कोरिया के पक्ष में आर्थिक समझौते से भारत चिंतित | ज्योति मुकुल और शुभायन चक्रवर्ती / नई दिल्ली July 08, 2018 | | | | |
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच 12 अरब डॉलर का कारोबारी घाटा आगे और बढ़ सकता है। कोरिया का प्रतिनिधिमंडल 17 ओपन लाइन आफ ट्रेड के लिए जोर दे रहा है, जिससे इसकी संभावना है। इसके अलावा भारत को 'अंग्रेजी भाषी देश' का दर्जा मिलने की संभावना भी नहीं है, भले ही दक्षिण कोरिया ने दक्षिण अफ्रीका सहित अन्य देशों को यह दर्जा देना स्वीकार किया है। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे रविवार को पहुंचे और संशोधित समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता (सीईपीए) पर सोमवार को हस्ताक्षर किए जाने की संभावना है। दक्षिण कोरिया द्वारा भारत को 'अंग्रेजी भाषी देश' का दर्जा देने से भारतीयों के लिए ई-2 वीजा की राह खुल जाएगी।
भारत ने तिल और झींगा पर शून्य शुल्क की मांग की है, लेकिन कोरियाई ऐसा करने के इच्छुक नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में तिल का उत्पादन होता है, जिसका आयात कोरिया करता है। अगर कोरिया ऐसा करता तो सत्तासीन दल को राजनीति में बेहतर फायदा होगा। दक्षिण कोरिया ने भारत के तिल के आयात पर 30 प्रतिशत शुल्क लगाया है, जबकि वह चीन से शून्य शुल्क पर 24,000 टन से ज्यादा तिल का आयात करता है। कोरियाई पहले अपने लिए 11 टैरिफ लाइन खोले जाने पर सहमत हो गए थे, लेकिन सप्ताहांत चली वार्ता के बाद यह 17 पर पहुंच गई। किसी देश के लिए टैरिफ लाइन खोलने से यह सुनिश्चित होता है कि जिस देश ने इसे खोला है, उस देश के आयातकों पर मूल सीमा शुल्क शून्य लगता है। टैरिफ लाइन में आने वाले उत्पादों पर शुल्क लागू होता है।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल इंडिया के कार्यकारी निदेशक सुरंजन गुप्ता ने कहा, 'अंतिम उत्पादोंं व मध्यवर्ती वस्तुओं के बीच संतुलन अटका हुआ है। हम सिर्फ उन वस्तुओं के शून्य शुल्क पर आयात की अनुमति दे सकते हैं, जो यहां नहीं बनते अन्यथा सरकार की मेक इन इंडिया योजना प्रभावित होगी।' उन्होंने कहा, 'हमारे कारोबार में बहुत सी चीजें एक दूसरे पर निर्भर हैं और इसलिए हमें बाजार और ज्यादा खोलने के पहले अपने हितों के साथ संतुलन बनाना होगा। स्टील जैसे कुछ क्षेत्रों में हमें प्रतिकायी कदम लागू करने पड़ते हैं. ऐसे में अगर हम सीमा को कुछ खोलते हैं तो हमें संबंधित अनुरोध पर बातचीत करने की जरूरत होगी।'
भारत सीईपीए में बदलाव करना चाहता है, जो अभी 2009 से लागू है। वाणिज्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार का मकसद है कि बदलाव से भारत के निर्यातकों को दक्षिण कोरिया में सामान भेजने के लिए ज्यादा प्रोत्साहन मिल सके और मौजूदा स्थितियों के परे समझौते का विस्तार न हो। गुप्ता ने कहा कि क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी की रूपरेखा के मुताबिक भारत सीईपीए पर बातचीत कर सकता है। सूचना के मुताबिक कोरिया के लिए यह चिंता का विषय है, जो चाहता है कि भारत की ओर से और उदारीकरण हो। एक वरिष्ठ राजनयिक सूत्र ने कहा, 'उम्मीद की जा रही है कि कोरिया के राष्ट्रपति मून प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली बातचीत में इस मसले को रखेंगे क्योकि अब तक की सभी बातचीत व्यापक रूप से मुक्त कारोबार तथा और ज्यादा प्रतिबंध न लगाने को लेकर हुई है।'
