पौराणिक किरदार से टीवी हुए चमकदार | ऋत्विक शर्मा, उर्वी मलवाणिया और टी ई नरसिम्हन / August 22, 2018 | | | | |
गहरी रंगत वाली एक देवी अपने साथी की तरफ फरसा उठाए हुए हैं। एक राजकुमार और उसकी दुल्हन पवित्र अग्नि के सात फेरे लेते हैं और विवाह की रस्मों के दौरान अपने दुश्मनों का सफाया कर देते हैं। एक आधुनिक परिवार में एक महिला दूसरी महिला को यह बताकर अचंभित कर देती है कि उसके पैर जमीन पर नहीं टिके हैं। ये तीनों घटनाएं इन दिनों टेलीविजन पर प्रसारित हो रहे सीरियल क्रमश: महाकाली, पोरस और नागिन 3 की हैं। ये तीनों सीरियल पौराणिक, ऐतिहासिक एवं फंतासी ड्रामा श्रेणी के हैं। इससे पहले 1980 के दशक में भी रामानंद सागर का 'रामायण' और बी आर चोपड़ा का 'महाभारत' दर्शकों के तमाम वर्गों को अपने मोहपाश में बांधे रखने में सफल रहे। महाकाव्यों पर आधारित इन दोनों सीरियल ने टीवी कार्यक्रमों के लिए एक प्रवृत्ति की शुरुआत की। आज पौराणिक एवं ऐतिहासिक विषयवस्तु वाले कार्यक्रम दर्शकों पर प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है।
बड़े टीवी नेटवर्कों पर परोसे जा रहे कार्यक्रमों का दायरा काफी व्यापक है। कलर्स पर प्रसारित हो रहा 'महाकाली: अंत ही आरंभ है' सोनी पर आ रहा विघ्नहर्ता गणेश, मिथकीय प्रसंगों की व्याख्या पर आधारित विवादास्पद 'देवलोक विद देवदत्त पटनायक', काल्पनिक घटनाओं और इतिहास का मेल करने वाला पोरस (सोनी) एवं तेनाली रामा (सब टीवी) और भक्ति पर आधारित मेरे साईं: श्रद्धा और सबूरी (सोनी) इसके चंद उदाहरण हैं। सामान्य मनोरंजन परोसने वाले हिंदी चैनल (जीईसी) के बारे में टीवी दर्शक अनुसंधान परिषद (बार्क) के आंकड़े बताते हैं कि मिथकीय एवं ऐतिहासिक कार्यक्रमों को न केवल युवा दर्शक पसंद कर रहे हैं बल्कि वयस्क पुरुषों एवं महिलाओं को भी ये सीरियल खूब भा रहे हैं। शाम छह बजे से रात 11 बजे तक के प्राइम टाइम स्लॉट में पुरुष दर्शक मामूली अंतर से ही सही लेकिन महिलाओं पर बढ़त बनाए हुए हैं। प्राइम टाइम के दौरान पुरुष दर्शकों की तादाद 51 फीसदी है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिथकीय एवं कॉस्ट्यूम ड्रामा श्रेणी वाले कार्यक्रमों को बेहद पसंद किया जा रहा है। इस श्रेणी के 20 फीसदी दर्शक तो केवल इन दो राज्यों के ही हैं।
चेन्नई निवासी आर बालाजी 'तेनालीरामन' सीरियल जरूर देखते हैं। उनका मानना है कि नाटकीयता से भरपूर सीरियलों की भीड़ में ताजी हवा की तरह है। दरअसल तेनाली रामा के तमिल डब संस्करण के प्रसारण अधिकार के लिए ज़ी तमिल ने सब टीवी से करार किया है। इसे एक पारिवारिक सीरियल के तौर पर हल्का-फुल्का हास्य परोसने वाले कार्यक्रम के तौर पर पेश किया जा रहा है लेकिन नाटकीयता की कमी के चलते यह व्यापक पसंद वाला 'मास शो' नहीं कहा जा सकता है। बालाजी को यह सीरियल खास पसंद है। वह कहते हैं, 'इस तरह के कार्यक्रम न केवल आपको इतिहास, संस्कृति और जीवनशैली के बारे में बताते हैं बल्कि आपके बच्चों को भी लोक कथाओं और मिथकीय चरित्रों के बारे में थोड़ी जानकारी हो जाती है।' आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय दर्शकों को पलायनवाद पसंद है। इसका सबूत यह है कि जीईसी श्रेणी के कार्यक्रमों को 54 फीसदी दर्शक मिले हैं और अन्य 23 फीसदी दर्शक फिल्मों का प्रसारण करने वाले चैनल देखते हैं। उद्योग संगठन फिक्की और सलाहकार फर्म ईवाई की एक साझा रिपोर्ट में भारतीय दर्शकों की इस पसंद का विवरण दिया गया था।
