्थायी मॉडल बनाया है। मगर कोछड़ पिछले पांच महीनों से नकारात्मक कारणों से सुर्खियों में हैं। उन पर हितों के टकराव और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को ऋण देने के बदले लाभ लेने के आरोप हैं। यह लाभ उनके पति दीपक कोछड़ की कंपनी न्यूपावर रिन्यूएबल्स में वीडियोकॉन के निवेश के रूप में लिया गया।
आईसीआईसीआई बैंक के बोर्ड ने शुरू में उनका समर्थन किया, लेकिन बाद में मामले की स्वतंत्र जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण को नियुक्त कर दिया। शेयरधारकों के हमलों से कोछड़ का वह मुकाबला देखने को मिला, जिससे वह बचाव की मुद्रा में आ गईं मगर अपनी लड़ाई जारी रखी। अगर इस लड़ाई को उनके लड़ाका होने का एक सबूत मानें तो ज्यादातर भारतीय कंपनियों को यह नहीं पता था कि बाजी कौन जीतेगा क्योंकि उन्होंने दबाव में झुकने से इनकार कर दिया था।
आखिर में उन्होंने हार मान ली और बैंक के बोर्ड ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इसकी प्रतिक्रिया में आईसीआईसीआई बैंक का शेयर 4 फीसदी चढ़ा। हालांकि अभी कई सवाल बाकी हैं। जब न्यायमूर्ति बी एन श्रीकृष्ण से संपर्क किया गया तो उन्होंने मामले पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। आईसीआईसीआई बैंक ने भी कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। फिर भी बीते वर्षों में कोछड़ की खुद की टिप्पणियों में काफी सच्चाई खोजी जा सकती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ साक्षात्कार में जब उनसे यह पूछा गया कि आईसीआईसीआई बैंक इतनी नकारात्मक कारणों से क्यों सुर्खियों में है तो उनका जवाब था, 'यह अगुआ होने की चुनौती है।' हम न केवल संपत्तियों के हिसाब से बड़े हैं, बल्कि हम अगुआ हैं और हम जो काम करते हैं, वे अन्य से आगे होते हैं।
वह देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई की प्रमुख थीं, जिसकी संपत्तियां 100 अरब डॉलर से अधिक हैं। चंदा कोछड़ का जन्म जयपुर में हुआ था। वह जब 13 साल की थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद उनका परिवार जयपुर से मुंबई आ गया। कोछड़ पहले आईएएस अधिकारी बनना चाहती थीं, लेकिन वह जय हिंद कॉलेज से अर्थशास्त्र और फिर जमनालाल बजाज से एमबीए करने के बाद बैंकिंग क्षेत्र में आ गईं। जमनालाल बजाज में उनकी मुलाकात के वी कामत से हुई, जो कैंपस साक्षात्कार के लिए आए थे। इसके बाद कोछड़ सफलता की सीढिय़ां चढ़ते हुए आईसीआईसीआई बैंक की सबसे युवा बैंकर बनीं। उनके कामकाज का कार्यक्रम व्यस्त रहता था। वह दिन में न्यूयॉर्क जाती थीं और समय पर बोर्ड की बैठकों में पहुंच जाती थीं।
उनकी एक मुख्य उपलब्धि यह है कि उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक को वृद्धि के अगले चरण में ला दिया। उन्होंने कई कदम उठाए, जिनमें बैंक ऑफ राजस्थान का अधिग्रहण भी शामिल है। इसके अलावा वर्ष 2009 से 2011 के बीच 600 शहरों में बैंक की शाखाएं 1,400 से बढ़ाकर 2,500 कर दी गईं। कोछड़ को एक बैंकर और भारत में बिज़नेस लीडर के रूप में कई पुरस्कार मिले। उन्हें वर्ष 2015 में टाइम पत्रिका की दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में जगह मिली। उन्हें कोयला और गैस आपूर्ति से संबंधित दिक्कतों के समाधान सुझाव देने के लिए विद्युत मंत्रालय के तहत गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उनके कार्यकाल में बैंक ने ऐसे 1.8 करोड़ ग्राहक जोड़े, जो बैंकिंग सुविधाओं से वंचित थे।
हालांकि इस झंझावात के संकेत 2015 में ही मिलने शुरू हो गए थे। आईसीआईसीआई बैंक ने खुद को फंसे कर्जों के बोझ के तले पाया जिसे वह नियंत्रित नहीं कर सकीं। वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2018 के बीच उनका शुद्ध मुनाफा 111.8 अरब रुपये से घटकर 67.8 अरब रुपये हो गया जबकि गैर निष्पादित आस्तियां तिगुने से ज्यादा हो गईं। कोछड़ ने पहले के एक साक्षात्कार में कहा था, 'पस्थितियां और चुनौतियां जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग हैं हालांकि मैंने हमेशा से चुनौतियों को सीखने के मौके के तौर पर देखा है।'
कोछड़ का कहना था कि कॉरपोरेट जगत ने कई मुश्किलों का सामना किया जिसकी वजह से बैंक को फंसे कर्ज की समस्या झेलनी पड़ी। अपने पति के निजी हितों के लिए उन पर जो गलत काम करने के आरोप हैं उस संदर्भ में उनके इस विडंबनापूर्ण बयान को भूला नहीं जा सकता है। क्या कोछड़ इन सभी कथित करार के बारे में जानती थीं? उनका दावा है कि अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने खुद ही कहा कि वह किस्मत पर यकीन करती हैं। फिलहाल यह कहना आसान लेकिन करना मुश्किल हो सकता है।
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