आज से डाकिया आएगा, बैंकिंग कराएगा | मयंक जैन / नई दिल्ली August 31, 2018 | | | | |
डाक विभाग की जानी पहचानी खाकी वर्दी पहने तीन डाकिये दिल्ली के प्रधान डाकघर के वातानुकूलित प्रतीक्षा क्षेत्र में झुककर बैठे हैं। इसमें इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) स्थित है और ये डाकिये हाल में बैंकर बने हैं। वे अपने उपकरणों पर कुछ हिसाब-किताब करने में व्यस्त हैं। करीब 35 साल के राजेश सिंह गर्व के साथ कहते हैं कि वह अब तक 150 से अधिक खाते खोल चुके हैं। उन्हें अपनी उपलब्धि पर इतराने का पूरा अधिकार है। आखिर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को तालकटोरा स्टेडियम में मंच पर होंगे और एक डाकिये से अपना खाता खुलवाएंगे। इसके साथ ही वह देश के सबसे महत्त्वाकांक्षी बैंक का उद्घाटन करेंगे।
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) डाक विभाग की पहल है जिसकी शत प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार के पास है। बैंक को 2016 में लाइसेंस मिला था जब भारतीय रिजर्व बैंक ने 11 भुगतान बैंकों के लिए लाइसेंस जारी किए थे। इनमें से तीन बैंकों ने व्यवहार्यता चिंताओं के कारण अपने लाइसेंस वापस कर दिए हैं। अलबत्ता इंडिया पोस्ट ने धीरे-धीरे अपना संगठन बनाया और अब यह अपना कामकाज शुरू करने को तैयार है। बैंक के पास 1.55 लाख डाकघर और 300,000 से अधिक डाकिये हैं जिन्हें बैंक संबंधी कामकाज का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
सिंह कहते हैं कि वह उन चंद डाकियों में शामिल थे जिन्हें राष्ट्रीय बैंकिंग एवं वित्त संस्थान (एनआईबीएफ) के सहयोग से 30 घंटे का प्रशिक्षण दिया गया। उनके पास एक एंड्रॉयड फोन और एक बायोमेट्रिक रीडर है जिसकी मदद से वह किसी भी वक्त फिंगरप्रिंट ले सकते हैं। उन्होंने अपने में माइक्रो-एटीएम ऐप भी डाउनलोड कर लिया है। बैंक की आधिकारिक शुरुआत में 24 घंटे से भी कम समय रह गया है लेकिन यह ऐप अभी बन ही रहा है। सिंह ने कहा, 'आज सुबह ही इसका नया वर्जन आया है, इसलिए मैं इस पर हाथ आजमा रहा हूं। इसके साथ अभी कुछ समस्या है लेकिन अधिकांश लोगों का खाता 5 मिनट से भी कम समय में खुल जाता है।' उन्होंने दावा किया कि वह पहले ही 150 खाते खोल चुके हैं।
यह बैंक आधार आधारित सत्यापन पर निर्भर है। आईपीपीबी खातों को केवल आधार ई-केवाईसी के आधार पर ही खोला जा सकता है। खाता खुलवाने के लिए उपभोक्ताओं को अंगूठे का निशान और कुछ बुनियादी जानकारी देनी होगी। खाता तुरंत खुल जाता है और उपभोक्ता को प्लास्टिक का एक कार्ड दिया जाता है जिसमें खाते की जानकारी के साथ एक क्यूआर कोड होता है। यानी लोगों को अपनी खाता संख्या याद रखने की जरूरत नहीं होगी।
बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वित्तीय प्रणाली में अब तक डाकिये केवल मनी ऑर्डर के जरिये ही जुड़े थे लेकिन आईपीपीबी के शुरू होने के बाद यह स्थिति बदल जाएगी। अधिकारी ने कहा, 'अब वे अच्छी तरह प्रशिक्षित हैं। नकदी तथा माइक्रो एटीएम के संचालन करने में सक्षम हैं और यहां तक कि डिजिटल लेनदेन में भी मदद कर सकते हैं।' उन्होंने बताया कि डाकियों को तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पहले चरण मे एनआईबीएफ अधिकारियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। ये अधिकारी फिर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। प्रशिक्षक फिर संबंधित डाकघरों में एक समय पर 25-30 लोगों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। प्रशिक्षण के बाद एनआईबीएफ उनका मूल्यांकन करता है और फिर प्रमाणपत्र दिए जाते हैं।
दूसरे बैंकों की तरह इस बैंक को उपभोक्ताओं को खींचने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि डाकघरों में पहले से ही 17 करोड़ बचत खाते हैं। विभाग उन्हें भुगतान बैंक खातों में बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। देश में ग्रामीण क्षेत्रों में डाकघरों की संख्या सभी ग्रामीण बैंक शाखाओं की तुलना में 2.5 अधिक है। हालांकि बैंक के लिए उपभोक्ताओं को तकनीक पर आधारित और कागजविहीन औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था अपनाने के लिए मनाना कड़ी चुनौती होगी। लेकिन डाकिये इस चुनौती को लेकर बेहद उत्साहित हैं। मोबाइल ऐप पर अपना हुनर दिखाते हुए एक डाकिये ने कहा, 'बायोमेट्रिक सत्यापन और पांच मिनट में एसएमएस के जरिये खाता संख्या की जानकारी मिलने को लेकर बुजुर्ग उपभोक्ताओं भी बेहद उत्साहित हैं। वे हमें वर्षों से जानते हैं। यह ब्याज दर का नहीं बल्कि विश्वास का मामला है।' यह अहम है क्योंकि डाक सेवाओं पर लोगों का कई दशकों से भरोसा बना हुआ है और अब विभाग की बैंकिंग सेवाओं में भी उनका यही भरोसा कायम रह सकता है। अलबत्ता इस अतिरिक्त जिम्मेदारी को लेकर डाक विभाग के कर्मचारियों के एक वर्ग में असंतोष भी है। एक डाकिये ने कहा, 'उन्होंने वादा किया है कि जल्दी ही नए लोगों को भर्ती किया जाएगा। तब तक हम देखेंगे कि हम कितना कर सकते हैं।'
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