भारत ने 3,142 वस्तुओं पर घटाया आयात शुल्क | शुभायन चक्रवर्ती / नई दिल्ली July 02, 2018 | | | | |
चीन और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के व्यापार को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार ने एशिया प्रशांत क्षेत्र के 6 सदस्य देशों से होने वाले 3,142 उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने की आज घोषणा की। इससे कुछ दिन पहले ही चीन में भी 8,500 उत्पादों पर शुल्क में कटौती की थी।
भारत और चीन द्वारा शुल्क में कटौती एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (एपीटीए) के अनुरूप व्यापार को ज्यादा उदार बनाने की प्रतिबद्घता तहत की गई है। नई शुल्क दरें 1 जुलाई से प्रभावी है। स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, भारी मशीनरी, रसायन और फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिए कच्चे माल एवं तैयार उत्पादों पर 100 फीसदी तक शुल्क घटाए गए हैं।
इससे दोनों देशों का अमेरिका के साथ होने वाले व्यापार में कमी आएगी। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप दोनों देशों को लगातार ऊंची शुल्क दरों की धमकी दे रहे हैं।
भारत ने 1975 में एपीटीए पर हस्ताक्षर किए थे। यह काफी पुराना तरजीही व्यापार समझौता है, जिसमें भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, लाओस और मंगोलिया शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बाजार में विदेशी उत्पादों की पहुंच बढ़ाने को लेकर घरेलू उद्योग चिंता जता रहे हैं क्योंकि इससे व्यापार घाटा बढ़ रहा था। भारतीय उद्योग परिसंघ के एक वरिष्ठï अधिकारी ने यह कदम मेक इन इंडिया कार्यक्रम की भावना उलट है। उनका कहना है कि इसके तहत भारत में उत्पादन बढ़ाने के लिए विनिर्माण केंद्र बनाने की बात कही गई थी।
इक्रा की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, 'अगर ये उत्पाद बीते समय में सीमित व्यापार वाले हैं तो इससे उत्पाद की लागत में कमी आ सकती है। लेकिन देश के आयात बिल में इससे इजाफा होगा और चालू खाते का घाटा और बढ़ सकता है।' वित्त वर्ष 2017-18 में देश का चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 1.9 फीसदी है, जो इससे पिछले साल 0.6 फीसदी था। शुल्क दरों में ताजा कटौती 4 जनवरी, 2017 को एपीटीए के मंत्री स्तरीय बैठक में लिए गए निर्णय के आधार पर की गई है। वाणिज्य विभाग के वरिष्ठï अधिकारियों ने इसे ट्रंप की नीति को मात देने के लिए भारत और चीन की सोची-समझी रणनीति बताई।
शुल्क दरों में कटौती के बावजूद चीन में भारत का निर्यात बढऩे की संभावना कम ही है। इनमें नियामकीय और मानक आधारित अड़चनें भी शामिल हैं। निर्यातकों का संगठन फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा, 'चीन सरकारी उद्यमिता आधारित अर्थव्यवस्था है और अधिकांश आयात सार्वजनिक कंपनियों के ऑर्डर पर होंगे। कृषि जिंसों, फार्मा आदि में बाजार की पहुंच को लेकर समस्या बनी रह सकती है। ऐसे में इन मसलों पर ध्यान देने की जरूरत है।' सहाय ने कहा, 'एपीटीए कई दशक से बना हुआ है लेकिन इसके तहत काफी कम उत्पादों को शामिल किया गया है। इसके विस्तार के चीन के निर्णय से उसके निर्यात को मदद मिलेगी। लेकिन चीन के कारोबारी साझेदार आयात के लिए दबाव दे सकते हैं। इससे व्यापार घाटा कम हो सकता है।'
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