प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी जल्द ही माल ढुलाई और परिवहन के मामले में देश का बहुत बड़ा ठिकाना बन जाएगा। इसके बाद खास तौर पर उत्तर भारत के कारोबारियों के लिए पूर्वी भारत, पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के साथ कारोबार करना खासा आसान हो जाएगा। लेकिन इसमें कम से कम दो साल लग जाएंगे क्योंकि देश का पहला 'फ्रेट विलेज' भी तभी बनकर तैयार हो सकेगा।
उत्तर प्रदेश के इस मशहूर शहर में बन रहा फ्रेट विलेज माल ढुलाई और परिवहन क्षेत्र की सूरत ही बदल देगा। 170 करोड़ रुपये के निवेश वाली यह परियोजना अनूठी इसलिए है क्योंकि इसमें परिवहन के विभिन्न तरीके यानी जल, थल, नभ से परिवहन एक ही जगह उपलब्ध होंगे। जहाजरानी मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'फ्रेट विलेज पूरे यूरोप में फैले हुए हैं और यह भी उन्हीं की तर्ज पर है। इस परियोजना के लिए विश्व बैंक से वित्तीय सहायता मिलेगी।'
इस परियोजना को जमीन पर उतारने का जिम्मा भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण को दिया गया है और इसका पहला प्रयोग वाराणसी में ही किया जाएगा। उसके बाद देश भर में फैले मालवहन गलियारों से और भी फ्रेट विलेज जोड़े जाएंगे। लेकिन फ्रेट विलेज बनने में अभी दो साल लगेंगे और इसमें उत्तर प्रदेश सरकार की भी साझेदारी होगी।
क्या है फ्रेट विलेज:
फ्रेट विलेज विशेष प्रकार का औद्योगिक क्षेत्र होता है, जो कंपनियों की लॉजिस्टिक्स सेवाओं की जरूरत पूरी करता है और कंपनियां वहां एकजुट होकर प्रतिस्पद्र्घा में बढ़त हासिल कर सकती हैं। इसमें खुदरा कारोबारी, गोदाम चलाने वाली कंपनियां और क्षेत्रीय एफएमसीजी बाजार को लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदान करने वाले एक साथ आ जाते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'राज्य सरकार का काम परियोजना शुरू कराने के लिए बिजली और जमीन मुहैया कराना है। हम फ्रेट विलेज की सभी जरूरतें पूरी करने में मदद करेंगे।' सरकार झंझटरहित व्यापार के लिए मल्टीमोडल परिवहन पर जोर दे रही है और फ्रेट विलेज उसी के अनुरूप है। मल्टी मोडल परिवहन में माल का कारखाने से निकलकर ग्राहक तक पहुंचना शामिल होता है।
मिसाल के तौर पर जैसे ही माल ट्रक में भरकर कारखाने से बाहर निकलता है, मल्टी-मोडल परिवहन शुरू हो जाता है। तय रास्ते से गुजरने के बाद ट्रक ट्रेन की पटरी तक पहुंचता है, जहां माल उतारा जाता है और डिब्बे में लाद दिया जाता है। ट्रेन न हो तो माल को कार्गो विमान और बड़े ट्रकों में भरकर भी भेजा जा सकता है। अपनी मंजिल पर पहुंचने के बाद माल को छोटे वाणिज्यिक वाहनों में लाद दिया जाता है। निर्यात-आयात कार्गो के लिए माल को समुद्र के रास्ते भेजा जाता है। घरेलू खपत का माल नदियों में छोटे जहाजों से भी ढोया जा सकता है।
वाराणसी का फ्रेट विलेज माल ढुलाई और भंडारण के मामले में उत्तर भारत और पूर्वी भारत के बीच का दरवाजा होगा। वाराणसी में बन रहे टर्मिनल में जल मार्ग, रेल तथा सड़क संपर्क होगा। यह परियोजना केंद्र सरकार की 5,369 करोड़ रुपये की जल मार्ग विकास परियोजना का ही हिस्सा है। लेकिन फ्रेट विलेज इससे बिल्कुल अलग है।