पिछले साल सितंबर मेंं समझौते को विस्तार देने के फैसले के बाद सरकार पर घरेलू उद्योगों का दबाव रहा है। घरेलू उद्योग ने यह मसला उठाया है कि भारतीय निर्यात के बड़े क्षेत्रों को कोरिया में जगह बढ़ाने के लिए पर्याप्त मौका नहीं मिल रहा है, जबकि वहां से आयात में बढ़ोतरी लगातार जारी है और इससे कारोबारी घाटा बढ़ रहा है। यह समझौता भारत के सबसे पुराने मुक्त व्यापार समझौतों में से एक है, वहीं ऐतिहासिक रूप से कारोबार कोरिया के पक्ष में रहा है। भारत का आयात निर्यात की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ा है। इस समय भारत के सामान की सूची में 78 प्रतिशत से ज्यादा और कोरियाई सूची में से 88 प्रतिशत से ज्यादा शुल्क मुक्त श्रेणी में आते हैं।
एकतरफा कारोबार
सीईपीए पर हस्ताक्षर के बावजूद भारत का कोरिया और जापान को निर्यात कम बना हुआ है। सीईपीए का दायरा व्यापक करने के किसी भी कदम से जोखिम है क्योंकि इससे घरेलू निर्यातक नाराज होंगे, जिनका दावा है कि इस समझौते से अनुचित रूप से कोरिया के निर्यातकों को फायदा पहुंचा है। 2017-18 में दक्षिण कोरिया को भारत का निर्यात 4.4 अरब डॉलर रहा है, जिसमें 5.18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन दक्षिण कोरिया से होने वाला आयात इसका चार गुना ज्यादा 16.36 अरब डॉलर है। पिछले वित्त वर्ष में इसमें 30 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। कम निर्यात व ज्यादा आयात का यह अनुपात समय बीतने के साथ सिर्फ बढ़ रहा है।
निर्यात की तुलना में आयात का आधार व्यापक है लेकिन यह इलेक्ट्रॉनिक्स और भारी मशीनरी जैसे क्षेत्रोंं पर ज्यादा केंद्रित है, जहां भारत की उत्पादन क्षमता कम है। वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि बाजार को व्यापक करने पर जोर है। उन्होंंने कहा, 'प्रमुख श्रेणियों जैसे प्लास्टिक और संबंधित उत्पाद व कार्बनिक रसायन जैसी श्रेणियों में आयात पर निर्भरता कम की जा सकती है, लेकिन दक्षिण कोरिया से मशीनरी के आयात के मामले में निर्भरता कर पाना संभव नहीं है।'
ज्यादा कोरियाई निवेश पर सहमति
मून की 4 दिन की भारत यात्रा रविवार को शुरू हुई। इसका मकसद चीन के कोरिया से संबंधों की तर्ज पर भारत के साथ कारोबार बढ़ाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मून कोरियाई दिग्गजों द्वारा भारत में निवेश बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसे समर्थन करने के लिए वह सोमवार को भारत कोरिया कारोबारी मंच को संबोधित करेंगे, जिसका आयोजन फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर आफ कॉमस ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की) कर रहा है। इसमें कोरिया के बड़े कारोबारी घरानों से जुड़ी बड़ी दिग्गज कंपनियां जैसे सैमसंग, हुंडई और एलजी शामिल होंगी, जिनका कोरिया के औद्योगिक बाजार, वहां के ग्राहकों के साथ कारोबार व निर्यात में बड़ी हिस्सेदारी है। पिछले 5 महीनोंं से भी कम समय मेंं यह इस तरह की दूसरी बैठक है।
इसके पहले फरवरी महीने में मोदी ने 150 कोरियाई कंपनियों के प्रतिनिधिमंडल को मोदी ने संबोधित किया था, जो पहले भारत कोरिया कारोबारी सम्मेलन में दिल्ली पहुंचे थे। इसमें चीन के औद्योगिक घरानों ने आगे और 2.7 अरब डॉलर भारत में निवेश करने को कहा था, जिसमेंं ज्यादातर ऑटोमोबाइल और इंजीनियरिंग क्षेत्र में निवेश होना है।
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