सीईओ के वेतन-भत्तों में भारी बढ़ोतरी | |
कृष्ण कांत / 09 20, 2018 | | | | |
कंपनियों के प्रमुखों की आमदनी में पिछले तीन साल के दौरान सालाना 18.3 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, जबकि कंपनियों के शुद्ध लाभ में 13 फीसदी और कुल वेतन लागत में 10 फीसदी इजाफा हुआ
भारत में मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) के लिए यह अच्छा समय है। भारतीय कंपनियों में शीर्ष प्रबंधन के वेतन-भत्तों में हर साल दो अंकों में बढ़ोतरी हो रही है और अब यह ज्यादातर कंपनियों के लिए सबसे तेजी से बढ़ती लागत मद है। भारतीय कंपनियों में प्रवर्तक निदेशकों एवं बोर्ड स्तर के पेशेवर कार्याधिकारियों समेत शीर्ष सीईओ के संयुक्त रूप से वेतन-भत्तों में वित्त वर्ष 2018 के दौरान साल दर साल आधार पर 20.4 फीसदी इजाफा हुआ है, जबकि पिछले साल 13 फीसदी बढ़ोतरी हुई थी। इसकी तुलना में वित्त वर्ष 2018 में कंपनियों का संयुक्त रूप से वेतन एवं पारिश्रमिक बिल महज 7.8 फीसदी बढ़ा है, जो पिछले तीन साल में सबसे कम रफ्तार से बढ़ा है। एक अन्य लागत मद- कंपनी उधारी पर ब्याज में पिछले वित्त वर्ष के दौरान सालाना आधार पर (बैंकों एवं वित्तीय कंपनियों को छोड़कर) 15.8 फीसदी बढ़ोतरी हुई। पिछले तीन वर्षों के दौरान सीईओ के संयुक्त रूप से वेतन-भत्ते 18.3 फीसदी की चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़े हैं, जबकि इस दौरान कंपनियों की आमदनी में 13.3 फीसदी, शुद्ध बिक्री में 4.8 फीसदी सीएजीआर वृद्धि और कुल वेतन एवं पारिश्रमिक खर्च में 10.1 फीसदी सालाना वृद्धि दर्ज की गई।
विश्लेषक कार्याधिकारियों के वेतन-भत्तों में गैर-आनुपातिक बढ़ोतरी से अचंभित हैं। एक प्रोक्सी एडवाइजरी फर्म इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) के संस्थापक और एमडी अमित टंडन ने कहा, 'हमारा अध्ययन दर्शाता है कि कार्याधिकारियों के वेतन-भत्ते कंपनी के लाभ से भी तेजी से बढ़ रहे हैं, इसलिए कंपनियों को इसे अन्य वित्तीय मानदंडों के स्तर पर लाना चाहिए।' वह कहते हैं कि कंपनियों के मुनाफे में सुधार के साथ सीईओ के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी कुछ हद तक सही है, मगर ऐसा लगता है कि लाभ का एक बड़ा हिस्सा शीर्ष प्रबंधन अपनी जेब में डाल रहा है, जिससे अन्य के लिए मामूली लाभ बचता है। टंडन ने कहा, 'ये आंकड़े कार्याधिकारियों के वेतन-भत्तों में 'विजेता सब कुछ ले जाता है' की प्रवृत्ति दर्शाते हैं। यह बीते समय की सामूहिक जिम्मेदारी की व्यवस्था से अलग है, जिसमें जिम्मेदारी एवं पुरस्कार का एक व्यापक समूह में बंटवारा होता था।'
यह विश्लेषण 172 सूचीबद्ध कंपनियों के आम नमूने के वित्तीय आंकड़ों पर आधारित है, जहां कार्याधिकारियों या बोर्ड सदस्यों के वेतन-भत्ते वित्त वर्ष 2018 में 1 करोड़ रुपये या अधिक थे। नमूने में शामिल कंपनियों का संयुक्त रूप से शुद्ध लाभ वित्त वर्ष 2018 में 17.8 फीसदी था, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 12.2 फीसदी रहा था। विशेषज्ञों का कहना है कि हाल में सीईओ के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की एक वजह यह भी है कि भारत में परिवार और प्रवर्तकों द्वारा चलाई जाने वाली कंपनियों का दबदबा है।
एक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'प्रवर्तकों के पास अपनी कंपनियों के अलावा अन्य किसी जगह से मोटा पैसा कमाने के स्रोत नहीं होते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि वे कंपनियों के लाभ में एक बड़ा हिस्सा कमीशन के रूप में लेकर अपनी आमदनी ज्यादा से ज्यादा करने की कोशिश करते हैं।' इस तर्क में कुछ दम है। वर्ष 2018 में सबसे ज्यादा आमदनी वाले 10 सीईओ में से 8 मझोली कंपनियों के प्रवर्तक थे।
