थोड़ा सुधार... ज्यादा की दरकार | सचिन मामबटा / मुंबई September 09, 2018 | | | | |
अमेरिका में सबप्राइम डिफॉल्ट के बाद वैश्विक वित्तीय संकट गहराने और निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने से दुनिया की अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली पर व्यापक असर पड़ा था। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की अगुआई में दुनिया भर के नियामक ने बाजार में तरलता बढ़ाने के लिए बॉन्ड खरीद कार्यक्रम लेकर आए थे और ब्याज दरों में भारी कटौती की गई थी। अगस्त 2007 में फेडरल रिजर्व बेंचमार्क ब्याज दर 5.25 फीसदी पर थी। दिसंबर 2015 के बाद सात बार ब्याज दर बढ़ाने के बावजूद अभी यह 2 फीसदी पर है। ब्रिटेन में ब्याज दर एक दशक पहले 5.75 फीसदी थी, जो अब 0.75 फीसदी है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक की बेंचमार्क दर 2007 में 4 फीसदी थी जो अब शून्य है। कम ब्याज दरों से उन्हें मदद मिली जिन्होंने अपनी संपत्तियां गिरवी रखी थीं या जिन्होंने कर्ज लिया था। लेकिन जमाकर्ताओं को इससे नुकसान हुआ है।
वित्तीय संकट ने वैश्विक वृद्घि को पीछे धकेल दिया। 2007 में वैश्विक वृद्घि 5.6 फीसदी थी, जो 2008 में 3 फीसदी और 2009 में नकारात्मक 0.2 फीसदी रह गई। संकट के बाद कुछ बैंकों ने अपना कारोबार समेट लिया, वहीं कुछ का दूसरे बैंक ने अधिग्रहण कर लिया। अमेरिकी सरकार मॉर्गेज कंपनियों फैनी मे और फ्रीडी मैक तथा बीमा कंपनी एआईजी के लिए बेलआउट पैकेज लेकर आई। इस संकट का असर दुनिया भर में पड़ा और ब्रिटेन, नीदरलैंड्स, पुर्तगाल तथा आइसलैंड की सरकारों को भी अपने वित्तीय संस्थानों को बचाने के लिए आगे आना पड़ा।
इसकी वजह से वित्तीय सेवा क्षेत्र में करीब 5 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी, वहीं निर्माण तथा विनिर्माण क्षेत्र में करीब 88 लाख लोगों का रोजगार छिन गया। दुनिया के अन्य देशों में भी श्रमिकों-कर्मचारियों की छंटनी की गई। लीमन के दिवालिया होने के ठीक बाद अमेरिकी सरकार और फेडरल रिजर्व बैंकों को बचाने में लग गए। जेपी मॉर्गन ने बेयर स्टन्र्स को खरीदा, वहीं बैंक ऑफ अमेरिका ने मेरिल लिंच का अधिग्रहण किया तथा वारेन बफेट ने गोल्डमैन सैक्स में निवेश किया। लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो कभी नहीं बदलतीं। एक दशक बाद भी बैंक का आकार छोटा नहीं हुआ। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार अधिकांश संपत्तियां 10 बड़े बैंकों के पास ही केंद्रित हैं। कर्ज भी आज सर्वोच्च स्तर पर है। बैंक फॉर इंटरनैशनल सैटलमेंट्स के मुताबिक दुनिया का कुल कर्ज 2008 में जीडीपी का करीब 200 फीसदी था जो 2017 के अंत में 244 फीसदी पर पहुंच गया। मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने कहा कि गैर-वित्तीय संस्थानों, सरकारों और परिवारों का कर्ज 2007 के बाद 72 लाख करोड़ डॉलर बढ़ा है। संकट के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार जोखिम वाले निवेश साधन एक बार फिर लोकप्रिय हो रहे हैं। इस तरह के निवेश साधनों का जिन बाजारों में कारोबार हो रहा है, वह स्पष्ट नहीं है।
फेडरल रिजर्व की चेयरमैन जेनेट येलेन 2013 में डेरिवेटिव बाजार और वैश्विक नियामकों में पारदर्शिता की कमी के बारे में चर्चा की थी। उन्होंने ओवर-द-काउंटर डेरिवेटिव के संचालन पर परामर्श पत्र पर प्रतिक्रिया मांगी थी। वित्तीय संकट के दौरान वित्तीय धोखाधड़ी और आर्थिक अपराध के मामले भी बढ़े जिससे वित्तीय संंस्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। हालांकि बैंकों को जोखिम वाले निवेश के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है और यह माना जा रहा है कि संकट की घड़ी में फेडरल रिजर्व उन्हें उबार लेगा। संकट के बाद वित्तीय नियमन की लंबी सूची लाई गई, जिसमें बैंकों पर संभावित नुकसान की भरपाई के लिए ज्यादा पूंजी रखने के लिए दबाव बनाया गया।
इसके साथ ही अटकल वाली ट्रेडिंग को प्रतिबंधित किया गया और केंद्रीय बैंकों को बैंकों की निगरानी के लिए ज्यादा अधिकार दिए गए। लेकिन अब डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन डॉड-फ्रैंक अधिनियम के तहत पाबंदियों को हटाना चाहता है। वैश्विक वित्तीय संकट के 10 साल पर अपने ब्लॉग में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने लिखा है, 'हमने लंबा सफर तय किया लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। प्रणाली सुरक्षित हुई है लेकिन उतनी नहीं। विकास दर पटरी पर आ रही है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।' 2008 में लीमन के दिवालिया होने के संकट के आकलन का एकमात्र संकेत नहीं था और न ही यह अंतिम संकेत था। 1907 में हाइन्ज ब्रदर्स की विफलता के समय भी संकट खड़ा हुआ था। उसके बाद से ही फेडरल रिजर्व नियमित तौर पर वित्तीय बाजार को संकट से उबारने का काम करता रहा है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि वैश्विक वित्तीय संकट से असमानता बढ़ी है। डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीति की जड़ भी वित्तीय संकट ही है। लेगार्ड ने लिखा है कि अब हम संकट के बाद नई तरह की समस्या जैसे असमानता, संरक्षणवाद आदि का सामना कर रहे हैं।
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