नहीं मिला पता, तो कंपनी बन जाएगी मुखौटा | वीणा मणि / नई दिल्ली August 30, 2018 | | | | |
अगर किसी कंपनी का कार्यालय कंपनी रजिस्ट्रार को दिए गए पते पर नहीं है तो जल्दी ही उसे मुखौटा कंपनी की श्रेणी में डाला जा सकता है। मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कंपनी कानून के विभिन्न प्रावधानों की समीक्षा कर रही एक विशेषज्ञ समिति ने यह सिफारिश की है। इससे पहले सरकार ने केवल उन कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया था जिन्होंने रिटर्न दाखिल नहीं किया था। समिति का कहना है कि अगर किसी कंपनी का पंजीकृत कार्यालय कंपनी रजिस्ट्रार को दिए पते पर नहीं है तो इस आधार पर उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
विशेषज्ञ समिति के सदस्यों का कहना है कि इससे सरकार को इन कंपनियों के बोर्ड निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद मिलेगी। कंपनियों को उस पते पर मौजूद रहना चाहिए जो उन्होंने कंपनी रजिस्ट्रार को दिया है। अब तक सरकार अपना कामकाज समेटकर गायब हो चुकी कंपनियों का पता लगाने के लिए ही इस मानक का इस्तेमाल करती थी। सरकार पहले ही 226,000 कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर चुकी है क्योंकि उन्होंने अपना वैधानिक रिटर्न नहीं भरा था। इसी आधार पर 225,000 अन्य कंपनियों को भी नोटिस भेजे जा रहे हैं। जहां तक अपना कामकाज समेटकर गायब हो चुकी कंपनियों का संबंध है तो सरकार के पास उनका पता लगाने का एक और तरीका है। 1996 से 2004 के बीच ऐसी 200 से अधिक कंपनियों का पता चला था जिनमें से 77 का अब भी पता नहीं चल पाया है। इनमें से अधिकांश कंपनियां आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए आवेदन के बाद सूचीबद्घ नहीं हुईं।
इनमें से सभी कंपनियों को नोटिस जारी किए गए थे। इस पर 100 से अधिक कंपनियों ने नोटिस का जवाब दिया था जबकि बाकी का इतने वर्षों बाद भी कोई पता नहीं चल पाया है। कंपनी मामलों का मंत्रालय कंपनी रजिस्ट्रार की मदद से अब भी 77 लापता कंपनियों की खोजबीन में जुटा है। इन कंपनियों ने कंपनी रजिस्ट्रार या स्टॉक एक्सचेंजों को जो पता दिया था, उस पर मौजूद नहीं पाई गईं। इन कंपनियों ने दो साल से कंपनी रजिस्ट्रार या स्टॉक एक्सचेंजों (सूचीबद्घ कंपनियों के मामले में) में रिटर्न दाखिल नहीं किया है।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक इन कंपनियों को लापता करार दिया गया है क्योंकि उनके निदेशकों का पता नहीं चल पाया है। इनमें से 70 के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। समिति ने किसी कंपनी के स्वतंत्र निदेशक के पारिश्रमिक के बारे में भी सुझाव दिया है। उसका कहना है कि यह पारिश्रमिक उसकी सकल वार्षिक आय का 20 फीसदी होना चाहिए।
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