गलत सुझाव | |
संपादकीय / 05 21, 2018 | | | | |
जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने हर वर्ष सिविल सेवा परीक्षा के जरिये चुनकर आने वाले प्रत्याशियों को सेवाओं और कैडर के आवंटन की नीति में बदलाव करने का सुझाव दिया है। प्रस्ताव यह है कि उनके कैडर और सेवाओं का आवंटन तभी किया जाएगा जब वे मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में तीन महीने का फाउंडेशन कोर्स पूरा करेंगे। नौकरशाही की देखरेख करने वाले कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने संबंधित मंत्रालयों से कहा है कि वे इस प्रस्ताव की व्यवहार्यता का आकलन करें। प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया गया है कि परीक्षा के अंकों और फाउंडेशन पाठ्यक्रम के अंकों को जोड़कर निर्णय लिया जाए। इसे लेकर लोगों में परस्पर अलग-अलग मत सामने आएंगे। परंतु जब वास्तविक तंत्र की परीक्षा होती है तो ऐसा कोई मत काम आएगा इसकी संभावना नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि 15 सप्ताह में किसी तरह की विशेषज्ञता हासिल होने की उम्मीद न के बराबर है। हाल के वर्षों में परीक्षा को साक्षात्कार पर तरजीह दी गई है। इसकी एक वजह यह भी है कि भर्तियों में किसी तरह के पूर्वग्रह को समाप्त किया जा सके।
यह व्यवस्था कारगर रही है और इसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। अगर चयन प्रक्रिया में ऐसे पूर्वग्रहों और कतिपय प्रोत्साहनों को वापस लाया गया तो यह पुरातनपंथी कदम होगा। मसूरी के प्रशिक्षण कार्यक्रम को इतनी तरजीह देना कि इसी के आधार पर यह तय हो कि कौन आईएएस बनेगा और कौन नहीं, अपने आप में गलत है। यह मुसीबत को न्योता देने जैसा है। इससे नौकरशाही के आने वाले बैचों में विभाजनकारी भावना और अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा होगी। जबकि फाउंडेशन पाठ्यक्रम कैडर में एकजुटता की भावना पैदा करने के लिए किया जाता है। सबसे अहम बात यह है कि यह युवा प्रत्याशियों को इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि वे सही सबक सीखने के बजाय परिसर में मौजूद अपने वरिष्ठïों और अपने प्रशिक्षकों को खुश और प्रभावित करने की कोशिश करें। सत्ता पर सवाल खड़े करना और ज्ञान हासिल करना दोनों ऐसी बातें हैं जिनका प्रशिक्षण अखिल भारतीय सेवाओं में आने वाले अधिकारियों को दिया ही जाना चाहिए। भले ही वे अपने करियर में आगे चलकर इनका पालन करें अथवा नहीं। बहरहाल, नया प्रस्ताव इनके लिए भी जोखिम भरा है। नौकरशाहों को अपना बाकी का जीवन अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में बिताना होता है। ऐेसे में कम से कम उनकी सेवाओं और कैडर के चयन के लिए इस तरह का आधार नहीं तैयार किया जाना चाहिए।
यह दुर्भाग्य की बात है कि मौजूदा सरकार के अब तक के कार्यकाल में प्रशासनिक सेवा सुधार के नाम पर केवल यही एक सुधार प्रस्तावित है। वह भी एक ऐसा प्रस्ताव जो एक ऐसी नौकरशाही तैयार करेगी जो ठीक से प्रशिक्षित भी नहीं होगी और अपने मालिकान के अनुगमन का भाव रखेगी। यकीनन ऐसा इरादतन नहीं किया गया होगा। कहने का यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि सिविल सेवाओं में सुधार नहीं किया जा सकता है। सामान्य जानकारी वाली सेवा के बदले विषय विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। वे मौजूदा दौर की प्रशासनिक और नीतिगत समस्याओं की जटिलताओं से कहीं बेहतर तरीके से निपट सकेंगे। अधिकारियों को विषय और विशेषज्ञता के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए। इन तमाम सुधारों पर पर्याप्त अध्ययन हो चुका है और दशकों पहले इनकी अनुशंसा की जा चुकी है। अब इन पर कार्रवाई करने का वक्त आ गया है। परंतु आधी अधूरी तैयारी के साथ प्रस्तुत सुधार एक प्रतिबद्घ नौकरशाही ही तैयार करेंगे। ऐसे विचार को नकारा ही जाना चाहिए।
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