उच्चतम न्यायालय ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और ग्वालियर झांसी एक्सप्रेसवे लिमिटेड के बीच विवाद में मध्यस्थ पंचाट और दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों को खारिज कर दिया है। कंपनी को राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 75 को 4 लेन बनाने का ठेका मिला था। लेकिन उसका काम संतोषजनक नहीं था। एनएचएआई ने अनुबंध खत्म करने की धमकी दी और परियोजना का बाकी काम पूरा करने के लिए ताजा निविदा भी जारी की। इससे विवाद शुरू हुआ। कंपनी ने यह दलील देते हुए निविदा को चुनौती दी कि उसके पास सबसे कम बोली के मिलान का विकल्प है जिसमें पहली बार इनकार का अधिकार (आरओएफआर) शामिल है।
उच्च न्यायालय ने इस पर विचार-विमर्श करते हुए कंपनी की इस दलील पर सहमति जताई। अलबत्ता उच्चतम न्यायालय ने पाया कि कंपनी ने निविदा प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। उच्च न्यायालय ने कहा कि बोली प्रक्रिया से दूर रहने वाली और निविदा दस्तावेजों की शर्तों का पूरा करने में नाकाम रहने वाली कंपनी सबसे कम बोली के बराबर बोली लगाने और आरओएफआर का दावा नहीं कर सकती। उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल एक जिम्मेदार बोलीकर्ता ही ऐसा कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति करने वाली एक कंपनी के निदेशकों पर आपराधिक मामला चलाने की अनुमति दे दी है। कंपनी पर इतालवी विनिर्माता कंपनी द्वारा मुहैया कराई गई मशीन के असली कलपुर्जों की जगह नकली कलपुर्जे लगा दिए थे। बिहार के सीवान में पैथोलॉजिकल क्लीनिक चलाने वाले एक डॉक्टर ने लोगोटेक लिमिटेड से पूरी तरह स्वचालित बायोकेमिस्ट्री एनालाइजर मशीन का ऑर्डर दिया था। यह अच्छी तरह काम नहीं कर रही थी। कंपनी ने फिर इसकी जगह महंगा वाला मॉडल दिया। लेकिन उसने भी गलत परिणाम दिखाया। इसलिए भारत में इतालवी कंपनी के सेवा प्रदाता को बुलाया गया। उसने पाया कि असली हिस्सों की जगह नकली कलपुर्जे लगाए गए थे। जब डॉक्टर ने पुलिस में इसकी शिकायत की तो उसे हत्या की धमकी दी गई। प्राथमिकी के मुताबिक डॉक्टर की हत्या का प्रयास भी किया गया। मजिस्ट्रेट ने इसका संज्ञान लिया। लेकिन पटना उच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर इसे खारिज कर दिया। ओम प्रकाश बनाम बिहार राज्य मामले में अपील पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टïया कंपनी के निदेशकों के खिलाफ मामला बनता है और मुकदमा आगे बढऩा चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने बिरयानी चावल बेचने वाली दो कंपनियों के बीच ट्रेडमार्क विवाद में अपने फैसले में कहा है कि मालाबार शब्द पर किसी का विशेष अधिकार नहीं है। इस मामले में परख वाणिज्य लिमिटेड ने दावा किया कि वह मालाबार गोल्ड नाम से 2001 से चावल बेच रही है। कंपनी ने आरोप लगाया कि उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी बरोमा एग्रो प्रॉडक्ट्स ने अपने चावल को बेचने के लिए मालाबार शब्द का इस्तेमाल किया। परख ने इसे उसे ट्रेडमार्क के उल्लंघन का मामला बताते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने ट्रेडमार्क के फॉन्ट, आकार और लेबल डिजाइन के बदलाव के साथ बरोमा को अपना उत्पाद बेचने की अनुमति दे दी। परख ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए उसकी अपील खारिज कर दी कि दोनों कंपनियों के लेबल मार्क में बहुत अंतर है। न्यायालय ने बरोमा की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि मालाबार कॉफी उत्पाद बेचने वाली अन्य कंपनियां भी मालाबार शब्द का इस्तेमाल कर रही हैं। वे मालाबार मॉनसून और मालाबार कोस्ट नाम से अपने उत्पाद बेच रही हैं। पीछे बैठने वाली सवारी को बीमा कवर नहीं
