मॉरीशस, यूएई जैसे 25 देश उच्च जोखिम वाले | बीएस संवाददाता / मुंबई July 05, 2018 | | | | |
मॉरीशस के बाहर वाले विदेशी संस्थानों के लिए भारतीय बाजारों में भागीदारी और मुश्किल होगी, जो अमेरिका के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। सूत्रों के मुताबिक, ग्लोबल कस्टोडियन ने 25 देशों की पहचान की है, जो उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं और इनमें मॉरीशस, साइप्रस और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। ग्लोबल कस्टोडियन के जरिए ही एफपीआई अपना निवेश करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इन देशों के जरिए निवेश करने वाले विदेशी फंडों को सख्त केवाईसी नियमों व अनुपालन से जुड़े अन्य नियमों का पालन करना होगा।
अभी एफपीआई के लिए केवाईसी की अनिवार्यता श्रेणियों पर आधारित है, जिसके दायरे में वे आते हैं। पहली श्रेणी व दूसरी श्रेणी के एफपीआई (जिन्हें कम जोखिम वाला निवेशक माना जाता है) को न्यूनतम दस्तावेज उपलब्ध कराने होते हैं जबकि तीसरी श्रेणी वाले एफपीआई को अतिरिक्त खुलासा करना होता है और ये अनियंत्रित इकाइयां हैं। आने वाले समय में ऐसे देश से आने वाले सॉवरिन फंडों और सही तरीके से नियंत्रित फंडों को अतिरिक्त दस्तावेज की अनिवार्यता का पालन करना होगा। साथ ही जोखिम वाले ऐसे देशों के लिए बेनिफिशियल ऑनरशिप के नियम भी सख्त होंगे, खास तौर से अप्रवासी भारतीय व भारतीय मूल के लोगों के लिए।
सेबी के एफपीआई नियम के मुताबिक, कोई भी अप्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के लोग किसी एफपीआई के बेनिफिशियल ऑनर नहीं हो सकते और ऑनरशिप यानी मालिकाना हक का निर्धारण शेयरधारिता की जांच से होगा। दूसरे शब्दों में कोई भी अप्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के लोग किसी एफपीआई में 25 फीसदी से ज्यादा मालिकाना हक नहीं रख सकते। हालांकि उच्च जोखिम वाले देशों से बाहर के फंडों के लिए यह सीमा 10 फीसदी है। ऐसे देश से आने वाले न सिर्फ नए एफपीआई को बल्कि इन नियमों का उल्लंघन करने वाले सभी एफपीआई को इसका अनुपालन करना होगा। कई एफपीआई का प्रबंधन भारतीय फंड मैनेजर करते हैं और इन्हें नए नियम के चलते अपनी हिस्सेदारी का विनिवेश करना होगा।
एक कस्टोडियन ने कहा, कई बड़े एफपीआई हैं, जिनके फंड मैनेजर भारतीय मूल के लोग हैं। इन्होंने मौजूदा ढांचे की स्थापना सेबी से उचित मंजूरी के बाद किया था। हालांकि उन्हें अब अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश के लिए कहा गया है क्योंकि नए नियमों में इनकी सीमा घटा दी गई है। कानून में हुए इन बदलावों से मौजूदा ढांचे को छूट दी जानी चाहिए।
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