मोटर वाहन विधेयक का पारित होना आवश्यक | विनायक चटर्जी / October 02, 2018 | | | | |
नया मोटर वाहन विधेयक अच्छा और सुविचारित कानून है जिसे निहायत गैरजरूरी ढंग से रोका गया है। आम चुनाव से पहले इसे तत्काल पारित किया जाना चाहिए। बता रहे हैं विनायक चटर्जी
आपको इस आलेख को पढऩे में बमुश्किल चंद मिनटों का वक्त लगेगा। महज इतने समय में हो सकता है देश के किसी इलाके में कोई सड़क दुर्घटना घटित हो चुकी हो। हर एक घंटे में देश में सड़क दुर्घटनाओं के चलते 17 लोगों की मौत हो जाती है। अकेले वर्ष 2016 में ही देश भर में घटी सड़क दुर्घटनाओं में 1.50 लाख लोगों की मौत हो गई। वर्ष 2016 में ही सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम में अहम संशोधन की शुरुआत की थी। यही वह कानून है जो देश में सड़क सुरक्षा मानकों से लेकर लाइसेंसिंग मानक, तीसरे पक्ष के बीमा और कैब के नियमन तक का काम संभालता है। ये बदलाव राज्य परिवहन मंत्रियों की समिति की अनुशंसाओं पर आधारित हैं और लोकसभा इसे पारित भी कर चुकी है।
राज्य सभा की प्रवर समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा कि निचले सदन से पारित विधेयक को उच्च सदन भी बिना किसी संशोधन के पारित करे। यह बीते दिसंबर की बात है। एक साल बाद भी विधेयक जस का तस है। अगस्त में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस विधेयक को रोकने का इल्जाम 'भ्रष्ट आरटीओ परिवहन एसोसिएशन लॉबी' पर लगाया। विधेयक में एक बड़ा सुधार इस प्रावधान के रूप में है जिसके तहत नए वाहनों का पंजीयन क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के बजाय स्वयं डीलर करेंगे। अगर यह क्रियान्वित हुआ तो इससे आरटीओ के स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार में काफी कमी आएगी।
परंतु भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की इसकी क्षमताओं से परे भी यह विधेयक मौजूदा कानून की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है। यह बेहतरी सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में भी है। फिर चाहे बात वाहनों की हो या सड़कों की। भारत जैसे देश के लिए यह बात अहम है क्योंकि हमारे यहां कुल दुर्घटनाओं में से 77 फीसदी वाहन चालक की गड़बड़ी की वजह से होती हैं। वहीं राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति ने 2014 में कहा था कि कई मामलों में सड़क का खराब निर्माण भी इसकी वजह हो सकता है। भारत ने सड़क सुरक्षा के ब्राजीलिया घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्ता देश सन 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मामलों में 50 फीसदी तक की कमी लाएं। जब तक बड़े सुधार नहीं अपनाए जाते, ऐसा होने की संभावना नहीं है।
मोटर वाहन अधिनियम सबसे पहले 1988 में पेश किया गया था। जैसा कि संसद की स्थायी समिति ने कहा, 'भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण देश के वाहन क्षेत्र में एक क्रांति लेकर आया। वाहनों की संख्या बढ़ी। दुनिया की तमाम बड़ी वाहन कंपनियों ने भारत में शोरूम खोले। सड़कें बढ़ीं और तकनीक बदली। इन बातों के बीच दुर्घटनाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ।' इसके बाद समिति कहती है कि मोटर वाहन अधिनियम में बदलाव की कोशिशें नाकाम रहीं। कानून और सुरक्षा नियमन इस क्षेत्र में आ रहे तेज बदलाव से तालमेल नहीं बिठा सके।
विधेयक में जिन सुधारों की बात कही गई है उनमें से प्रारंभिक सुधारों का संबंध सड़कों से है। नया विधेयक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड के गठन की बात करता है। इसका निर्माण दुनिया के अन्य देशों में चल रहे बोर्डों के तर्ज पर होना है। सड़क डिजाइन और मोटर वाहन सुरक्षा के साझा मानकों की सख्त आवश्यक है और नया बोर्ड सरकार को इसी विषय पर सलाह देगा। कोई भी ठेकेदार या सलाहकार जिसने सड़कों का डिजाइन बनाया हो, निर्माण किया हो या उनका रखरखाव करता हो, उसे केंद्र सरकार द्वारा तय मानकों का ख्याल रखना चाहिए। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने नए विधेयक को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है। उसके मुताबिक अन्य देशों मसलन स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया आदि में इस बात को माना जाता है कि इंसान गलतियां करेंगे और इसलिए सड़क परिवहन व्यवस्था को इस तरह तैयार किया जाता है कि मानव चूक की आशंका कम से कम हो।
सुधारों का दूसरा क्रम वाहनों से ताल्लुक रखता है। हालांकि हाल के वर्षों में मानकों में सुधार हुआ है। उल्लेखनीय बात यह है कि कई भारतीय कार मॉडल जिनमें लोकप्रिय और महंगी एसयूवी गाडिय़ां भी शामिल हैं, वैश्विक सुरक्षा मानकों पर सफल साबित हुई हैं। भारत दुनिया के सबसे बड़े वाहन बाजारों में से एक है। विधेयक नए प्रावधान लेकर आया है जो केंद्र सरकार को उन कारों को वापस बुलाने का आदेश देने की अनुमति देते हैं जो लोगों के लिए खतरा हो सकते हैं। विधेयक में यह भी कहा गया है कि वाहन निर्माताओं को खराब वाहन के बदले पूरा पैसा वापस करना होगा या फिर बदले में उसे पिछले जैसा या उससे बेहतर वाहन देना होगा।
तीसरे तरह के सुधार आम लोगों से संबंधित हैं। विधेयक जारी किए जाने वाले ड्राइविंग लाइसेंस के दायरे का भी विस्तार करता है और हर्जाने के मामले या आपराधिक अभियोग से अच्छे लोगों की मदद का भी प्रावधान करता है। अच्छे लोग यानी ऐसे लोग जो दुर्घटना के पीडि़त व्यक्ति की मदद करते हैं। विधेयक इस क्षेत्र में आए तकनीकी बदलावों की भी बात करता है। देश में उबर और ओला जैसी कैब एग्रीगेटर सेवाओं के विस्तार ने मौजूदा विधायी ढांचे को एक अलग किस्म की चुनौती दे दी है। विधेयक एक ढांचा तैयार करता है ताकि ऐसे एग्रीगेटर को पहचान कर लाइसेंस जारी किए जाएं। इस दौरान अलग-अलग राज्यों को यह छूट है कि वे इन नियमों की विशिष्टता तय कर सकें।
विधेयक से जुड़े अन्य बड़े मुद्दों की बात करें तो केंद्र के बरअक्स राज्यों की सापेक्षिक शक्तियां भी एक मुद्दा हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सड़क परिवहन से जुड़े नियमन राज्यों के व्यक्तिगत दायरे में आते हैं। निम्र सदन से पारित विधेयक इन चिंताओं का काफी हद तक निराकरण करता है। चूंकि आम चुनाव के मद्देनजर सदन कुछ महीनों में भंग हो जाएगा, ऐसे में यह आवश्यक है कि ऐसे अहम सुधार को समय रहते अंजाम तक पहुंचा दिया जाए।
(लेखक फीडबैक इन्फ्रा के चेयरमैन हैं। लेख में प्रस्तुत विचार पूरी तरह निजी हैं।)
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