वित्तीय योजनाकारों और संपत्ति प्रबंधकों का मानना है कि भारतीय लोग सेवानिवृत्ति की तैयारी करने के मामले में ढीले हैं और उनकी इस प्रवृत्ति में सुधार के लिए काफी गुंजाइश है। बचत करने वाले बहुत से लोग यह तो मानते हैं कि वे सेवानिवृत्ति के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके वास्तविक आंकड़ों को देखते हैं तो पता चलता है कि उनकी बचत कतई पर्याप्त नहीं है। एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के प्रबंध साझेदार और प्रमुख (योजना, निवेश रणनीति, सलाह एवं अंतरराष्ट्रीय कारोबार) सोमनाथ मुखर्जी कहते हैं, 'ज्यादातर लोग यह आकलन करने की जहमत नहीं उठाते हैं कि सेवानिवृत्त होने के समय उनको कितनी धनराशि की जरूरत होगी। जब उनको अपनी जरूरत का पता चलता है तभी वे इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में काम करते हैं।' आम तौर पर बचतकर्ता क्रय शक्ति पर महंगाई के असर को कम करके आंकते हैं। राइट होराइजंस के मुख्य कार्याधिकारी अनिल रेगो कहते हैं, 'अगर आप 15 फीसदी सालाना प्रतिफल देने वाली परिसंपत्तियों में 20 साल तक 1,20,000 रुपये का निवेश हर साल करते हैं तो आपके पास इस अवधि के बाद 1.5 करोड़ रुपये की धनराशि होगी। लेकिन अगर हम महंगाई 6 फीसदी मानकर चलें तो महंगाई समायोजित करने के बाद यह धनराशि 68 लाख होगी।' महंगाई का सटीक अनुमान लगाना बहुत अहम है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान महंगाई दर घटकर 4 से 5 फीसदी पर आ गई है, इसलिए व्यक्ति यह मान लेता है कि महंगाई का सामान्य स्तर यही है। लेकिन वित्तीय योजनाकारों का कहना है कि हमें लंबी अवधि का रुझान देखना चाहिए। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन कहते हैं, 'यह (महंगाई) 2004 से 2007 के बीच भी गिरी थी, लेकिन इसके बाद फिर से बढ़ गई। ऐसे में करीब 7.5 से 8 फीसदी के लंबी अवधि के औसत का इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर होगा। जल्दी बचत शुरू नहीं करने से आपके लिए बेफ्रिक होकर सेवानिवृत्त होना मुश्किल हो सकता है। रेगो कहते हैं, 'ज्यादातर लोग 40 से 50 की उम्र में सेवानिवृत्ति के लिए बचत के बारे में चिंता शुरू करते हैं। लेकिन अक्सर तब तक काफी देर हो चुकी होती है।' लोग ठीक से यह अनुमान भी नहीं लगा पाते हैं कि उन्हें बुढापे में अपने स्वास्थ्य खर्च के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी। बहुत से लोग स्वास्थ्य सेवाओं की महंगाई को कम करके आंकते हैं। यह महंगाई करीब 12.5 फीसदी है, जो उपभोक्ता महंगाई से काफी ऊंची है। वे ज्यादा खर्च वाली बीमारियों या लंबे समय तक इलाज वाली बीमारियों के लिए पर्याप्त मात्रा में बचत नहीं करते हैं। कम उम्र में ही पर्याप्त स्वास्थ्य बीमा लें और समय-समय पर बीमित राशि को बढ़ाते रहें या टॉप-अप खरीदें। बहुत से लोग जीवनशैली की महंगाई की भी गणना नहीं करते हैं। एक व्यक्ति को अपने कॉरपोरेट करियर के दौरान हवाई यात्रा की आदत पड़ सकती है। जब वह सेवानिवृत्त होता है और वह पहले जैसी जीवनशैली जीना चाहता है तो उसे ये खर्च खुद वहन करने होंगे। भारत में माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा और शादी पर जरूरत से अधिक खर्च करते हैं, जिससे उनके पास सेवानिवृत्ति के बाद के लिए पर्याप्त पैसा नहीं बचता है। वित्तीय योजनाकारों का कहना है कि लोगों को अपना लक्ष्य संपूर्ण रूप में देखना चाहिए और इसमें एक संतुलन बनाना चाहिए। माता-पिता को सेवानिवृत्ति योजना के साथ उत्तराधिकार योजना भी बनानी चाहिए। धवन कहते हैं, 'अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको यह पता होगा कि आपके पास अपने बच्चों पर मौजूदा समय में खर्च करने या भविष्य में अपनी संपत्तियां उन्हें सुपुर्द करने का विकल्प है।' फिक्स्ड इनकम योजनाओं पर अत्यधिक निर्भरता से भी लोग पर्याप्त धनराशि नहीं जुटा पाते हैं। रेगो कहते हैं, 'ज्यादातर वेतनभोगी लोग अनिवार्य तौर पर कर्मचारी भविष्य निधि और फिर बैंक सावधि जमाओं के जरिये बचत करते हैं। फिक्स्ड इनकम योजनाओं में महंगाई को समायोजित करने के बाद प्रतिफल निकालें तो यह बेहद मामूली होता है। व्यक्ति को ज्यादा प्रतिफल हासिल करने के लिए इक्विटी में भी कुछ निवेश करना चाहिए।' सेवानिवृत्ति के बाद भी कुल धनराशि के एक हिस्से का इक्विटी में निवेश करना चाहिए, ताकि आपको अगले 20 से 30 वर्षों के दौरान महंगाई से निपटने में मदद मिले।
