सौर ऊर्जा क्षेत्र में आईपीओ का लंबा होता इंतजार | |
श्यामल मजूमदार / 08 07, 2018 | | | | |
क्या निकट भविष्य में देश को पहली सूचीबद्ध नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी मिल सकती है? इस प्रश्न का उत्तर अभी भी अनिश्चित है। गत वर्ष सितंबर में एक्मे समूह ने बाजार नियामक के पास एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया था जो उसी सौर ऊर्जा शाखा की प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) से संबंधित था। कंपनी आरंभ में 2,200 करोड़ रुपये जुटाना चाहती थी जिसे बाद में घटाकर 1,000-1,500 करोड़ रुपये कर दिया गया लेकिन इसमें भी कामयाबी नहीं मिली क्योंकि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने उसके मूल्यांकन पर आपत्ति उठाई।
इस वर्ष फरवरी में सिंगापुर के बुनियादी ढांचागत समूह सेंबकॉर्प ने देश की ऊर्जा शाखा में एक आईपीओ लाने की पेशकश की। वह बाजार से 4,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाना चाहता था। इस बारे में भी अब तक कुछ सुनने को नहीं मिला है। चेन्नई की सौर ऊर्जा कंपनी रेफेक्स एनर्जी के आईपीओ लाने की खबरें भी सुनने को मिलीं। इतना ही नहीं मित्रा एनर्जी और अदाणी ग्रीन के नाम भी सुनने को मिलते रहे लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आया।
अब जबकि रिन्यू पॉवर जैसी बड़ी कंपनी को आईपीओ लाने के लिए सेबी की मंजूरी मिल गई है तो अपेक्षाओं ने फिर जोर पकड़ा है। माना जा रहा है कि कंपनी अपने आईपीओ से करीब 4,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जुटा सकती है। यह इस वर्ष देश की सबसे बड़ी लिस्टिंग हो सकती है। गोल्डमैन सैक्स और कनाडा पेंशन प्लान निवेश बोर्ड इस कंपनी के निवेशक हैं। कंपनी के पास 4,000 मेगावॉट पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता मौजूद है। 1,700 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता का विकास हो रहा है।
कंपनी की विश्वसनीयता बेजोड़ है। सन 2011 में सुमंत सिन्हा द्वारा स्थापित इस कंपनी ने हाल ही में देश के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा सौदों में से एक में ओस्ट्रो एनर्जी को खरीद लिया। कंपनी के निवेशकों में अबूधाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी और जेरा (दो सबसे बड़े जापानी उपक्रमों का समूह) शामिल हैं। इतने शानदार रिकॉर्ड के बावजूद अगर द इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट पर यकीन करें तो रिन्यू के आईपीओ में देरी हो सकती है क्योंकि प्रबंधन को मूल्यांकन के मोर्चे पर एंकर निवेशकों की अपेक्षित मांग जुटाने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी ने अब तक इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, हालांकि पहले उसकी योजना वर्ष की दूसरी छमाही के पहले आईपीओ पेश करने की थी।
रिन्यू के आईपीओ के आगमन को लेकर बनी अनिश्चितता यह दिखाती है कि देश में सौर ऊर्जा क्षेत्र को लेकर किस तरह का भ्रम व्याप्त है। इसमें दो राय नहीं है कि भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है लेकिन दिक्कत यह है कि टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली और प्रतिस्पर्धा के चलते कंपनियों के इक्विटी रिटर्न पर असर पड़ रहा है।
परंतु रिन्यू जिस पैमाने पर काम कर रही है उससे वह बेहतर स्थिति में नजर आ रही है। कंपनी अपने प्रतिस्पर्धियों द्वारा लगाई जाने वाली अतार्किक बोली के झटके को झेलने के लिए बेहतर ढंग से तैयार नजर आ रही है। प्रतिस्पर्धी भी सन 2022 के अंत तक स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता में 225 गीगावॉट जोडऩे की योजना को देखते हुए अवसर गंवाना नहीं चाहते।
देश के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े शुरुआती उत्साह में कई कंपनियों ने संभावित जोखिम को तवज्जो नहीं दी। इस उद्योग को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। उदाहरण के लिए एक्मे ने मई 2017 में राजस्थान के एक सौर ऊर्जा उपक्रम से निकलने वाली बिजली के लिए प्रति यूनिट 2.44 रुपये की अत्यंत कम दर की बोली लगाई। कई लोगों के लिए यह अदूरदर्शी सोच है जिसकेचलते परियोजना नाकाम हो सकती है, हालांकि ऐसे भी लोग हैं जो सौर ऊर्जा की कम होती कीमत को देश के बदलते ऊर्जा परिदृश्य का उदाहरण मानते हैं।
इससे जुड़ी हुई अन्य चिंताएं भी हैं। इस उद्योग के लिए वस्तु एवं सेवा कर ढांचे को लेकर अस्पष्टता भी कई परियोजनाओं की व्यवहार्यता को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर रही है। हालांकि जीएसटी की दर 5 फीसदी है लेकिन हाल ही में अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग ने कहा है कि यह दर 18 फीसदी होगी। यह उद्योग नया है इसलिए केंद्र सरकार की आडंबरपूर्ण योजनाएं राज्य स्तर पर आकर लडख़ड़ा जाती हैं। कई राज्य सरकारों मसलन उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु ने अपना बिजली खरीद दायित्व भी नहीं निभाया है।
चीन तथा मलेशिया से आयात किए जाने वाले सोलर पैनल पर लगने वाले सेफगार्ड शुल्क का भी मसला है। सोमवार को जारी अधिसूचना के बाद भारत अमेरिका के पश्चात ऐसा शुल्क लगाने वाला दूसरा देश हो गया है। देश की सौर परियोजनाओं में प्रयोग किए जाने वाले 90 फीसदी से अधिक पैनल और मॉड्यूल इन्हीं दो देशों से आयात किए जाते हैं। इसके चलते 27,000 मेगावॉट क्षमता की परियोजनाओं की व्यवहार्यता अनिश्चित हो गई है। इनमें से कुछ की बोली भी खत्म हो चुकी है।
आईसीबीसी इंटरनैशनल रिसर्च के मुताबिक अल्पावधि में इस शुल्क का विपरीत प्रभाव हो सकता है। आईसीबीसी के हॉन्गकॉन्ग के विश्लेषकों ने कहा है कि भारत आने वाले एक-डेढ़ वर्ष तक चीन से होने वाले आयात पर काफी हद तक निर्भर रहेगा क्योंकि शुल्क के बावजूद वह घरेलू उत्पादन से सस्ता होगा। उनका कहना है कि शुल्क से घरेलू प्रोजेक्ट डेवलपरों को अवश्य नुकसान हो सकता है क्योंकि इससे लागत में कम से कम 12 फीसदी का इजाफा होगा। जबकि चीन की प्रमुख निर्यातक की हैसियत पर कोई असर नहीं होगा।
संक्षेप में कहें तो अगर इन चिंताओं को हल नहीं किया गया तो सौर ऊर्जा क्षेत्र की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। विश्व बैंक ने भारत के बारे में कहा है कि वह सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व में सबसे बेहतर परिस्थितियों वाला देश है। देश की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसका अधिकांश हिस्सा सूर्य के उच्चतम विकिरण के दायरे में रहता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह उद्योग किसी भी तरह नाकाम न होने पाए।
|