बंबई उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि बीमा कंपनी पीछे बैठने वाली सवारी को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं है क्योंकि वह मुफ्त की सवारी है और बीमा पॉलिसी के दायरे में नहीं आती है। एक वाहन दुर्घटना के मामले में पंचाट ने विधवा हजराबी को 3 लाख रुपये मुआवजा देने का फैसला दिया और यह बोझ यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी पर डाल दिया। कंपनी को मुआवजे की कुछ राशि अदालत में जमा करने का आदेश दिया गया। मरने वाला व्यक्ति मोटरसाइकल में पीछे बैठा था। बीमा कंपनी ने अपनी दलील में कहा कि दोपहिया लगाने वाला व्यक्ति उसका मालिक नहीं था और मरने वाला व्यक्ति पीछे बैठा था। इसलिए पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया गया। उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार कर लिया लेकिन साफ किया कि कंपनी ने जो राशि न्यायालय में जमा कराई है, उसे वापस नहीं लिया जाएगा। यह राशि मृतक के उत्तराधिकारियों को मिलेगी। लेकिन बीमा कंपनी यह राशि मोटरसाइकल के मालिक से वसूल सकती है।
निर्यात शुल्क भुगतान के लिए उत्तरदायी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नॉर्वे की कंपनी नॉर्डिक इंटरट्रेड की अपील को खारिज कर दिया है। कंपनी ने भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (सेल) से खरीदे गए प्राइम माइल्ड स्टील पर निर्यात शुल्क का भुगतान करने से इनकार कर दिया था। इस बात पर विवाद पैदा हुआ कि क्या नॉर्डिक सामान के निर्यात पर लगने वाले शुल्क के भुगतान के लिए उत्तरदायी है या नहीं। नॉर्डिक ने निर्यात शुल्क के भुगतान से इनकार किया। दूसरी ओर सेल ने समझौते और सीमा शुल्क कानून के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि सामान का मालिकाना हक खरीदार को दे दिया गया था, इसलिए निर्यात शुल्क के भुगतान की जिम्मेदारी उसी की है। नॉर्डिक मामले को भारतीय मध्यस्थता परिषद में ले गई। परिषद ने कंपनी के खिलाफ फैसला दिया। इस पर कंपनी ने मध्यस्थता एवं सुलह कानून के प्रावधानों के मुताबिक उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने पंचाट के फैसले को खारिज करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे इसमें कोई खामी नजर नहीं आई। न्यायालय का साथ ही मानना था कि इसमें उसके हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत कम थी। न्यायालय ने कहा कि अनुबंध में उल्लेखित लागत में सीमा शुल्क की लागत भी शामिल थी।
बीजों के घालमेल से फसल को नुकसान
महाराष्टï्र राज्य बीच निगम से सोयाबीन के बीज खरीदने वाले उस्मानाबाद के कई किसानों ने जब बीज बोए तो उनमें अलग-अलग तरह के पौधे निकले। उनके फूल और पत्ते भी अलग तरह के थे और फली का आकार भी अलग था। उन्होंने तालुका कृषि अधिकारी से इसकी शिकायत की। इन पौधों के नमूने के परीक्षण में पाया गया कि बीजों में कई दूसरे पौधों के बीज भी शामिल थे। किसानों ने निगम के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत की। निगम ने अपनी दलील में कहा कि किसान उपभोक्ता नहीं हैं क्योंकि पुनर्बिक्री के लिए खरीद वापसी योजना का लाभ उठाया था। साथ ही उसने दावा किया कि कम बारिश के कारण किसानों को नुकसान हुआ। निगम का कहना था कि सरकार तथा फसल बीमा कंपनियों ने किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा दिया था। जिला फोरम और अपीलीय आयोग ने मुआवजा मिलने के दावे को सही नहीं पाया। उनका कहना था कि किसान उपभोक्ता हैं क्योंकि उन्होंने फसल उगाने के लिए बीजों का इस्तेमाल किया। आयोग ने किसानों के नुकसान और इसके कारण हुई मानसिक पीड़ा की गणना कर मुआवजे की राशि तय की।