निवेश का दायरा
स्वास्तिक प्रोडक्शंस के संस्थापक एवं क्रिएटिव डाइरेक्टर सिद्धार्थ कुमार तिवारी का मानना है कि पौराणिक एवं ऐतिहासिक कहानियों को आज के दौर के दर्शकों की पसंद के हिसाब से पेश करने की सुविधा है। तिवारी ने महाभारत (2013) और महाकाली जैसे कई सीरियल बनाने के अलावा पोरस का निर्माण एवं निर्देशन भी किया है। पोरस भारतीय टेलीविजन जगत का ऐसा पहला सीरियल है जिसका बौद्धिक संपदा अधिकार भी निर्माता के पास होगा। करीब 500 करोड़ रुपये के भारी-भरकम बजट में बना पोरस यूनानी सम्राट सिकंदर के खिलाफ मोर्चा थामने वाले भारतीय राजा की कहानी बयां कर रहा है। पिछले छह महीनों में इसे 10 देशों में वितरित किया जाने लगा है। तिवारी कहते हैं, 'अच्छा कार्यक्रम बनाने के लिए आपको उसमें तगड़ा निवेश भी करना होता है।' उनका मानना है कि महाभारत जैसे महाकाव्यों पर आधारित सीरियल कम चर्चित मिथकीय चरित्रों पर बने सीरियल की तुलना में अधिक पसंद किए जाते हैं। लेकिन इसी के साथ वह कर्मफल दाता शनि का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इस सीरियल की कामयाबी ने प्रचलित धारणा को गलत भी साबित किया है।
1980 के दशक में निर्मित मिथकीय सीरियल रामायण और महाभारत की बेशुमार लोकप्रियता और आकर्षण की बराबरी करने की कोशिश कई बार की गई है लेकिन कभी भी ऐसा हो नहीं पाया है। रामानंद सागर के परिवार का मानना है कि महाकाव्यों को टीवी पर इस तरह से पेश किया जाना चाहिए कि लोगों के जेहन में बनी छवि की पुष्टि हो सके। रामानंद सागर की पोती मीनाक्षी सागर कहती हैं कि पहले के सीरियल में नजर आया भक्ति और भाव नए निर्माणों में नदारद रहा है। वह कहती हैं, 'आज के दौर में ऐसे कार्यक्रम आध्यात्मिक दृष्टि देने के बजाय विजुअल उत्तेजना का जरिया बन रहे हैं।' मीनाक्षी के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में ऐसे सीरियल की भरमार हुई है लेकिन शुरू में विजुअल प्रस्तुति से ध्यान आकर्षित करने के बाद ये कमजोर पडऩे लगते हैं। गणेश और हनुमान जैसे लोकप्रिय किरदारों पर तो कई सीरियल बने हैं। सोनी पिक्चर्स नेटवर्क के कारोबार प्रमुख नीरज व्यास की मानें तो तकनीक में लगातार हो रहे बदलाव किसी भी पौराणिक कहानी को पांच साल बाद नए विजुअल आकर्षण के साथ दोबारा पेश करने की सुविधा दे देते हैं। सोनी नेटवर्क का चैनल सब टीवी जल्द ही काल्पनिक किरदार अलादीन पर सीरीज लेकर आ रहा है। इसके बारे में व्यास कहते हैं, 'अलादीन के किरदार से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं जो अभी तक पर्दे पर पेश नहीं की गई हैं। हम इसे 2018 के अलादीन की तरह पेश कर रहे हैं।' उनका दावा है कि नए अलादीन में दर्शकों को जिन्न, जादुई चिराग और उडऩे वाले कालीन के अलावा काफी कुछ देखने को मिलेगा। जबरदस्त हिट रही बाहुबली फ्रेंचाइजी का निर्माण करने वाला अर्क मीडिया वक्र्स ईटीवी तेलुगू पर एक पीरियड काल्पनिक कहानी (स्वर्ण खड्गम) लेकर आया है और जल्द ही इसे हिंदी समेत दूसरी भाषाओं में भी डब करने की योजना है। इस सीरियल के निर्माता शोबू यार्लागड्डïा कहते हैं, 'दर्शकों को आकर्षित करने के लिए शुरू में कुछ नयापन चाहिए होता है और कंप्यूटर-जनित प्रस्तुति के जरिये इसमें मदद भी मिल सकती है। लेकिन दर्शकों को अपने साथ बनाए रखने के लिए अच्छी कहानी होना भी उतना ही जरूरी है।'