आलोचकों का यह भी कहना है कि बहुत से प्रवर्तक कंपनियों को लाभ होने पर वाहवाही लूट लेते हैं, जबकि उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं होती है। इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक और एमडी जी चोक्कालिंगम ने कहा, 'ज्यादातर जिंस कंपनियों ने पिछले दो साल के दौरान अपने लाभ में अच्छी बढ़ोतरी दर्ज की है। लाभ में यह बढ़ोतरी उनके उत्पादों की कीमतों में इजाफे से हुई है। इसके लिए उनके सीईओ ने अतिरिक्त प्रयास नहीं किए हैं। लेकिन इस दौरान उनके सीईओ के वेतन-भत्तों में भारी इजाफा हुआ है।'
पिछले साल कंपनियों की आमदनी की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। कंपनियों को पिछले वित्त वर्ष में अपने नेटवर्थ या शेयरधारकों के हिस्से पर 14.7 फीसदी लाभ हुआ, जो उससे पिछले साल के 14.5 फीसदी के मुकाबले मामूली अधिक और वित्त वर्ष 2015 में 15.3 फीसदी के मुकाबले कम था। ऐसा नहीं लगता है कि सीईओ नई परियोजनाओं पर बड़ा दांव लगा रहे हैं। पिछले वित्त वर्ष में नमूने में शामिल कंपनियों (बैंक एवं वित्तीय कंपनियों को छोड़कर) की स्थायी परिसंपत्तियों में संयुक्त रूप से 10 फीसदी बढ़ोतरी हुई, जो उससे पिछले वित्त वर्ष में 13.6 फीसदी बढ़ोतरी से कम है। जिस तरह कंपनियां और उनके बोर्ड निदेशक शीर्ष प्रबंधन को पुरस्कृत करते हैं, उसे लेकर विश्लेषकों का सवाल उठाना अचंभित नहीं करता है।
टंडन ने कहा, 'सीईओ के वेतन-भत्तों में एक बड़ा हिस्सा परिवर्तनशील भुगतान का है और यह कंपनियों के लाभ में बदलाव के साथ बदलता रहता है। लेकिन हर कुछ वर्षों में सीईओ के मूल वेतन (निश्चित वेतन-भत्ते) में बढ़ोतरी होती रहती है। इससे नतीजतन उनके वेतन-भत्ते हमेशा कंपनी के लाभ से ज्यादा बढ़ते रहते हैं।'
उनके मुताबिक ये आंकड़े भारतीय कंपनियों में बढ़ती असमानता का संकेत देते हैं। वह कहते हैं, 'भारत की ज्यादातर कंपनियों में औसत वेतन की तुलना में सीईओ के वेतन-भत्तों का अनुपात बढ़ रहा है, जो भारतीय कंपनी जगत में बढ़ती असमानता के मसले को उजागर करता है।' बिज़नेस स्टैंडर्ड के नमूने में शामिल सभी कंपनियों ने वित्त वर्ष में सीईओ के वेतन-भत्तों पर 32.5 अरब रुपये खर्च किए, जो इससे एक साल पहले 27 अरब रुपये था। यह राशि पिछले साल कंपनियों के कुल शुद्ध लाभ के 1.1 फीसदी के बराबर थी, जो पिछले साल 1 फीसदी से अधिक और चार साल में सबसे अधिक है। बहुत सी मझोली और छोटी कंपनियां अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा अपने नेतृत्व को पुरस्कृत करने में खर्च करती हैं। उदाहरण के लिए पिछले साल सन टीवी नेटवर्क के सीईओ का वेतन कंपनी के शुद्ध लाभ के 15.7 फीसदी के बराबर था। अन्य बड़ी कंपनियों में (अपोलो टायर्स (शुद्ध लाभ का 12.1 फीसदी), अमर राजा बैटरीज (13.4 फीसदी) और बालकृष्ण इंडस्ट्रीज (9.1 फीसदी) शामिल थीं।
बड़ी कंपनियों में टेक महिंद्रा अपने नेतृत्व को लेकर सबसे दरियादिल रही। कंपनी के सीईओ का वेतन वित्त वर्ष 2018 में कंपनी के शुद्ध लाभ के 5.1 फीसदी के बराबर था। यह इसके बाद लार्सन ऐंड टुब्रो में 2.4 फीसदी और हीरो मोटोकॉर्प में 2.3 फीसदी था। इस सूची में सबसे नीचे राजस्व के लिहाज से देश में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज थी। कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष में सीईओ के वेतन-भत्तों पर अपने लाभ का महज 0.2 फीसदी खर्च किया।
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