निजता की चिंता | संपादकीय / July 29, 2018 | | | | |
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2018 का मसौदा और श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट, दोनों मिलकर वह आधार तैयार करते हैं जिन पर सिद्घांत रचकर लोगों के निजता के मूल अधिकार की रक्षा की जा सकती है। मसौदा विधेयक इस लिहाज से प्रगतिशील है कि यह निजता की बात को आगे बढ़ाता है। विधेयक बताता है कि व्यक्तिगत डेटा क्या है और वह इस श्रेणी को आईटी ऐक्ट में उल्ल्ििखत दायरों से परे ले जाता है। अब पासवर्ड, वित्तीय डेटा, स्वास्थ्य संबंधी डेटा, आधिकारिक पहचानकर्ता, यौन जीवन, यौन रुझान, बायोमेट्रिक डेटा, जेनेटिक डेटा, ट्रांसजेंडर दर्जा, अंतर्यौनिक दर्जा, जाति या जनजाति, धार्मिक या राजनीतिक विचार और आस्था आदि सभी व्यक्तिगत डेटा में आते हैं।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लोकेशन को अभी भी संवेदनशील नहीं माना जा रहा है। डेटा प्रसंस्करण निष्पक्ष और तार्किक ढंग से किया जाना चाहिए ताकि निजता को बचाकर रखा जा सके। विधेयक कहता है कि स्पष्टï, विशिष्टï और विधिक उद्देश्य के लिए केवल सीमित व्यक्तिगत डेटा ही जुटाया जाना चाहिए। इसके अलावा संबंधित व्यक्ति को यह बताया जाना चाहिए कि कौन सा डेटा लिया गया है। व्यापक रियायती मामलों के अलावा डेटा लेने में विशिष्टï तौर पर सहमति हासिल की जानी चाहिए। परंतु इस विधेयक में कई खामियां हैं और ऐसी रियायतें शामिल हैं जिनके आधार पर बिना सहमति के व्यक्तिगत डेटा लिया और इस्तेमाल किया जा सकता है। मसौदे में सुधार, उन्नयन और डेटा पोर्टबिलिटी को शामिल किया गया है लेकिन भुलाने के अधिकार (इंटरनेट से या अन्य जगह से डेटा हटवाने का अधिकार) को भ्रामक अंदाज में तैयार किया गया है। राइट ऑफ डिलीशन या आपत्ति करने के अधिकार को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। प्रस्तावित डेटा संरक्षण प्राधिकरण को अधिकार होगा कि वह तय करे कि डेटा जारी होने से लोग प्रभावित हुए हैं या नहीं। इसके अलावा निगरानी कम करने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है। बल्कि डेटा लोकलाइजेशन के प्रावधान तो निगरानी बढ़ाने वाले हो सकते हैं। रिपोर्ट में अनुशंसा की गई है कि आधार अधिनियम में बदलाव किया जाए लेकिन विधेयक इस अहम मसले पर खामोश है।
सहमति के अलावा डेटा सरकारी काम के लिए भी जुटाया जा सकता है। मसलन कानूनी आदेश के अनुपालन के लिए, आपातकालीन परिस्थितियों में, रोजगार से जुड़े मामलों आदि के लिए। सरकार के कामकाज बहुत व्यापक हैं और वह विशिष्टï श्रेणी है। इसके अलावा कानून को उचित वजह की व्याख्या भी करनी पड़ सकती है। उदाहरण के लिए आधार को बिना सहमति के मंजूरी दी जा सकती है क्योंकि वह सरकार से जुड़ा हुआ मामला है। विधेयक हर व्यक्तिगत डेटा को देश में रहने की बात कहते हुए सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अहम व्यक्तिगत डेटा को गोपनीय कर सके। वह उसे देश में उसके भंडारण और प्रसंस्करण का अधिकार भी देता है। समिति के दो सदस्यों ने इस प्रावधान से असहमति जताई है। यह कई वजहों से असंतोषजनक है।
इसके लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी है। न तो तेज ब्रॉडबैंड है, न सर्वर क्लाउड क्षमता। डेटा रखने और प्रसंस्कृत करने का भी खर्च है। डेटा का अनिवार्य स्थानीयकरण एजेंसियों की निगरानी बढ़ा सकता है। ये पहले ही 'सरकार के काम' के अधीन आता है। दुख की बात है कि मशविरे की प्रक्रिया अस्पष्टï थी और समिति के समक्ष प्रस्तुतियों को गोपनीय रखा गया। अधिकांश मसौदा विधेयकों के उलट इसमें अंशधारकों की प्रतिपुष्टिï की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में गंभीर चिंता के ये मसले विधेयक के कानून बनने पर भी हल नहीं हो सकेंगे। मसौदा नागरिकों के डेटा संरक्षण की दिशा में एक शुरुआत करता है लेकिन यह यूरोपीय संघ के जनरल डेटा संरक्षण नियमन के आसपास भी नहीं है।
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