कुछ पौराणिक कहानियों की लोकप्रियता एक खास इलाके तक ही सीमित होती है। वैसे सोनी नेटवर्क का मानना है कि दक्षिण से उपजी कहानियां देश भर में दर्शक जुटाने में सफल हो रही हैं। सोनी नेटवर्क पर हाल ही में चालुक्य वंश की रानी और मालवा नरेश की कहानी पेश करने वाला सीरियल 'पृथ्वी वल्लभ: इतिहास भी, रहस्य भी' दिखाया गया है। इसमें चोल शासक राजराज चोल और भगवान विष्णु के छठें अवतार कहे जाने वाले परशुराम की कहानी भी समेटी गई है।
विज्ञापनदाताओंका आकर्षण
ज़ी टीवी भी मनोरंजक सीरियल प्रसारित करने के मामले में पीछे नहीं है। इतिहास, मिथक और फंतासी पर आधारित कहानियां ज़ी नेटवर्क के कार्यक्रमों का मूल आधार हैं। ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज की मुख्य विपणन अधिकारी प्रत्यूषा अग्रवाल कहती हैं कि घरों के ड्राइंगरूम में रखे टीवी सेटों का आकार बढऩे से अब लोग कल्पनाओं को साकार रूप में देखना पसंद करते हैं। उनका मानना है कि फंतासी कार्यक्रमों के प्रति शहरी दर्शकों में भी रुझान बढ़ रहा है और अब वे इन पर अधिक समय व्यतीत कर रहे हैं। 15 से 21 साल की उम्र वाले युवा दर्शकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। वह कहती हैं, 'फंतासी और पौराणिक श्रेणी के सीरियल के निर्माण पर किए गए निवेश पर प्रसारकों को तगड़ा रिटर्न मिलता है।' इसका मतलब यह है कि इस श्रेणी के सीरियल की तरफ अधिक विज्ञापनदाता भी आकर्षित होते हैं।
पिछले दशक में बच्चों के लिए बनने वाले कार्यक्रमों में भी खासा उछाल देखने को मिली है। दरअसल स्थानीय स्तर पर एनिमेशन उद्योग के उदय ने किड्स श्रेणी को मजबूती दी है। प्रसारकों के लिए किड्स कार्यक्रम भी खासे अहम हो चुके हैं क्योंकि कुल टेलीविजन दर्शकों में 20 फीसदी संख्या 2-14 साल के बच्चों की ही है। बार्क के आंकड़ों की मानें तो तमाम उम्र समूहों में किड्स श्रेणी सबसे अधिक है। ग्रीन गोल्ड एनिमेशन के संस्थापक एवं सीईओ राजीव चिलका कहते हैं कि वर्ष 2008 में जहां भारत में केवल छह एनिमेशन चैनल हुआ करते थे वहीं अब यह संख्या बढ़कर 20 के करीब हो चुकी है। इसके बावजूद बच्चों के लिए केंद्रित कार्यक्रमों का निर्माण उस रफ्तार से नहीं बढ़ा है। चिलका की ही टीम ने बेहद लोकप्रिय भारतीय कॉर्टून किरदार छोटा भीम को गढ़ा था। पोगो टीवी पर पहली बार 2008 में छोटा भीम सीरियल का प्रसारण शुरू हुआ था। भले ही यह किरदार महाभारत के बलशाली चरित्र भीम से प्रेरित था लेकिन इसकी कहानियां अलग कालखंड एवं परिवेश से भी जुड़ी हुई हैं। किड्स श्रेणी में पौराणिक किरदारों को उस तरह से पसंद नहीं किया जाता है जबकि मौलिक सामग्री को बच्चे अधिक पसंद करते हैं। वहीं 11-14 साल की उम्र वाले बड़े बच्चों को अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि वाले कार्यक्रम पसंद आते हैं।
कैसी लोकप्रियता
