सोने पर शुल्क बढ़ाने से कम नहीं होगा चालू खाते का घाटा : सोमसुंदरम | शुभायन चक्रवर्ती / September 23, 2018 | | | | |
चालू खाते के बढ़ते घाटे से फिर चर्चा होने लगी है कि सरकार एक बार फिर सोने के आयात पर रोक लगा सकती है। एसोचैम द्वारा स्वर्ण क्षेत्र पर आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर विश्व स्वर्ण परिषद के प्रबंध निदेशक (भारत) सोमसुंदरम पीआर ने शुभायन चक्रवर्ती से कहा कि स्वर्ण क्षेत्र पर रोक की कोई जरूरत नहीं है। चालू खाते का घाटा पूरी तरह से तेल आयात की वजह से है।
सरकार सोने का आयात सीमित करना चाहती है और चालू खाते का घाटा कम करने के लिए जल्द ही शुल्क लगा सकती है। इस पर उद्योग की क्या प्रतिक्रिया है?
दरअसल स्वर्ण क्षेत्र पर रोक की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि बाजार पहले से ही बहुत मंदा है। पिछली बार जब ऊंचा शुल्क लगाया गया था तब सोने की खरीदारी बहुत अधिक थी। लेकिन फिलहाल यह मसला नहीं है क्योंकि कई महीनों से सोने का आयात सुस्त पड़ा है। चालू खाते का घाटा पूरी तरह से तेल आयात की वजह से है और तथ्य यह है कि शेयर बाजार को पूंजी प्रवाह से जूझना पड़ रहा है। हमें उम्मीद है कि इस तरह की रोक नहीं लगाई जाएगी क्योंकि इससे पुन: ग्रे मार्केट का विकास होने लगेगा।
त्योहारी सीजन से पहले आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?
हमारा पूर्वानुमान है कि इस साल यह मंदा रहेगा। इसके कई कारण हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में भारत में अब भी कीमतें काफी अधिक है क्योंकि रुपये के अवमूल्यन ने कीमतों को ऊंचा रखा है। दूसरी तरफ वस्तु एवं सेवा कर लागू किए जाने से स्वर्ण व्यापार का ग्रे मार्केट अब पहले की तरह संगठित नहीं रहा और नतीजतन मांग कम हो गई है।
तो आपके अनुसार सोने की मांग पिछले स्तर पर कब लौटेगी?
सोने की मांग सीधे तौर पर आय में होने वाली वृद्धि से जुड़ी हुई है। चूंकि राष्ट्रीय आय में धीरे-धीरे इजाफा होता है इसलिए हमें लगता है कि मांग 2020 तक धीरे-धीरे 800-900 टन पर लौट आएगी। हमें लगता है कि पिछले दो वर्षों के पारदर्शिता के सभी उपायों के कारण स्वर्ण क्षेत्र से अधिकांश पूंजी का प्रवाह हो गया है। इसलिए फिलहाल जो खरीदारी हो रही है वह वस्तु और सेवा कर तथा नोटबंदी की वजह से नियंत्रित है।
इस घटनाक्रम के बाद खुदरा व्यापार बड़े कारोबारियों केहाथों में केंद्रित हो गया है। छोटे कारोबार कहां रह गए?
खरीदारी के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता जैसे कदम से निश्चित रूप से संगठित कारोबारियों की बाजार में तेजी से पहुंच बनी है। इस प्रवृत्ति को केवल तभी मजबूती मिलेगी जब हम साथ चलेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल आज के संगठित भागीदारों को ही लाभ होगा। तथाकथित असंगठित क्षेत्र में भी तेजी से औपचारिक रूप दिखेगा जिससे संगठित बाजार की कुल हिस्सेदारी में वृद्धि होगी।
हाल के वर्षों में सोने में भारत की वैश्विक बाजार हिस्सेदारी कम हो रही है। क्या आपको लगता है कि इसमें जल्द बदलाव आएगा?
भारत सोने का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और अब तक यही स्थिति है। पिछले पांच वर्षों के दौरान हमारी मांग प्रति वर्ष औसतन 810 टन थी। अगर आप इसमें से 2016-17 को हटा दें जिस वर्ष पारदर्शिता के अधिकांश उपायों की शुरुआत की गई थी तो यह आंकड़ा बढक़र 848 टन हो जाता है। इसलिए जहां 2016 में यह 674 टन थी 2017 में यह 760 टन थी क्योंकि ग्रे मार्केट में पहले की तरह काम नहीं हो सकता था। लेकिन इसमें इजाफा होगा।
क्या चीन के स्पॉट एक्सचेंजों में कारोबार स्थानांतरित होने की वजह से भी भारत की हिस्सेदारी में कमी आई है?
चीन पुनर्गठन की शुरुआत के बाद से ही एक्सचेंजों को लेकर काम कर रहा है। उन्होंने स्वर्ण उद्योग में हाजिर और वायदा एक्सचेंजों के साथ-साथ रिफाइनरों के साथ पुनर्गठन शुरू किया है। भारत के मामले में मसला यह है कि हम परिपक्व हो चुके हैं और अब हम पुनर्गठन को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। चीन ने 2003-04 में सोने के स्पॉट एक्सचेंज स्थापित किए थे लेकिन अब हम भी पुनर्गठन कर रहे हैं। एक संचालन समिति स्पॉट एक्सचेंजों पर एक मसौदा तैयार कर रही है और साल के अंत तक इसे जारी करेगी। समिति में सभी व्यापारिक संघ, अंतरराष्ट्रीय बैंक और सराफा व्यापारी शामिल हैं और यह पिछले 6-7 महीनों से इस पर काम कर रही है।
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