म्युचुअल फंड में बड़ी कंपनियों के वर्चस्व से सेबी चिंतित | श्रीमी चौधरी / मुंबई August 23, 2018 | | | | |
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 23 लाख करोड़ रुपये के देसी संपत्ति प्रबंधन उद्योग में कुछ म्युचुअल फंड हाउस के वर्चस्व पर चिंता जताई है। आंकड़ों के मुताबिक, 10 अग्रणी म्युचुअल फंड हाउस की कुल प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) में 81 फीसदी हिस्सेदारी है, वहीं पांच अग्रणी कंपनियों की उद्योग की परिसंपत्तियों में हिस्सेदारी करीब 57 फीसदी है। सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने कहा, यह गंभीर चिंता का विषय है कि बहुत ज्यादा बढ़ोतरी के बावजूद उद्योग की बहुलांश बाजार हिस्सेदारी कुछ बड़ी कंपनियों के पास संकेंद्रित है। त्यागी ने स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए कदम उठाने पर जोर दिया। त्यागी एमएफ सम्मेलन 2018 को संबोधित कर रहे थे, जिसका आयोजन उद्योग संस्था एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) ने किया। न सिर्फ परिसंपत्ति बल्कि असंगत रूप से कुछ कंपनियों का लाभ और राजस्व हिस्सेदारी भी ज्यादा है।
त्यागी ने कहा, यह पाया गया कि सात बड़ी एएमसी का राजस्व कुल उद्योग के राजस्व का 60 फीसदी से ज्यादा है। बड़ी एमएफ का मुनाफा मार्जिन भी 40-50 फीसदी के स्तर पर है। सेबी प्रमुख ने उद्योग की कंपनियों से पूछा कि क्या उच्च खर्च अनुपात इस प्रवृत्ति की वजह है। कुल खर्च अनुपात योजना के कुल कोष का प्रतिशत है, जो म्युचुअल फंड प्रशासनिक व प्रबंधन खच4 समेत कुल खर्च के तौर पर वसूलता है। उन्होंने कहा, कुल खर्च के अनुपात की अवधारणा 90 के दशक के आखिर में शुरू हुई थी जब एयूएम 500 अरब रुपये था और आज यह 23 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। इसलिए हम इसे व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता की जांच कर रहे हैं। त्यागी ने फंड हाउस में कॉरपोरेट गवर्नेंस की खामियों पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, हाल के कुछ मामले उद्योग की सार्वजनिक छवि से मेल नहींं बना पाए और इसे हर हालत में टाला जाना चाहिए। इस वक्त हितों के टकराव को टालने की जरूरत है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एमएफ का निवेश सहयोगी इकाई आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज में होने के मामले पर त्यागी ने कहा, ऐसे चलन को हतोत्साहित करने के लिहाज से हम उद्योग से काफी ज्यादा परिपक्व होने की उम्मीद कर रहे हैं। सेबी प्रमुख ने ऋण प्रतिभूतियों के मामले में एमएफ उद्योग को चेताया। उन्होंने कहा कि फंड मैनेजरों को ऐसे ऋणपत्र में निवेशित रहने समय आंखें खुली रखनी चाहिए और अपने खाते में जोखिम को शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा, म्युचुअल फंड मैनेजरोंं को क्रेडिट जोखिम पर सतर्क रहना चाहिए क्योंंकि ज्यादातर रकम संस्थागत निवेशकों से आती है जबकि डेट फंड के कुल 12.3 लाख करोड़ रुपये में से करीब 11.5 लाख करोड़ रुपये गैर-खुदरा निवेशकों से आते हैं।
त्यागी ने कहा, भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग का कुल एयूएम जीडीपी का महज 11 फीसदी है जबकि वैश्विक औसत 62 फीसदी है। भारत में फंड उद्योग आगे बढ़ रहा है और बढ़त के काफी मौके हैं। उद्योग के विशेषज्ञोंं ने कहा कि संकेंद्रण जोखिम को घटाने के लिए सेबी कुछ निश्चित कदम उठा सकता है। प्राइम डेटाबेस के संस्थापक पृथ्वी हल्दिया ने कहा, ज्यादा प्रतिस्पर्धा हमेशा ही निवेशकों के हित में होता है। कुछ बड़े फंड हाउस के पास ज्यादा हिस्सेदारी है क्योंकि उनकी समूह कंपनियों के बैंक उनके मुख्य वितरक हैं। जिंस बाजारों में म्युचुअल फंडों को निवेश की अनुमति पर त्यागी ने कहा कि जिंस बाजार अभी भी शैशवावस्था में है और एमएफ निवेश नकदी नहीं मुहैया कराएगा।
दोगुनी हो जाएंगी म्युचुअल फंड परिसंपत्तियां
एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारिख ने कहा है कि म्चुयुअल फंड उद्योग की परिसंपत्तियां अगले पांच साल में बढ़कर दोगुनी से ज्यादा यानी 50 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगी। द एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के सम्मेलन में उन्होंने कहा कि निवेशकों की प्राथमिकता और मध्य वर्ग की आबादी में बढ़ोतरी का इसमें योगदान होगा।पारिख ने कहा, जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर म्युचुअल फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों का प्रसार अभी भी 11 फीसदी है जबकि वैश्विक औसत 62 फीसदी है। इसका मतलब यह है कि यहां काफी बड़ा बाजार है और इसकी क्षमता का दोहन किया जाना चाहिए। पारिख ने हालांकि वितरकों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन आदि पर चिंता जताई और इस पर पारदर्शिता बहाल करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सेबी को यह देखना चाहिए कि फंड हाउस वितरकों को विदेशी भ्रमण के पैकेज आदि के जरिए उपकृत कर रहे हैं। पारिख ने साइबर सुरक्षा से जुड़े जोखिम और ग्राहकों के संवेदनशील आंकड़ों को रखे जाने के मामले पर चेतावनी भी दी।
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