तमाम क्षेत्रों और उम्र समूहों में अपनी अपील के चलते मिथकीय एवं ऐतिहासिक किरदारों पर आधारित कॉस्ट्यूम ड्रामा सामान्य मनोरंजन चैनलों के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम हैं। बार्क के आंकड़े बताते हैं कि 16-17 जुलाई को नागिन-3 सीरियल को 1.45 करोड़ घरों में देखा गया जबकि पौराणिक कहानी पर आधारित महाकाली को केवल 27.8 लाख घरों में देखा गया। इस अवधि में पोरस सीरियल 2.43 करोड़, विघ्नहर्ता गणेश 2.24 करोड़ और तेनाली रामा 2.3 करोड़ घरों में देखा गया। मार्केटिंग एवं संचार एजेंसी मोगे मीडिया के चेयरमैन संदीप गोयल कहते हैं कि समय के साथ पौराणिक एवं मिथकीय कहानियों पर आधारित कार्यक्रम तकनीकी रूप से डाउन मार्केट समझे जाने लगे हैं। इसकी वजह यह है कि आज के दौर में धार्मिक एवं पौराणिक सीरियल को समाज के अपेक्षाकृत निचले तबके का ही साथ मिलता है जबकि 1980 के दशक में हरेक तबका इसके साथ जुड़ा हुआ था।
गोयल कहते हैं, 'पौराणिक कहानी परोसने वाले सीरियल में आज लोग अधिक पैसा नहीं लगाना चाहते हैं जिसके चलते वे अन्य श्रेणियों के मुकाबले आदिम दौर के नजर आते हैं।' भारतीय टेलीविजन की सूरत बदल देने वाले गेम शो 'कौन बनेगा करोड़पति' और कुछ हद तक बिग बॉस के बाद पारिवारिक कहानियां परोसने वाले सीरियल और डांस शो टेलीविजन पर खासे लोकप्रिय बने हुए हैं। उन्हें उम्मीद है कि ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म की सक्रियता बढऩे से कार्यक्रमों का स्वरूप भी बदल जाएगा। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी सेवा प्रदाता ने कुछ दिनों पहले ही बेहतरीन प्रतिभाओं को शामिल करते हुए भारत की पहली मौलिक सीरीज सेक्रेड गेम्स का निर्माण किया है। गोयल कहते हैं, 'ओटीटी प्रदाता युवा दर्शकों को अपने साथ जोडऩे के लिए तेजी से काम कर रहे हैं। इसके अलावा उन पर विज्ञापनदाताओं का भी उकना दबाव नहीं है।' यह भी सच है कि पौराणिक एवं काल्पनिक किरदार भारत जैसे आध्यात्मिक एवं धार्मिक मान्यता वाले देश में फैशन से दूर नहीं रह सकते हैं। कार्यक्रम निर्माताओं से लेकर विशेषज्ञों तक हरेक को यह लगता है कि मनोरंजन उद्योग में ऐसे कार्यक्रमों का दबदबा राजनीतिक परिवेश में दक्षिणपंथी हिंदू पुनरुत्थानवादियों के उभार के बाद कायम है।
मुंबई यूनिवर्सिटी में समकालीन मिथकीय शास्त्र के प्रोफेसर उत्कर्ष पटेल कहते हैं कि आज के समय में पौराणिक एवं कॉस्ट्यूम ड्रामा तकनीकी रूप से अधिक सशक्त हैं, सेट एवं परिधानों की चमक-दमक पूरी तरह निखरकर सामने आती है और आभूषण एवं हथियार भी काफी उन्नत नजर आते हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि इन सीरियल की कहानियां उतनी सधी हुई नहीं हैं और अक्सर उन्हें खींचने की कोशिश की जाती है। उनका मानना है कि परोसे जाने वाले कंटेंट में काल्पनिकता की अधिकता होने से दर्शकों को जानकारी से अधिक मनोरंजन मिल रहा है। हालांकि एपिक जैसे सूचनाप्रधान चैनल अधिक सटीक एवं जानकारीपरक कार्यक्रम दिखाते हैं।
पटेल कहते हैं, 'भारत एक जीवंत पौराणिक आख्यान है। हम पढ़े बगैर भी रामायण और महाभारत की कहानियों से परिचित हैं। इसी वजह से हम भीम की तरह खाने और हिडिम्बा की तरह हंसने जैसी उक्ति का इस्तेमाल करते हैं। भारतीयों को इन पौराणिक मान्यताओं से अलग कर पाना नामुमकिन है।'
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