कृषि उत्पादन पर संकट के बादल | रॉयटर्स / मुंबई August 01, 2018 | | | | |
भारत में वर्ष 2018 के दौरान मॉनसून सामान्य से कम रहने के आसार हैं। मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली एक निजी एजेंसी ने आज एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में कृषि उत्पादन और आर्थिक वृद्धि के संबंध में चिंता बढ़ाने वाली यह जानकारी दी है जहां आधे खेतों में सिंचाई का अभाव है। भारत की सालाना बारिश का 70 प्रतिशत भाग मॉनसून से प्राप्त होता है। यह कृषि क्षेत्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। भारत की दो लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का करीब 14 प्रतिशत योगदान रहता है और देश के 1.3 अरब लोगों में से आधे से अधिक लोगों को यह क्षेत्र रोजगार प्रदान है।
कम बारिश से खाद्य पदार्थों के दामों में इजाफा हो सकता है और केंद्रीय बैंक पर ब्याज दरों में वृद्धि का दबाव पैदा कर सकता है। स्काईमेट ने एक वक्तव्य में कहा कि भारत का जून-सितंबर के मॉनसून सीजन में दीर्घावधि औसत (एलपीए) वर्षा का केवल 92 प्रतिशत रह सकता है जो 100 प्रतिशत के पिछले पूर्वानुमान से कम है। भारत के मौसम विभाग ने इस चार महीने के पूरे सीजन में 96 प्रतिशत और 50 वर्षों कीऔसत 89 सेंटीमीटर बारिश के बीच औसत या सामान्य बारिश बताया है। स्काईमेट ने कहा कि अगस्त के दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून एक दीर्घकालीन कमजोर चरण में जा सकता है। एजेंसी ने कहा कि अगस्त और सितंबर में भारत में एलपीए की क्रमश: 88 प्रतिशत और 93 प्रतिशत बारिश हो सकती है। स्काईमेट के प्रबंध निदेशक जतिन सिंह ने कहा कि मौसम के उत्तरार्ध के दौरान अब तक समुद्री दशाएं मॉनसूनी बारिश में वृद्धि करने के पूरी तरह अनुकूल नहीं हैं। सरकार द्वारा संचालित भारतीय मौसम विभाग के अनुसार मॉनसून के पूर्वार्ध में भारत में सामान्य से छह प्रतिशत कम बारिश हुई है। विभाग ने सीजन के दौरान 97 प्रशित बारिश का पूर्वानुमान जताया है।
भारत के 26 करोड़ किसान चावल, चीनी गन्ना, मक्का, कपास और सोयाबीन जैसे फसलों की खेती के लिए मॉनसूनी बारिश पर निर्भर रहते हैं। बारिश में कमी के कारण किसानों की कम आमदनी से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को नुकसान पहुंच सकता है। देश के कुछ दक्षिणी और उत्तरी इलाकों में कम बारिश की वजह से ग्रीष्म काल की फसलों की बुआई में पहले ही विलंब हो चुका है। कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने कहा है कि किसानों ने 27 जुलाई तक 7.38 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर ग्रीष्म काल की फसलें बोई हैं जो एक साल पहले की तुलना में 7.5 प्रतिशत कम हैं। भारत विश्व में कपास और दलहन का सबसे बड़ा तथा चीनी और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यह पॉम ऑयल और सोया तेल जैसे खाद्य तेलों का भी विश्व का सबसे बड़ा आयातक है।
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