आयात पर रोक चाहते हैं विनिर्माता | |
शुभायन चक्रवर्ती / नई दिल्ली 06 26, 2018 | | | | |
हाल ही में अमेरिका द्वारा आयात शुल्क में की गई वृद्धि का असर चीन के एल्युमीनियम कबाड़ की भारत में भारी मात्रा में डंपिंग के रूप में सामने आ सकता है। यह तर्क देते हुए इस क्षेत्र के प्रमुख विनिर्माताओं ने सरकार से आयात पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि एल्युमीनियम आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाए जाने की मांग के लिए हाल ही में वेदांत और हिंडाल्को जैसे प्रमुख घरेलू विनिर्माताओं ने औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव रमेश अभिषेक से मुलाकात की है। पिछले दो सालों के दौरान यह आयात काफी तेजी से बढ़ा है।
एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एएआई) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में उद्योग ने सरकार से यह भी कहा है कि मुक्त व्यापार समझौते के प्रतिकूल असर की वजह से विनिर्माता परेशानी झेल रहे हैं। उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि बड़ी मात्रा में किए जाने वाले आयात पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाया जाए और प्रस्तावित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) समझौते पर चल रहे विचार-विमर्श में एल्युमीनियम को बाहर रख जाए। आरसीईपी समूह बनाने वाले 16 एशिया-प्रशांत देशों के व्यापार अधिकारी जल्द ही टोक्यो में बातचीत के अगले दौर की शुरुआत करने वाले हैं।
पिछले दो सालों के दौरान भारत के कुल एल्युमीनियम आयात में इजाफा हुआ है, जिसमें से अधिकांश का उत्पादन मलेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे उन राष्ट्रों में हुआ है, जिनके साथ भारत के व्यापार समझौते हैं। 2017-18 में आयात 3.47 अरब डॉलर से बढ़कर 4.52 अरब डॉलर हो गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वैश्विक जिंसों की कीमतों में कुछ तेजी का रुख रहा है। हालांकि इसके सबसे बड़े भाग यानी एल्युमीनियम कबाड़ की उत्पत्ति मुख्य रूप से चीन में हुई है। उद्योग ने अन्य क्षेत्रों में भी सरकारी सहायता का अनुरोध किया है। एएआई ने वाणिज्य मंत्रालय का ध्यान इस ओर दिलाया है कि प्राथमिक उद्योग ने 2007 से 2015 तक लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है और एल्युमिना तथा बिजली के साथ एल्युमीनियम क्षमता को 20 लाख टन से दोगुना करके 40 लाख टन कर दिया है। निवेश का यह निर्णय अपने उपयोग वाली कोयला और बॉक्साइट खदानों के आवंटन पर आधारित था जो भारतीय उद्योग को सबसे सस्ता एल्युमीनियम उत्पादक बना देता। लेकिन अपने उपयोग वाली इन कोयला खदानों का आवंटन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से रद्द कर दिया गया था। उस समय तक परियोजना तैयार कर ली गई थी लेकिन अब खरीदे गए कोयले पर ही निर्भर रहना है। उधर, वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि सरकार इस रिपोर्ट का अध्ययन करेगी और उचित कदम उठाएगी।
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