पीएफसी की संपत्तियों की दौड़ में वैश्विक कंपनियां | |
श्रेया जय / नई दिल्ली 06 03, 2018 | | | | |
पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) की दबाव वाली ताप विद्युत परिसंपत्तियां खरीदने में दर्जन भर देसी व वित्तीय वित्तीय संस्थानों और फंडों ने रुचि प्रदर्शित की है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच, एडलवाइस, जेएम फाइनैंशियल, केकेआर, लोनस्टार-आईएलऐंडएफएस, रीसर्जेंट पावर, एससी लोवी, टॉरंट, वर्डे पार्टनर्स, एसएसजी एशिया, वल्र्ड विंडो एग्जिम और एनआईआईएफ जैसी वित्तीय एजेंसियां पीएफसी की दबाव वाली उन परिसंपत्तियों के लिए बोली लगा सकती है, जिसकी बिक्री होनी है। पीएफसी ने चार संयंत्रों के लिए अभिरुचि पत्र आमंत्रित किया है, जिसके ऊपर इसका कर्ज है - जीएमआर रायखेड़ा (1,370 मेगावॉट), केएसके महानदी (2,400 मेगावॉट), एस्सार महान (1,200 मेगावॉट) और अवंता समूह के मालिकाना हक वाली झाबुआ पावर (600 मेगावॉट)। जीएमआर रानीखेड़ा के लिए पांच बोलीदाताओं अदाणी पावर, जेएसडब्ल्यू एनर्जी, एनएलसी इंडिया, टॉरंट पावर और वेदांत ने अपनी पेशकश जमा कराई है।
अदाणी पावर और वेदांत ने केएसके महानदी और झाबुआ के लिए भी बोली लगाई है। अन्य कंपनियों में वैश्विक वित्तीय संस्थानों और पीई समर्थित बिजली कंपनियों के फंडिंग प्लेटफॉर्म मसलन लोन स्टार और रीसर्जेंट इंडिया भी दौड़ में हैं। इनमें टाटा पावर की इक्विटी भागीदारी है। एस्सार महान के लिए अभिरुचि पत्र जल्द मंगाए जाएंगे। यह जानकारी पीएफसी के अधिकारियों ने दी। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर (पावर ऐंड यूटिलिटीज) एस महापात्र ने कहा, वित्तीय संस्थानों, स्वतंत्र बिजली उत्पादकों आदि की परिसंपत्तियों में काफी ज्यादा दिलचस्पी है। सरकारी बिजली उत्पादक कंपनियां और यूटिलिटीज को भी इसमें संभावना तलाशनी चाहिए ताकि सौभाग्य ग्राहकों के लिए सस्ती बिजली मिल सके। इसका इस्तेमाल पुरानी परियोजनाओं को हटाने (फेजिंग आउट) में भी हो सकता है। पीएफसी व अन्य लेनदार अपने कर्ज में 50 फीसदी से ज्यादा कटौती (बट्टे खाते में डालना) की उम्मीद कर रहे हैं, जब बिजली परिसंपत्तियां दिवालिया समाधान की राह पर चलेंगी। उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा, इस कटौती के बाद ज्यादातर परिसंपत्तियां 2.5-3 रुपये प्रति यूनिट पर उपलब्ध होंगी, जो इंस्टिट्यूशनल फाइनैंसरों के लिए आकर्षक होगा। पीएफसी को लगता है कि इसके कुल लोनबुक में दर्ज करीब 300 अरब रुपये की परिसंपत्तियां (कुल 14,000 मेगावॉट) नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल पहुंचेंगी।
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