म्युचुअल फंड: धीमी पड़ी खरीदारी | ऐश्ली कुटिन्हो / मुंबई September 03, 2018 | | | | |
बेंचमार्क सूचकांक रिकॉर्ड ऊंचाई के आसपास कारोबार कर रहे हैं, लिहाजा म्युचुअल फंड मैनेजरों ने इक्विटी की खरीद की रफ्तार धीमी कर दी है। म्युचुअल फंडों ने अगस्त में करीब 38.1 अरब रुपये के शेयर खरीदे, जो फरवरी 2017 के बाद का सबसे कमजोर आंकड़ा है। यह पिछले महीने हुई 39 अरब रुपये की खरीद के करीब-करीब बराबर है। इनका शुद्ध निवेश जून की 92 अरब रुपये की खरीद के मुकाबले 58 फीसदी नीचे और एक साल की मासिक औसत खरीद 103 अरब रुपये के मुकाबले 67 फीसदी कम है।
विशेषज्ञों ने कहा कि सकल निवेश घटा है क्योंकि धनाढ्य निवेशकों (जो बाजार में उतारचढ़ाव आदि के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं) ने अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करना शुरू कर दिया है। जुलाई 2018 में ईएलएसएस समेत इक्विटी फंडों में 9,452 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश हुआ, जो माह दर माह के लिहाज से 2.15 फीसदी कम है और साल दर साल के हिसाब से 25.7 फीसदी कम। वैश्विक स्तर पर गहराते व्यापार युद्ध की चिंता चलते इक्विटी बाजारों में आए उतारचढ़ाव ने इस गिरावट की अगुआई की।
साल 2018 में म्युचुअल फंडों ने भारतीय इक्विटी में 763 अरब रुपये का निवेश किया जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 33 अरब रुपये निकाले। देसी संस्थागत निवेशकों के निवेश में बढ़ोतरी ने भारतीय इक्विटी बाजार को संरक्षित करना शुरू कर दिया है, जो मौटे तौर पर अब तक विदेशी निवेस के प्रवाह से तय होता था। भारत में उनके आकार व ट्रेडिंग पैटर्न को देखते हुए एतिहासिक स्तर पर एफपीआई बाजार की कीमतें तय करने के मामले में वर्चस्व वाली स्थिति में रहे हैं। पिछले कुछ सालों ने बदलाव के संकेत दिए हैं और देसी संस्थागत निवेशकों का निवेश लगातार बढ़ा है और यह बाजार को दिशा देने के मामले में अहम रहा है। मासिक एसआईपी के जरिए इक्विटी म्युचुअल फंड योजनाओं में रिकॉर्ड निवेश खास तौर से उत्साहजनक रहे हैं। दो साल में 100 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी के साथ एसआईपी का योगदान जून 2018 में 75.54 अरब रुपये रहा, जिसमें निवेशक जागरूकता अभियान और खुदरा निवेशकों की मजबूत भागीदारी का काफी योगदान रहा। यह जानकारी इक्रा के एक नोट से मिली।
नोटबंदी के बाद वित्तीय प्रतिभूतियों आदि के बाजार में बचत के आने से भी इस प्रवृत्ति को सहारा मिला है। देसी निवेशकों की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी ने जरूरत से ज्यादा उतारचढ़ाव वाले विदेशी निवेश पर निर्भरता घटाई है। विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योग के लिए अब यह समय बी-30 शहरों या इससे आगे पर ध्यान केंद्रित करने का है। सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने हाल में एम्फी के कार्यक्रम में कहा था, और इलाकों में म्युचुअल फंडों के प्रसार में तेजी लाने की दरकार है और इसके जरिए छोटे शहरों से लंबी अवधि के निवेश के लिए रकम लाने की जरूरत है। नीतिगत तौर पर और घरेलू बचत को वित्तीय परिसंपत्तियों में लाने पर जोर दिए जाने के लिहाज से भी यह अनिवार्य है।
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