तेल उत्पादक देश कर रहे निवेश | |
राजेश भयानी / मुंबई 10 02, 2018 | | | | |
► तेल के दामों में इजाफे से तेल उत्पादन करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था का हुआ कायापलट
► लेकिन भारत नहीं है निकट भविष्य में इस अवसर को भुनाने की स्थिति में
► रुपये में गिरावट, तेल के अधिक दाम, बढ़ती ब्याज दरें और आने वाले चुनाव पेश कर रहे हैं चुनौतियां
► इसलिए विदेशी निवेशक फिलहाल भारत से बनाए हुए हैं दूरी
तेल के दाम खास तौर पर ब्रेंट क्रूड के दाम करीब 84 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर चल रहे हैं। जून 2014 के बाद दामों में यह स्तर नजर आया है। इसे भारत में अब भी बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पिछली तीन-चार तिमाहियों के दौरान तेल की लगातार ऊंची कीमतों से तेल उत्पादक देशों को अपनी अर्थव्यवस्था का कायापलट करने में मदद मिली है। असली बात यह है कि उन्होंने पेशेवर ढंग से वैश्विक परिसंपत्तियों में अतिरिक्त निवेश करना शुरू कर दिया है और भारत के पास इस निवेश को आकर्षित करने का अवसर है।
तेल उत्पादक देशों की राजकोषीय स्थिति सुधारकर ऐसी दशा में आ गई है कि अब उनकी मौजूदा आमदनी से उनका बजट संतुलित हो गया है और पिछला घाटा भी खत्म हो चुका है। जिस समय तेल के दाम गिरकर 25-30 डॉलर पर चले गए थे, तब उनकी राजकोषीय स्थिति बदतर हो गई थी। हालांकि वेनेजुएला, नाइजीरिया और अल्जीरिया जैसे कुछ देश अब भी बहुत सुखद स्थिति में नहीं हैं लेकिन कई अन्य देशों ने धनार्जन और दुनिया भर में परिसंपत्तियों में अतिरिक्त निवेश की घोषणा की है। हालांकि भारत के पास इस पैसे को आकर्षित करने का मौका है लेकिन भारत में हालात चुनौतीपूर्ण हैं।
कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने कहा कि तेल निर्यात करने वाले राष्ट्रों ने तेल के दाम 40-60 डॉलर के दायरे से बढ़कर 80 डॉलर तक पहुंचने के कारण अतिरिक्त धनार्जन किया है। उत्तरी यूरोप के कई देशों ने भी अपनी अर्थव्यवस्था को संतुलित किया है और तेल पर निर्भरता कम कर दी है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण वे एक पेशेवर तरीके से दुनिया भर में अपने अतिरिक्त धनार्जन का निवेश कर रहे हैं।
शाह ने कहा कि उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेल के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है और यहां तक कि तेल की मौजूदा कीमतों पर भी उन्हें अपना बजट संतुलित करने में दिक्कत आ रही है। हालांकि कतर, अबूधाबी और कुवैत जैसे खाड़ी देश भी उत्तरी यूरोपीय क्षेत्र का मॉडल अपनाते हुए इस अतिरिक्त धन को दुनिया भर में लगा रहे हैं। इससे पहले ये देश भारतीय परिसंपत्तियों में बड़े निवेशक थे।
शाह का कहना है कि तेल निर्यात करने वाले कई देश भारत को (अपने उत्पादित कच्चे तेल की अधिक मांग के कारण) सामान्य तौर पर हेज और एक आकर्षक बाजार के रूप में देखते हैं। हमने तेल निर्यात करने वाले देशों की ओर से भारतीय परिसंपत्तियों - उद्यमगत पूंजी और प्राइवेट इक्विटी से लेकर निश्चित आय, शेयर बाजार और रियल एस्टेट बाजार में भागीदारी देखी है। अगर हम तेल निर्यातक देशों को भारतीय परिसंपत्तियों पर प्रतिफल की संभावना का भरोसा दिला सकें तो हम उनका पैसा आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है। तेल के अधिक दाम, रुपये में गिरावट, बढ़ती ब्याज दरें और आने वाले चुनाव भारत की चुनौतियां हैं। इसलिए विदेशी निवेशक फिलहाल भारत से दूरी बनाए हुए हैं। इससे पता चलता है कि भारत निकट भविष्य में इस अवसर को भुनाने की स्थिति में नहीं है।
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