फसल बुआई में कमी आई | |
अभिषेक वाघमारे / नई दिल्ली 07 01, 2018 | | | | |
जून के आखिर में प्रमुख फसलों की बुआई 1.65 करोड़ हेक्टेयर रही है, जो पिछले एक दशक की औसत बुआई की तुलना में 15 प्रतिशत कम है। कृषि विभाग के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कमी के पीछे जून में मध्य और उत्तर भारत में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की प्रगति में 15 दिनों का अंतराल रहना है। हालांकि जून में बारिश दीर्घ अवधि औसत का 95 प्रतिशत रही, जो लगभग सामान्य है। इससे भी खास बात यह है कि पिछले दशक के दौरान दो बार ऐसा हो चुका है कि जब जून में बुआई कम बारिश के बावजूद बेहतर रही है।
हालांकि कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि वर्षा की मात्रा केअलावा, रोपाई के लिए मिट्टी में जरूरी नमी में सुधार और बारिश का फैलाव भी बुआई के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि अगर जुलाई और सितंबर के बीच बारिश सामान्य रहती है, तो फसल उत्पादन को प्रभावित किए बिना इससे बुआई में देरी हो सकती है। हालांकि आंकड़े यह भी बताते हैं कि उन वर्षों में जब जून की बुआई सामान्य से कम रही, तब खरीफ फसल के कुल उत्पादन में कमी आई।
रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अपनी जून की वृहत-अर्थव्यवस्था संबंधी सूचना में कहा है कि मॉनसून की वास्तविक मात्रा भू-जल स्तर और जलाशयों को लबालब करने तथा समय पर बुआई करने में सहायक होगी जिसका परिणाम फसल के रूप में सामने आएगा। अर्थशास्त्री कहते हैं कि अगर जुलाई में भी खराब मॉनसून की वजह से बुआई प्रभावित होती है, तो मुद्रास्फीति पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है। जोरदार फसल वर्ष के बाद उत्पादन में गिरावट से थोक मूल्यों में इजाफा होगा और उपभोक्ता मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
दूसरी तरफ इस सप्ताह के आखिर में घोषित किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्यों से भी मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी का रुख रहेगा। जून की मौद्रिक नीति में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों ने ऐसे संकेत दिए हैं। बुआई में गिरावट के मामले में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब आगे रहे हैं। मध्यप्रदेश में कृषि के मुख्य आधार तिलहन की बुआई केवल 2,00,000 हेक्टेयर में ही की गई है, जबकि इसका औसत 13,00,000 हेक्टेयर है। इस तरह जून 2018 के आखिर तक इसमें 11 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है। महाराष्ट्र और गुजरात की दो प्रमुख फसलों दलहन और कपास का भी जून के दौरान यही हाल रहा और बुआई में काफी गिरावट आई। उधर, पंजाब में धान की बुआई में 40 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
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