अच्छी वृद्घि, औसत मार्जिन | |
संपादकीय / 05 20, 2018 | | | | |
अब तक जिन 720 कंपनियों ने मार्च 2018 तिमाही के नतीजे जारी किए हैं उनसे यह बुरी खबर सामने आ रही है कि शुद्घ मुनाफा 34 फीसदी कम हुआ है। यह बीते तीन सालों का सबसे कमजोर तिमाही प्रदर्शन है। परंतु अच्छी खबर यह है कि अगर वित्तीय और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों को निकाल दिया जाए तो शुद्घ मुनाफे में 15 फीसदी की वृद्घि नजर आती है। यह सितंबर 2016 तिमाही के बाद सबसे बेहतर स्तर है। इस पर चकित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि कई सरकारी बैंकों को फंसे हुए कर्ज की प्रोविजनिंग के कारण घाटे का सामना करना पड़ा है। 13.9 फीसदी की राजस्व वृद्घि के साथ यह बीते तीन सालों की दूसरी सबसे अच्छी तिमाही है। यही वह अवधि है जब नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर से बना दबाव कम होना शुरू हुआ। जिन कंपनियों ने घरेलू बाजार पर ध्यान केंद्रित रखा उनका राजस्व करीब 10 फीसदी बढ़ा। जो कंपनियां उत्पादों और सेवाओं की वैश्विक कीमतों से बहुत अधिक प्रभावित नहीं होतीं उनका सालाना समेकित शुद्घ लाभ 18.4 फीसदी के साथ काफी प्रभावशाली रहा। कुछ फायदा कम आधार प्रभाव का भी रहा है क्योंकि गत वर्ष की समान तिमाही में नोटबंदी से उबरते हुए आय वृद्घि 4.6 फीसदी कम थी।
मार्जिन के मोर्चे पर कहानी इतनी प्रभावी नहीं है। परिचालन मुनाफा मार्जिन मार्च 2017 तिमाही के बाद 12 तिमाहियों में दूसरा सबसे खराब है क्योंकि कंपनियां धातु और ऊर्जा क्षेत्र की बढ़ी हुई कीमतों का भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाल पाई हैं। घरेलू कंपनियों की बात करें तो उनका मूल परिचालन मार्जिन जून 2016 के उच्च स्तर से 300 आधार अंक गिरकर 16.6 फीसदी रह गया है। चौथी तिमाही में प्रत्येक 100 रुपये के राजस्व पर 35.2 रुपये कच्चे माल के थे। यह भी बीते चार साल का उच्चतम स्तर है। कच्चे माल की लागत बढऩे से जो झटका लगा उसे श्रम की घटती लागत ने काफी हद तक पूरा कर दिया। बैंकों की बात की जाए तो (भारतीय स्टेट बैंक ने अब तक अपने नतीजे घोषित नहीं किए हैं) नतीजे घोषित करने वाले 23 बैंकों को देखें तो ये सबसे कमजोर नतीजे हैं। इन बैंकों ने मिलकर चौथी तिमाही में 262 अरब रुपये के समेकित नुकसान की घोषणा की है। ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ क्योंकि 13 सरकारी बैंकों में से 11 ने इस तिमाही में घाटा दर्शाया है। बैंकों को ब्याज से होने वाली आय सालाना आधार पर 5.3 फीसदी बढ़ी है। यह बीती पांच तिमाहियों की सबसे धीमी वृद्घि दर है। इससे पता चलता है कि औद्योगिक ऋण की मांग कमजोर रही है। खुदरा बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय सेवा कंपनियों ने जरूर अच्छा प्रदर्शन किया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को जरूर मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आलोच्य तिमाही के दौरान इस उद्योग का शुद्घ लाभ केवल 0.2 फीसदी बढ़ा। जबकि तीसरी तिमाही में यह 6.5 फीसदी और एक साल पहले 8.8 फीसदी बढ़ा था। हालांकि इस क्षेत्र की बिक्री 5.5 फीसदी बढ़ी जो चार तिमाहियों में सबसे तेज है।
हालांकि कंपनियों का मौजूदा आंकड़ा अपर्याप्त है लेकिन यह अधिकांश क्षेत्रों का अच्छा प्रतिनिधित्व करता है। इससे देश के कारोबारी जगत के प्रदर्शन की सही तस्वीर सामने आती है। उच्च मुनाफे को बरकरार रखना अभी भी समस्या बना हुआ है। ऐसा तब तक रहेगा जब तक कि कंपनियों को कच्चे माल की बढ़ी लागत को आगे बढ़ाकर मार्जिन सुधारने का अवसर नहीं मिलता। हाल के दिनों में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है और अच्छी शुरुआत के बाद औद्योगिक उत्पादन में जो ठहराव आया है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आगे की राह आसान नहीं है।
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