केंद्रीय बैंक इसके लिए एक अभियान चला रहा हैभारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) निजी बैंकों के बोर्डों में स्वतंत्र निदेशकों पर लगाम कसने के लिए नियमों को सख्त बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए केंद्रीय बैंक एक अभियान चला रहा है जिसमें निजी बैंकों के बोर्डों को बताया जा रहा है कि अगर उनके स्वतंत्र निदेशक अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में नाकाम रहते हैं तो विभिन्न कानूनों के तहत उन पर क्या कार्रवाई की जा सकती है। केंद्रीय बैंक ऐसे निदेशकों की नियुक्ति से संबधित शर्तों को भी सख्त बना सकता है। उच्चतम न्यायालय ने 2016 में एक फैसले में कहा था कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत निजी बैंक के अधिकारी जनसेवक हैं। न्यायालय के उस फैसले के दो साल बाद केंद्रीय बैंक यह कदम उठा रहा है। इसकी तत्काल वजह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक प्राथमिकी है। एजेंसी ने एयरसेल के पूर्व प्रवर्तक सी शिवशंकरन को 6 अरब रुपये से अधिक कर्ज देने के मामले में आईडीबीआई बैंक के दो स्वतंत्र निदेशकों निनाद कार्पे और एस रवि को नामजद किया है। हालांकि आईडीबीआई सरकारी बैंक है लेकिन राष्ट्रीयकृत नहीं है। आरबीआई के उपाय►स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका पर बैंक बोर्डों को बताएंगे आरबीआई के अधिकारी ►निदेशकों को दी जाएगी विभिन्न कानूनों के तहत उनकी जवाबदेही की जानकारी ►पात्रता की शर्तों में हो सकता है बदलाव ►सीबीआई अधिकारियों ने बैंकरों को जानकारी देनी शुरू की ►केंद्रीय बैंक के इस कदम में उच्चतम न्यायालय के फैसले की भी भूमिका ►एनपीए को लेकर निजी बैकों की गलत घोषणा से भी केंद्रीय बैंक चिंतित एक निजी बैंक के अधिकारी ने कहा, 'हमें कोई औपचारिक संवाद नहीं भेजा गया है, लेकिन आरबीआई के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग ने हमसे कहा है कि बोर्ड की आगामी बैठक के बारे में उन्हें सूचित किया जाए ताकि वे सदस्यों को इस बारे में बता सकें।' उन्होंने कहा कि सीबीआई के अधिकारियों ने भी मुंबई के सेंटर फॉर एडवांस्ड फाइनैशियल रिसर्च ऐंड लर्निंग में बैंकरों को इसकी जानकारी देना शुरू कर दिया है।यह एक स्वतंत्र संस्थान है जिसकी स्थापना आरबीआई ने की है। अब तक की व्यवस्था के मुताबिक सभी बैंकों की बोर्ड बैठकों का ब्योरा आरबीआई को दस्तावेज के हिस्से के रूप में भेजा जाता है जो वार्षिक निरीक्षण का हिस्सा बनता है। एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि आईसीआईसीआई बैंक के घटनाक्रम और कुछ निजी बैंकों द्वारा घोषित गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के स्तर तथा आरबीआई समीक्षा में सामने आए अंतर के कारण स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका केंद्रीय बैंक की नजरों में चढ़ी है। आरबीआई के इस कदम के पीछे अक्टूबर 2016 में आए उच्चतम न्यायालय का एक फैसले की भी भूमिका है। इस फैसले ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 2बी और 2सी (8) तथा बैंकिंग नियमन कानून की धारा 46ए को सुर्खियों में ला दिया था। भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 2बी में मुताबिक जन सेवा का मतलब उbस सेवा से है जिसमें सरकार, जनता या फिर समुदाय का व्यापक हित हो।यहां सरकार में केंद्र या राज्य कानून के तहत स्थापित निगम, या सरकारी स्वामित्व या सरकारी नियंत्रण वाला या सरकार से सहायता प्राप्त प्राधिकरण या संस्था, या कंपनी कानून, 1956 की धारा 617 के तहत परिभाषित सरकारी कंपनी शामिल है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 2 सी (8) के मुताबिक वह व्यक्ति जन सेवक है जो जन सेवा के लिए अधिकृत पद पर है या उसे जन सेवा करने की जरूरत है।बैंकिंग नियमन कानून की धारा 46ए के मुताबिक पूर्णकालिक आधार पर नियुक्त अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक, निदेशक, अंकेक्षक, परिसमापक, प्रबंधक या बैंकिंग कंपनी के किसी भी अन्य कर्मचारी को भारतीय दंड संहिता के अध्याय नौ के तहत जन सेवक जैसा माना जाएगा। यह अध्याय जन सेवकों से जुड़े अपराधों से जुड़ा है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून (संशोधन) विधेयक, 2013 में निजी कंपनियों को भी इसके दायरे में लाने का प्रावधान किया गया था और उच्चतम न्यायालय के फैसले ने निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार निरोधक उपायों को मजबूत करने का रास्ता साफ किया।
