तीन वर्ष में 59 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की संभावना है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) देश में छोटे रॉकेट, पीएसएलवी रॉकेट और उपग्रह बनाने के लिए निजी उद्योग को प्रोत्साहित करने पर काम कर रहा है। अगले तीन वर्ष में निजी उद्योग को इनसे संबंधित लगभग 9,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिलने की संभावना है। सीआईआई और एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन द्वारा आयोजित वल्र्ड स्पेस बिज में इसरो अध्यक्ष के शिवन ने कहा कि अंतरिक्ष में मानव भेजने के अभियान को समय से पूरा करने के लिए इसरो का अधिकांश समय इस कार्यक्रम पर केंद्रित होगा, जिसके लिए चार वर्ष का समय निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि वर्ष 2020 तक निजी उद्योग हमारे काम के एक हिस्से को खुद संभाले। हम चाहते हैं कि निजी उद्योग छोटे रॉकेट, पीएसएलवी और उपग्रहों का निर्माण करे।' शिवन ने बताया कि आज पीएसएलवी रॉकेट की कुल लागत में निजी क्षेत्र की भागीदारी 85-90 प्रतिशत और उपग्रह के मामले में 50 प्रतिशत के करीब है।उन्होंने कहा, 'हम इससे खुश नहीं हैं। हम चाहते हैं कि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़े और वे केवल आपूर्तिकर्ता ना होकर भागीदार की भूमिका निभाएं।' उन्होंने कहा कि अगले तीन वर्ष में इसरो को 40 रॉकेट की आवश्यकता होगी, जिसमें 30 पीएसएलवी और 10 जीएसएलवी हैं। इन रॉकेट पर कुल लागत लगभग 104 अरब रुपये आएगी, जिसमें से 90 अरब रुपये निजी उद्योग द्वारा वहन किये जाने हैं। जहां तक उपग्रहों का सवाल है, अगले तीन वर्ष में 59 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की संभावना है। इनमें उच्च क्षमता वाले रिमोट सैटेलाइट, उच्च बैंडविड्थ वाले सैटेलाइट शामिल होंगे। इससे प्रत्येक माह 2 पीएसएलवी रॉकेट की जरूरत होगी। अभी इसरो एक साल में 6-7 पीएसएलवी रॉकेट लॉन्च करता था।इसके साथ, छोटे उपग्रह भेजने के लिए छोटे रॉकेट की आवश्यकता होगी। ये रॉकेट 500-700 किलोग्राम तक के वजन वाले उपग्रह अंतरिक्ष में ले जा सकते हैं और उन्हें 500 किलोमीटर तक की कक्षा में स्थापित कर सकते हैं। इस रॉकेट की खासियत यह है कि इन्हें 72 घंटों में एकीकृत किया जा सकता है और ये काफी हद तक स्वचलित हैं।शिवन का अनुमान प्रत्येक वर्ष 50-60 छोटे रॉकेट भेजने का है। एल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एच एस शंकर कहते हैं कि सरकार और इसरो निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही हैं और निजी क्षेत्र को सहयोग, भागीदारी बढ़ाने के लिये कदम उठाने चाहिए तथा अपनी क्षमता के हिसाब से निवेश करना चाहिए। कंपनी ने हाल ही में उपग्रह बनाने के लिए इसरो के साथ करार किया है। शंकर कहते हैं, 'पहले की तरह अब हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास मांग नहीं है। अब हम घरेलू मांग के साथ वैश्विक बाजार तक पहुंच बना सकते हैं।' एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के वरिष्ठ सलाहकार का कहना है कि कंपनियों की विनिर्माण क्षमता को अमल में लाना होगा। भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप और एसएमई को बढ़ावा देने के लिए इसरो देश में 6 इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित करने जा रही है।
