रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं (एफएमसीजी) बनाने वाली कंपनियों की बिक्री में अब सुधार दिखने लगा है क्योंकि नोटबंदी और नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के कारण पैदा हुए उथल-पुथल से बाजार उबरने लगा है। बीएसई 500 सूची में शामिल शीर्ष एफएमसीजी कंपनियों के पांच तिमाहियों के नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि उनके लिए मुनाफा वृद्धि का महत्त्व भी बराबर है। खास तौर पर पिछली तीन तिमाहियों यानी अक्टूबर से दिसंबर 2017 और अप्रैल से जून 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि मुनाफा वृद्धि अधिक मार्जिन के साथ बिक्री की वृद्धि से आगे निकल गई। यह अंतर 7 से 9 फीसदी रहा जिसे जिंस कीमतों में नरमी, अतिरिक्त मार्जिन और मुनाफा वृद्धि से बल मिला। हालांकि कच्चे तेल और मुद्रा बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण आगामी तिमाहियों में इनपुट लागत का दबाव बढ़ सकता है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि लागत नियंत्रण के आक्रामक उपायों के बल पर कंपनियां इस जोखिम से निपट सकती हैं। एडलवाइस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (अनुसंधान-संस्थागत इक्विटी) अबनीश रॉय ने कहा, ‘कुछ तिमाही पहले इस प्रकार के उपाय शुरू किए गए थे।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कंपनियां अपने परिचालन में काफी कुशल रहीं, लागत को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर पाईं और वे बेहतर उत्पाद पोर्टफोलियो एवं मूल्य निर्धारण, विज्ञापन एवं बिक्री बेहतर रणनीति के साथ आगे बढ़ीं।’ पिछले साल जुलाई के बाद वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के बाद देखा गया कि कंपनियों ने दरों में कटौती का फायदा ग्राहकों को आक्रामक तरीके से दिया जिससे बिक्री को बल मिला। लेकिन तमाम कंपनियों की नजर मार्जिन और मुनाफे पर भी रही। विश्लेषकों ने कहा कि पिछली तीन तिमाहियों के दौरान एफएमसीजी कंपनियों के सकल मार्जिन में औसतन करीब 200 आधार अंकों की वृद्धि हुई जबकि परिचालन मार्जिन में करीब 300 आधार अंकों का इजाफा हुआ। कंपनियों ने प्रत्येक डिपार्टमेंट में कुशलता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जिससे मार्जिन को बल मिला। इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा कि बहुराष्ट्रीय उपभोक्ता वस्तु कंपनियों ने भी हाल की तिमाहियों में लाभप्रदता पर ध्यान केंद्रित करने में अपनी मूल विदेशी कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया जबकि वैश्विक स्तर पर सक्रिय निवेशकों ने उन पर काफी दबाव डाला था। चोकालिंगम ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, यूनिलीवर जैसी कंपनियों ने पिछले साल संकेत दिए थे कि वे लागत में कटौती की अपनी योजनाओं को आगे बढ़ा रही हैं और उनकी नजर 2020 तक 20 फीसदी परिचालन मार्जिन हासिल करने पर है।’ प्रॉक्टर ऐंड गैम्बल के वैश्विक मुख्य कार्याधिकारी डेविड टेलर ने निवेशकों से हालिया बातचीत में कहा कि कंपनी बाजार की चुनौतियों से निपटने और मुनाफा वृद्धि एवं बिक्री में सुधार के लिए बदलाव पर जोर दे रही है। उन्होंने कहा, ‘हम एक ऐसा संगठन तैयार कर रहे हैं जिसे हरेक बाजार में परिणाम मिले ताकि हम अपनी वृद्धि को रफ्तार दे सकें।’कोलगेट-पामोलिव के वैश्विक मुख्य कार्याधिकारी इयान कुक ने भी इसी तरह की राय जाहिर की। उन्होंने हाल में निवेशकों से बातचीत में कहा कि कंपनी इनपुट लागत पर दबाव बढऩे के बावजूद उत्पादकता आधारित बचत एवं पहल पर जोर दे रही है। लागत नियंत्रित करने के मोर्चे पर घरेलू बाजार की प्रमुख एफएमसीजी कंपनियां डाबर और गोदरेज कंज्यूमर (जीसीपीएल) भी किसी से पीछे नहीं हैं।
