नवंबर से मिलेगा बिजली क्षेत्र को ज्यादा कोयला | |
अभिषेक रक्षित / 09 23, 2018 | | | | |

दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कोल इंडिया घरेलू कोयला मांग पूरा न करने को लेकर आलोचना का सामना कर रही है और 1 अरब टन का कोयले का लक्ष्य पूरा होना मुश्किल लग रहा है। कंपनी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक अनिल कुमार झा ने अभिषेक रक्षित को दिए साक्षात्कार में नवंबर से कोयले की उपलब्धता को लेकर भरोसा जताया। मुख्य अंश...
कोल इंडिया का उत्पादन इतना भी नहीं है कि बिजली क्षेत्र की मांग पूरी कर सके। इस स्थिति से निपटने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
हमने इस साल के लिए 65.2 करोड़ टन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, वहीं समझौते के हिसाब से हमारा लक्ष्य कम है। हमारी क्षमता शायद इतनी नहीं है, लेकिन देश की जरूरतों के लिए कोल इंडिया बेहतर उत्पादन की कोशिश कर रही है। मॉनसून के दौरान स्थितियां अच्छी नहीं थी और पिछले 15 दिनों से भारी बारिश हो रही है। ऐसे में हमारा प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। लेकिन 19 सितंबर से इसमें सुधार हुआ है और हम अक्टूबर के मध्य से मौजूदा 14-15 लाख टन से उत्पादन बढ़ाकर 20 लाख टन रोजाना पर पहुंचाने जा रहे हैं। बिजली क्षेत्र की अतिरिक्त मांग (6 फीसदी अनुमानित) से कदमताल और अन्य क्षेत्रों की मांग के लिए इस साल 12 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज करेंगे।
आगामी महीनों में आप किस तरह का सुधार देख रहे हैं?
विगत में बिजली उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और इसकी रफ्तार से चलने के लिए कोल इंडिया ने भी उत्पादन बढ़ाया है। लेकिन बुनियादी ढांचा क्षेत्र में होने के कारण चीजें एक दिन में नहीं सुधर सकती, हालांकि हमने अपनी कमर कसी है और मुझे भरोसा है कि नवंबर से हम बिजली क्षेत्र को जरूरत के मुताबिक कोयला दे पाएंगे। एनटीपीसी को हम उनकी जरूरत का 95-96 फीसदी आपूर्ति कर रहे हैं और बाकी आगामी महीने में पूरी हो जाएगी।
कोयले की निकासी उत्पादन पर असर के लिहाज से मुख्य चुनौती है। इसके समाधान की क्या योजना है?
हमारी तीन प्रमुख परियोजनाएं हैं, जो कोयले की निकासी क्षमता 10 करोड़ टन बढ़ाएगी। पहला है 53 किलोमीटर लंबी झारसुगुड़ा-सरडेगा रेलवे लाइन, जिसका निर्माण कोल इंडिया ने 11 अरब रुपये की लागत पर की है और परिचालन शुरू हो गया है। दूसरा है टोरी-शिवपुर लाइन (झारखंड), जहां ज्यादातर काम हो गया है और लोडिंग शुरू हो गई है। तीसरा है ईस्ट कॉरिडोर और ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर (छत्तीसगढ़), जहां से लदान एक साल में शुरू हो सकता है।
कोल इंडिया खुद के वैगन पर विचार कर रही है। इस पर क्या नई जानकारी है?
खरीद की निविदा के लिए रेल मंत्रालय से बातचीत अग्रणी चरण में पहुंच गई है। हम इसे खरीदेंगे लेकिन मंत्रालय इस रेक का परिचालन करेगा और हम इसके राजस्व का एक हिस्सा हासिल करेंगे। निदेशक मंडल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
क्या आपको लगता है कि ये रेलवे लाइन और वैगन मसले का समाधान कर सकते हैं?
कुछ ऐसी जगह है जहां निकासी अभी भी एक समस्या होगी और इस वजह से हमने समाधान की रूपरेखा तैयार की है। उदाहरण के लिए ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में उत्पादन 8-8.5 करोड़ टन होने जा रहा है। बहुत ज्यादा हाथ-पांव मारने के बाद भी यहां से 6.5-7 करोड़ टन से ज्यादा निकासी संभव नहीं है। ऐसे में बिना निकासी वाले इस कोयले का इस्तेमाल 800 मेगावॉट वाली दो इकाइयों को करेंगे, जो यहां बनने वाली है। जमीन का अधिग्रहण हो चुका है और राज्य सरकार ने पानी उपलब्ध करा दिया है। अब इसमें एनटीपीसी को शामिल करने की बात हो रही है।
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