ईरान में निवेश अमेरिका पर निर्भर | शाइन जैकब / नई दिल्ली July 02, 2018 | | | | |
भारत और अमेरिका के विदेश व रक्षा मंत्रियों के बीच आगामी द्विपक्षीय बैठकों के बाद ही ओएनजीसी विदेश (ओवीएल) ईरान में निवेश की योजना के बारे में फैसला कर सकती है। तेल एवं प्राकृतिक गैस लिमिटेड (ओएनजीसी) की विदेश इकाई ने 11 अरब डॉलर की अपनी निवेश योजना में कटौती कर दी है, जिसे ईरान में 6.2 अरब डॉलर निवेश कर तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) निर्यात का केंद्र बनाना था। उसके बाद अब कंपनी नए सिरे से निवेश की रणनीति बनाने जा रही है।
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, 'अब हम सिर्फ फरजाद बी ब्लॉक पर विचार कर रहे हैं, जिसका भविष्य सिर्फ द्विपक्षीय बैठक के बाद ही तय हो सकता है। अभी सरकार की ओर से कोई आधिकारिक दिशानिर्देश नहीं मिले हैं।'
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण 6 जुलाई को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और रक्षा मंत्री जिम मट्टिस से वाशिंगटन में मिलेंगी। पिछले साल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक के बाद यह फैसला किया गया था।
हालांकि अमेरिका ने नए प्रतिबंध लगा दिए हैं, लेकिन भारत इस परियोजना से बाहर नहीं निकलना चाहेगा क्योंकि वहां 21.7 लाख करोड़ घनफुट गैस भंडार है, जिसमें से 12.5 लाख करोड़ घन फुट हासिल किया जा सकता है।
इस ब्लॉक के लिए 25 दिसंबर 2002 में समझौता हुआ था। ओएनजीसी विदेश, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और ऑयल इंडिया के संयुक्त उद्यम को फारसी ऑफशोर ब्लॉक में अन्वेषण करना था। फरजाद बी गैस क्षेत्र में वाणिज्यक उपभोग वाले गैस ब्लॉक की खोज के बाद इस समझौते की अवधि जून 2009 में खत्म हो गई।
दोनों पक्षों के बीच मुख्य विवाद मुनाफा की दरों को लेकर है। जब प्रतिबंध हटा लिए गए थे तब फरजाद बी को विकसित करने के लिए ईरान ने रूस के गैजप्रोम के साथ शुरुआती समझौता किया था, क्योंकि भारत के साथ बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी थी। अधिकारी ने कहा, 'अब ब्लॉक के लिए हमारी निवेश योजना 5.5 अरब डॉलर से घटकर 3-4 अरब डॉलर रह गई है।'
ईरान भी फरजाद बी ऑफशोर फील्ड से उत्पादित पूरी गैस लेने को सहमत हो गया है। फरजाद बी से मिलने वाले गैस में सल्फर की मात्रा ज्यादा है। उन्होंने कहा, 'इसमें करीब 22 प्रतिशत अशुद्धि है। इसमें कोई संघनन भी नहीं होगा, जिससे अतिरिक्त राजस्व मिल सकता है। यह एक शुष्क गैस होगी।'
पिछले महीने अमेरिका ने ईरान से तेल खरीदने वाले सभी खरीदारों से नवंबर तय आयात रोक देने को कहा था। उसके बाद भारत ने अपने रिफाइनरों से वैकल्पिक स्रोत देखने को कहा था। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक भले ही अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंध को स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन चीन, रूस, तुर्की और जापान जिस तरह से ईरान से कच्चे तेल की खरीद जारी रखे हुए हैं, भारत का ऐसा रुख नहीं रहेगा।
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