वस्तु एवं सेवा कर के तहत निर्यातक अब भी 20,000 करोड़ रुपये के कर रिफंड का इंतजार कर रहे हैं और श्रम आधारित क्षेत्रों के निर्यात में सुस्ती बरकरार है, लेकिन निर्यातकों के शीर्ष निकाय के मुताबिक भारत का निर्यात चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 350 अरब डॉलर पहुंच सकता है। पिछले वित्त वर्ष में 300 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोट्र्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष गणेश कुमार गुप्ता ने मंगलवार को कहा, 'हम पिछले साल की तुलना में निर्यात में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं। पेट्रोलियम और जिंसों के दाम में तेजी की वजह से भी निर्यात वृद्धि बढ़ेगी। भारतीय रुपये में हाल में आई गिरावट से निर्यातकों को मदद मिल रही है, हालांकि यह अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग है।'
भारत का निर्यात 2017-18 में पहली बार 300 अरब डॉलर पार कर गया था। लेकिन ज्यादातर श्रम आधारित क्षेत्र जैसे रत्न एवं आभूषण, चमड़ा, परिधान और हस्तशिल्प के निर्यात में अप्रैल तक गिरावट देखी गई है। परिणामस्वरूप नौकरियों के सृजन पर असर पड़ा है। मोटे अनुमान के मुताबिक हर 10 लाख डॉलर के निर्यात पर 100 नौकरियों का सृजन होता है। ऐसे में 2.7 अरब डॉलर के अतिरिक्त निर्यात से इस क्षेत्र में 27 लाख नौकरियों के सृजन की संभावना है।
श्रम आधारित क्षेत्रों में सुस्ती की प्रमुख वजह पिछले 10 महीने से लागू जीएसटी के बार रिफंड न मिलना माना जा रहा है, जिससे नकदी का संकट है। गुप्ता ने कहा, 'हमारे अनुमान के मुताबिक एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) और इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के मद में 20,000 करोड़ रुपये का रिफंड अभी भी अटका हुआ है। इसके अलावा तकनीकी गड़बडिय़ों की वजह से भी कई निर्यातक आईटीसी के रिफंड का दवा नहीं कर सके हैं।' उन्होंने कहा कि 31 मार्च तक आसानी से रिफंड होता रहा, उसके बाद उल्लेखनीय रूप से सुस्ती आई। जहां 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के दावे मार्च में मंजूर किए गए वहीं अप्रैल में यह राशि घटकर 1000 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा रह गई।
फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि कुल राशि में आईटीसी 13,000 करोड़ रुपये है जबकि शेष आईजीएसटी है। निर्यात के लिए रिफंड गैर ईडीआई बंदरगाहों के माध्यम से होता है, जो भारत के कुल विदेशी कारोबार का करीब 15 प्रतिशत है, जो अभी शुरू नहीं हुआ है। राज्यों से भी शुल्क की हिस्सेदारी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है। फियो के मुताबिक आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने कहा कि कि उनके पास निर्यातकों को भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं। फियो ने कहा कि आईटीसी रिफंड से जुड़ी ज्यादातर समस्याएं प्रक्रिया संबंधी हैं, जिसे राज्यों द्वारा किया जाना है। रिफंड प्रक्रिया में मानवीय हस्तक्षेप से निर्यातकों के लेनदेन की अवधि और लागत बढ़ी है। गुप्ता के मुताबिक सरकार ने कहा है कि 12 प्रतिशत बैंक कर्ज निर्यातकोंं को मिलना चाहिए, जबकि कोई भी सरकारी बैंक 3 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज निर्यातकों को नहीं दे रहा है।
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